मुलायम सिंह यादव के निधन के साथ भारतीय राजनीति का एक बडा सितारा अस्त हो गया। अपने गृह जनपद इटावा में अध्यापन छोडकर वह जब से लोहियावादी राजनीति में सक्रिय हुए तभी से उनकी छवि एक ऐसे राजनेता के रूप में बननी शुरू हो गयी थी जो किसी भी स्थिति–परिस्थिति में विचलित हुए बिना अपनी राह बनाता चलता है‚ आगे बढता रहता है और लोगों से जुडता और उन्हें जोडता चलता है।
क्षेत्रीय राजनीति में तीव्र गति से उभरने के बाद वह शीघ्र ही राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर छा गये। उन्होंने संघर्षों सिद्धांतों के बल पर वह मुकाम हासिल किया जो विरले ही कर पाते हैं। वह विधायक रहे‚ सांसद रहे‚ तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और भारत के रक्षा मंत्री रहे। उन्होंने अपार लोकप्रियता हासिल की और अपने अंतिम दिनों तक सबके प्रिय ‘नेताजी’ बने रहे। वे चाहे सत्ता में रहे हों या सत्ता से बाहर‚ उनकी लोकप्रियता का कभी क्षरण नहीं हुआ।
उनके राजनीतिक जीवन के उतार–चढावों‚ दायित्व और कर्तव्य निर्वाहों के बारे में हर कोई जानता है। उनकी छवि किसी से भी असैद्धांतिक समझौता न करने वाले एक कठोर राजनेता के रूप में बनी रही । लेकिन उनका एक और स्वरूप था जो राजनीतिक कठोरता के विरुद्ध सरल‚ सहृदय और अत्यधिक मिलनसार व्यक्ति का था। उनकी सहजता के कारण ही जो लोग उन्हें निकट से पहचानते हैं वे जानते हैं कि वह एक पारिवारिक व्यक्ति थे। अपने परिवार को वह स्नेह देते थे और साथ में अपनी संस्कृति और संस्कारों की शिक्षा भी देते थे। सामाजिक अनुशासन और श्रेष्ठता के जो संस्कार उन्होंने विरासत में पाये थे वही आत्मीयता भरे उन्नत संस्कार उन्होंने अपने परिवार को दिये। पारिवारिक समारोहों में हमारी प्रायः पारस्परिक भागीदारी रहती थी और जो जितना उनके संपर्क में आता था उतना ही उनसे प्रभावित होता था और निकटता उतनी ही गहरी होती जाती थी।
उनकी आत्मीयता जितनी मित्रों‚ परिजनों के प्रति थी उतनी ही अपने कार्यकर्ताओं तथा साथी सहयोगी अन्य नेताओं के प्रति थी। वे अपने कार्यकर्ताओं से निश्छल प्यार करते थे और उनके कार्यकर्ता उन्हें निश्छल सम्मान देते थे। मैं कई बार इस बात का साक्षी बना कि उनका छोटे से छोटा कार्यकर्ता भी उनसे सहजता से मिल सकता था‚ बात कर सकता था और अपनी शंकाओं के समाधान के साथ–साथ भविष्य के लिए दिशा–निर्देश भी पा सकता था।
उनके व्यक्तित्व की एक और खूबी यह थी कि वह रचनाधर्मी व्यक्तियों को अतिरिक्त सम्मान प्रदान करते थे‚ फिर चाहे वे लेखक–पत्रकार हों‚ कवि–कथाकार हों‚ संगीतकार या नाटककार हों। इस वर्ग को अतिरिक्त सुविधाएं प्रदान करने का उनका प्रयास चलता ही रहता था। कलाकार–रचनाकारों का यह वर्ग जितनी निकटता श्री मुलायम सिंह यादव जी के साथ महसूस करता था उतनी शायद ही किसी अन्य नेता के साथ करता हो।
यह उनके व्यक्तित्व की ही खूबी थी कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद वह अपने विरोधी दल के नेताओं के बीच में भी बहुत लोकप्रिय थे। जब मैं दिल्ली के मेदांता अस्पताल में उन्हें देखने गया था तो मैंने विपक्षी दलों के बडे–बडे नेताओं को उनके हालचाल लेने के लिए आते–जाते देखा। दल से इतर उनकी लोकप्रियता का ही प्रभाव था कि उनके देहावसान पर उन्हें भावुक श्रद्धांजलि देने वालों में प्रथमतः राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू‚ *प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी‚ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह‚ गृह मंत्री अमित शाह आदि वरिष्ठ नेताओं के साथ–साथ अन्य दलों की बडी विभूतियां भी शामिल थीं।
वह जमीन से जुडे थे‚ हमेशा जमीन से जुडे रहे। उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति जानता है कि उन्होंने अपनी विराट उपलब्धियों को अपने व्यक्तित्व के ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया। अपने परिजन‚ मित्रों‚ परिचितों तथा साथी सहयोगियों के लिए वह सहज सुलभ व्यक्ति थे जिनसे कोई भी‚ कभी भी संवाद कायम कर सकता था। आज वह हमारे बीच नहीं हैं‚ उनसे संवाद टूट गया है‚ लेकिन उनकी स्मृतियां उनका स्मारक बनकर सदैव हमारे निकट रहेंगी। उनके सान्निध्य में गुजारे गये आत्मीय क्षण हमेशा मेरी निधि बने रहेंगे।