जब से एलन मस्क ने ‘ट्विटर’ को खरीदा है‚ तब से हर रोज महान ‘ट्विटर’ की ‘महान तटस्थता’ की पोल खुल रही है। यकीन न हो तो ‘ट्विटर’ को लेकर चल रहे समकालीन विवाद को देखें जो मस्क के ट्विटर को खरीदने के साथ शुरू हुआ। ‘ट्विटर’ को खरीदते ही मस्क ने सबसे पहले जानना चाहा कि क्या ट्विटर की पूर्ववर्ती टीम ‘दक्षिणपंथी’ संदेशों को सेंसर करती थी। एक रिसर्चर ने अपनी रिसर्च से सिद्ध किया कि ऐसा ही होता था। ट्विटर की देख–रेख करने वाले ‘ट्विटर’ पर आते अधिकांश दक्षिणंपथी संदेशों को सेंसर कर देते थे।
अब यह सचाई जैसे–जैसे साफ हो रही है वैसे– वैसे मस्क का विरोध बढ रहा है‚ पश्चिम के महान मीडिया की तटस्थता की पोल रोज खुल रही है‚ और सोशल मीडिया को लेकर यह गलतफहमी भी दूर हो रही है कि वह ‘स्वतंत्र मीडिया’ है। ट्विटर के अंदर आते परिवर्तनों को लेकर पश्चिमी मीडिया का एक बडा हिस्सा लगातार हमलावर है। वह कह रहा है कि ट्विटर अब गया। मस्क ने उसे ले तो लिया‚ लेकिन अब उसकी वह धज नहीं रही जो पहले थी। लोगों का यकीन अब उससे उठ गया है। मस्क उसे लाख नया बनाना चाहें ट्विटर को अंततः खत्म हो जाना है क्योंकि अब एक ‘बडी जनता’ का उससे विश्वास उठ गया है। यहां ‘बडी जनता’ से मतलब उसी ‘लेफ्ट व उदारतावादी जनता’ व नेताओं से है‚ जो अब तक ट्विटर को अपना मंच मानते थे और अपने खिलाफ हर लाइन को गायब करवा देते थे।
ट्विटर के नये मालिक ने ट्विटर को अपने तरीके से ‘सुधरना’ शुरू कर दिया है। एक तो उसने ‘ब्लूटिक’ के मनमाने ‘ऐलीटिज्म’ को खत्म कर दिया है और एक फीस तय करके ‘ब्लूटिक’ सुविधा को सबके लिए उपलब्ध कर दिया है। दूसरे उसने ट्विटर को ‘लेफ्ट उदारतावादियों’ के शिकंजे से मुक्त कर दिया है। इस समकालीन ट्विटर विवाद का अतिरिक्त फायदा यह भी हुआ है कि सारे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की विश्वसनीयता भी प्रश्नों के घेरे में आ गई है। जिस तरह ट्विटर अपने को ‘आजादी परस्त’ कहते हुए भी एक पक्ष की आजादी का पक्षधर जैसा नजर आता है‚ उसी तरह गूगल‚ फेसबुक‚ व्हाटसऐप आदि के बारे में कहा जाने लगा कि उनमें भी एक प्रकार की वैचारिक पक्षधरता काम करती है। बहुत से मीडिया हलकों में माना जाता है कि उनमें एक प्रकार के विचार प्रमुखता से जाने दिए जाते हैं जबकि दूसरे प्रकार के विचारों पर अंकुश लगाए जाते हैं।
चूंकि ये सोशल मीडिया प्लेटफार्म मूलतः निजी स्वामित्व में चलते हैं‚ इसलिए उन पर किसी का सीधा नियंत्रण भी नहीं दिखता। फिर‚ ये सोशल मीडिया प्लेटफार्म अपनी तकनीक व स्वभाव के कारण ‘ग्लोबल’ हैं‚ इसलिए वे प्रायः दुनिया भर के राष्ट्र–राज्यों व राज्य–सत्ताओं की सीमाओं को तोड–फोड कर और उनके पार जाकर काम करते हैं‚ और इसलिए कई बार ऐसा भी प्रतीत होता है कि वे राज्यों की सीमा–सत्ताओं से ऊपर रहकर काम करते हैं और इसीलिए वे किसी भी ‘सार्वभौम राष्ट्र–राज्य’ या ‘राज्य–सत्ता’ और समाजों की स्वायत्तता में सीधे हस्तक्षेप करते दिखते हैं। उनके जरिए दुनिया के लोग भी तरह–तरह से दुनिया के राज्य व समाजों में हस्तक्षेप करते दिखते हैं और अपने जरिए दुनिया भर के देशों की जनता को सीधे या प्रकारांतर से अपना राजनीतिक‚ सांस्कृतिक और सूचनात्मक एजेंडा देते रहते हैं‚ उनको सक्रिय करते रहते हैं‚ अपने ‘टूलकिट’ दे देकर उनको राजनीतिक–सांस्कृतिक रूप से सक्रिय करते रहते हैं‚ और जो लोग या समूह इस तरह सक्रिय होते हैं‚ उनको कानूनी तरीके से बचाने का अभियान भी चलाते हैं‚ विश्व जनमत को अपने पक्ष में मोबिलाइज करते हैं‚ और अपने को राज्य–सत्ता के मुकाबले जनतंत्र का पहरुआ बनाकर पेश करते हैं‚ साथ ही‚ और भी अधिक उदार जनतंत्र की मांग करते रहते हैं।
इतना ही नहीं‚ ‘ट्विटर’ ने न केवल टीवी‚ प्रिंट आदि को प्रभावित किया है‚ बल्कि दुनिया की राजनीतिक भाषा और तौर–तरीकों को भी प्रभावित किया है। सोशल मीडिया ने ‘सच’ और ‘फेक’ के बीच के फर्क को भी मिटाया है और ‘लाइक्स– डिस्लाइक्स’ की ‘शॉर्टकटवादी’ सतही कल्चर व ‘वायरल कल्चर’ को पैदा कर एक स्वतःस्फूर्त उन्मादी वातावरण बनाया है‚ जो एक खास तरह की ‘एनजीओ ब्रांड़ अराजकता’ पैदा करता है। एलन मस्क के स्वामित्व में ‘ट्विटर’ किस करवट बैठेगा‚ यह साफ नहीं लेकिन अगर उसने अपना अतिवादी स्वभाव को नहीं छोडÃा तो वह लोगों के दिलों से उतर जाएगा।
‘ट्विटर’ ने न केवल टीवी‚ प्रिंट आदि को प्रभावित किया है‚ बल्कि दुनिया की राजनीतिक भाषा को भी प्रभावित किया है। सोशल मीडिया ने ‘सच’ और ‘फेक’ के बीच के फर्क को भी मिटाया है और ‘लाइक्स– डिस्लाइक्स’ की ‘शॉर्टकटवादी’ सतही कल्चर व ‘वायरल कल्चर’ को पैदा कर स्वतःस्फूर्त उन्मादी वातावरण बनाया है