केंद्र सरकार ने मौजूदा फसल विपणन वर्ष के लिए गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में ११० रुपये का इजाफा करके २‚१२५ रुपये प्रति कुंतल करने का फैसला किया है। सरसों का एमएसपी ४०० रुपये बढ़ाकर ५‚४५० रुपये कर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंड़ल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) की मंगलवार को हुई बैठक में छह रबी फसलों का एमएसपी बढ़ाने का फैसला किया गया। रबी फसल (सर्दी की फसल) की बुवाई खरीफ (गर्मी) फसल की कटाईके बाद अक्टूबर में शुरू होती है। गेहूं और सरसों रबी की प्रमुख फसल हैं। चना‚ मसूर‚ जौ का मूल्य भी बढ़ाया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि एमएसपी में बढ़ोतरी खेती–किसानी को ऊर्जावान व सशक्त बनाने के सरकार के संकल्प की पुष्टि करती है। बताया गया कि एमएसपी में वृद्धि आम बजट २०१८–१९ के अनुरूप है‚ जिसमें एमएसपी को अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत के मुकाबले कम से कम डे़ढ़ गुना तय करने की घोषणा की गई थी। दरअसल‚ कृषि उपज के वाजिब दाम दिए जाने का मसला शुरू से ही बेहद जटिल रहा है। कृषि क्षेत्रमें यह चुनौती रही है कि किसानों के लिए उपज का लाभकारी दाम मिलना जरूरी है‚ ताकि न केवल उनकी उत्पादन लागत निकले‚ बल्कि उनकी आय में भी इजाफा हो। इसके लिए कृषि मूल्य आयोग (अब कृषि लागत एवं मू्ल्य आयोग–एसीपीसी) का गठन १९६५ में प्रख्यात कृषि अर्थशास्री ड़ॉ. धर्म नारायण की अध्यक्षता में किया गया था। आयोग को दायित्व सौंपा गया था कि कृषि जिंसों के लिए लाभकारी मूल्य की सिफारिश करे। आयोग लागत और किसान की मेहनत आदि को ध्यान में रखकर सिफारिश करता है‚ लेकिन विडं़बना रही कि एमएसपी को नाकाफी माना जाता रहा है। दरअसल‚ आयोग की हैसियत परामर्शदाता से ज्यादा कुछ नहीं। उसकी सिफारिशें मानना या न मानना सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है। इसलिए एमएसपी घोषित किए जाने पर राजनीति होने लगती है। एमएसपी का मसला इसलिए भी संवेदनशील रहा है कि महंगाई को इससे जोड़़कर देखा जाने लगता है। माना जाता है कि एमएसपी में बढ़ोतरी मतलब खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ जाना। जबकि ऐसा है नहीं। महंगाई बढ़ने के अनेक कारक होते हैं। इसलिए जरूरी है कि एमएसपी में बृद्धि किसानों के सशक्तिकरण के रूप में देखी जाए।
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