विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) द्वारा जारी ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2022′ के अनुसार वैश्विक स्तर पर 1970 से 2018 के बीच 48 वर्षों के दौरान वन्य जीवों की आबादी में ६९ फीसदी की कमी दर्ज की गई। 2022 के लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (एलपीआई) में वन्य जीवों की ५२३० प्रजातियों के 32‚000 जीवों की संख्या का विश्लेषण किया गया। इंडेक्स 50 वर्षो से स्तनधारी जीवों‚ पक्षियों‚ मछलियों‚ सरीसृपों और उभयचरों की संख्या ट्रैक कर रहा है।
साल के अंत में दुनिया के कई देश मॉ्ट्रिरयल में जैव विविधता की रक्षा के लिए नई वैश्विक योजना तैयार करने के लिए मिलने वाले हैं। उससे पहले आई रिपोर्ट चौंकाने वाली है। सच्चाई यह भी है कि जल‚ जंगल‚ जमीन के संरक्षण के जितने भी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन और कार्यक्रम होते हैं‚ उनमें विकासशील व विकसित देशों के बीच आर्थिक मुद्दों पर विवाद होता है। विकसित देश अधिक जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहते। वो चाहते हैं कि विकासशील देश ही जैव विविधिता दुनिया में गर्म होती जलवायु‚ कम होते जंगल‚ विलुप्त होते प्राणी‚ प्रदूषित होती नदियों‚ सभी को बचाने का काम करें। यहाँ तक कि इन कामों के लिए वे पर्याप्त आर्थिक मदत देने के लिए भी तैयार नहीं हैं। जैव विविधता के लिए आधुनिक विकास और प्रकृति संरक्षण‚ दोनों के बीच संतुलित तालमेल बैठाना बहुत जरूरी है । नहीं तो इसका खमियाजा प्रकृति को भुगतना पड़ेगा। वस्तुतः कोरोना का वैश्विक संकट इसका ही नतीजा था और अभी भी बरकरार है। जीव–जंतुओं और पौधों की लगभग ५० प्रजातियां रोजाना विलुप्त हो रही हैं। हमारे पूर्वज पर्यावरण‚ सामाजिक और आर्थिक प्रबंधन में माहिर थे। उनके संस्कार जनित प्रयासों से ही हम जैव विविधता बचा पाए हैं‚ और प्रकृति के साथ संतुलन बनाते हुए सबकी जरूरत पूरा करते रहे। पर्यावरण का निरंतर क्षरण रोज की बात है पर अब तो दुनिया भर में पाए जाने वाले पेड़–पौधों और जीव–जंतुओं की करीब तिहाई प्रजातियां भी विलुप्त होने के कगार पर हैं। एक तरफ मानवीय जनसंख्या बढती जा रही है‚ वहीं मानव जीव–जंतुओं और पेड़–पौधों को नष्ट कर उनकी जगह भी पसरता जा रहा है। वास्तव में जैव विविधिता के संरक्षण बिना विकास का कोई महत्व नहीं है।
लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट के अनुसार ताजे पानी के इलाकों में जैव विविधता में ज्यादा कमी आई है. ताजा पानी धरती के महज १ प्रतिशत हिस्से पर मौजूद है। मगर दुनिया की ५० प्रतिशत से ज्यादा आबादी ताजे पानी के ३ किमी. के दायरे में रहती है। ऐसे में बढ़ती मानव आबादी का दबाव बाकी जीवों पर आएगा ही। इसी दबाव के कारण जलचरों की आबादी में ८३ % की कमी आई है। जगंलों की ग्लोबल वार्मिंग को रोकने की भूमिका के बारे में हम सभी जानते हैं। दुनिया भर के जंगल वातावरण से ७.६ गीगा टन कार्बन डाई ऑक्साइड सोखते हैं। ये मानव गतिविधियों से दुनिया में पैदा हुई कार्बन का १८ प्रतिशत होती है। जंगल कुल मिलाकर इस धरती को ०.५ डिग्री ठंडा रखते हैं। मगर इसके बावजूद हम १० मिलियन हैक्टेयर जंगल हर साल खो देते हैं। इसका मतलब है कि हम हर साल एक पुर्तगाल खो रहे हैं। भारत में जैव विविधता सबसे ज्यादा है। देश की आधी आबादी को कृषि से रोजगार मिल रहा है। यह हमारी सोच में होना चाहिए कि जीव–जंतुओं का महत्व हमसे कम नहीं है। संयुक्त राष्ट्र ने भी कहा है कि सभ्यता और संस्कृति का बड़ा महत्व है। दुनिया को मिल कर जानना चाहिए कि कौन से प्रयास बेहतर हैं‚ जिनको और जगह भी अपनाया जा सकता है। विश्व की बढ़ती आबादी की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में कृषि जैव विविधता के संरक्षण से टिकाऊपन बनाए रखने के लिए ठोस प्रयास जरूरी है ।
जैव विविधिता की चिंता अकेले किसी एक देश अथवा महाद्वीप की समस्या है। न ही कोई अकेला देश इस समस्या से निपटने के उपाय कर सकता है। वैश्विक समुदाय को जैव विविधिता संकट के लिए जिम्मेदार माना जाता है‚ और यह समस्या भी वैश्विक समुदाय की ही है। इसलिए सबकी नैतिक जिम्मेदारी है कि मिल जुलकर समस्या से निपटने के रास्ते तलाशें और जैव विविधिता को संरक्षित करने वाली योजनाओं को क्रियान्वित करें। आरंभ में विकास और जैव विविधिता को दो अलग–अलग अवधारणा के रूप में देखा जाता था‚ लेकिन बाद में महसूस किया गया कि विकास और जैव विविधिता को अलग–अलग हिस्से नहीं माना जा सकता। जैव विविधता के संरक्षण के लिए सरकारी प्रयास के साथ ही जनता की सकारात्मक भागीदारी भी जरूरी है। जनजागरूकता होने पर ही जैव विविधता संरक्षण हो पाएगा। जैव विविधता के संरक्षण का सवाल पृथ्वी के अस्तित्व से जुड़ा है। इसलिए विश्व के जीन पूल को कैसे बचाया जाए इस पर पूरी दुनिया को गंभीरता से विचार करते हुए ठोस निर्णय लेना होगा।