महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में बुधवार को दशहरा रैली की धूम रहने वाली है. शिवसेना के ठाकरे गुट और शिंदे गुट अलग-अलग जगहों पर रैलियां करने वाले हैं. इन रैलियों को शक्ति प्रदर्शन के तौर पर भी देखा जा रहा है, ऐसे में दोनों गुटों के समर्थकों के बड़ी तादाद में मुंबई में जुटने की संभावना है. इसे देखते हुए मुंबई पुलिस ने व्यापक इंतजाम करने का दावा किया है. देश की आर्थिक राजधानी में आवागमन सुचारू रहे, इसको सुनिश्चत करने के लिए शहर के विभिन्न हिस्सों में नो एंट्री जोन बनाए गए हैं. इस बाबत मुंबई ट्रैफिक पुलिस की ओर से आमलोगों के लिए एडवायजरी भी जारी की गई है, ताकि उन्हें पहले से ही रूट की स्थिति के बारे मे पता रहे और उन्हें किसी तरह की कठिनाई न हो.
भीड़ की संभावना को देखते हुए ट्रैफिक पुलिस ने सेंट्रल मुंबई और बांद्रा इलाकों में कई रूट को यातायात के लिए बंद कर दिया गया है. उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट द्वारा रैलियों का आयोजन किया गया है. इन रैलियों में महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से बड़ी तादाद में लोगों के जुटने की संभावना है. शिवसेना में विभाजन के बाद पहली बार दशहरा रैली का आयोजन किया जा रहा है. इसे देखते हुए सुरक्षा के भी कड़े बंदोबस्त किए गए हैं. शिवसेना के ठाकरे गुट का दावा है कि प्रदेश के कोने-कोने से समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को मुंबई लाने के लिए 1800 बसों की बुकिंग की गई है.
शिवसेना का शिवाजी पार्क कनेक्शन:बाल ठाकरे ने यहीं खड़ी की शिवसेना, उद्धव बचाने उतरे
शिवाजी पार्क सेंट्रल मुंबई के दादर इलाके में स्थित सार्वजनिक पार्क है, जो 1.13 लाख वर्ग मीटर यानी करीब 28 एकड़ में फैला है और ये मुंबई का सबसे बड़ा पार्क है। यहां क्रिकेट नेट्स से लेकर टेनिस कोर्ट, फुटबॉल पिच और मल्लखंब एरिया बने हैं।
इन सबसे ज्यादा इस मैदान का राजनीतिक और सामाजिक इतिहास इसे खास बनाता है। समुद्र के पास स्थित शिवाजी पार्क का इतिहास इतना समृद्ध है कि लेखिका शांता गोखले ने ‘शिवाजी पार्क: दादर 28: हिस्ट्री, प्लेसेज, पीपुल’ नामक किताब लिखी है।
इसकी स्थापना ब्रिटिश राज के दौरान 1925 में BMC ने की थी, तब उसे माहिम पार्क के नाम से जाना जाता था।
1927 में BMC काउंसलर और स्वतंत्रता सेनानी अवंतिकाबाई गोखले के प्रयासों से इसका नाम बदलकर मराठा साम्राज्य की स्थापना करने वाले शिवाजी के नाम पर रखा गया और यहां शिवाजी की एक मूर्ति भी लगाई गई।
आजादी के पहले यहां स्वतंत्रता सेनानियों की रैलियों का आयोजन होता था। शिवाजी पार्क महाराष्ट्र के कई यादगार राजनीतिक आंदोलनों का गवाह रहा है। यहां हुए संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन की वजह से ही 1960 में महाराष्ट्र राज्य का जन्म हुआ।
महाराष्ट्र को बॉम्बे स्टेट से अलग कर नया राज्य बनाने की मांग करने वाले प्रमुख नेताओं में बालासाहब ठाकरे के पिता और सामाजिक कार्यकर्ता केशव सीताराम ठाकरे भी शामिल थे।
इस मैदान के पास ही स्वतंत्रता सेनानी और हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर का स्मारक भी है। सावरकर उसी इलाके के एक बंगले में रहते थे।
बाल ठाकरे, शिवसेना और शिवाजी पार्क का मजबूत रिश्ता
शिवसेना अपने जन्म यानी 19 जून 1966 के बाद से ही शिवाजी पार्क में दशहरा रैली करती आ रही है। ठाकरे परिवार बांद्रा स्थित मातोश्री बंगले में शिफ्ट होने से पहले इस पार्क के पास के ही इलाके में रहता था। शिवसेना का हेडक्वॉर्टर, सेना भवन, शिवाजी पार्क के बगल में ही है। इसकी अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बाल ठाकरे इसे ‘शिव तीर्थ’ कहते थे।
शिवसेना बनने के महज 4 महीने बाद ही 30 अक्टूबर 1966 को बाल ठाकरे ने शिवाजी पार्क में हुई पार्टी की पहली दशहरा रैली में एक जोरदार भाषण दिया था। विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए ठाकरे ने मराठी लोगों से अपनी पहचान वापस पाने की अपील की थी। तब से हर साल शिवसेना के लिए दशहरा रैली की परंपरा बन गई।
हालांकि, पहली रैली का आयोजन दशहरा के दिन नहीं हुआ था। तब दशहरा 23 अक्टूबर को था, लेकिन दशहरा रैली 30 अक्टूबर को हुई थी। इसके आयोजन की घोषणा ठाकरे ने अपनी मैगजीन में की थी। तब उन्हें नहीं पता था कि इस रैली में कितने लोग आएंगे।
कम लोगों के आने की संभावना की वजह से कुछ लोगों ने सलाह दी कि कार्यक्रम ऑडियोटोरियम में करना चाहिए, लेकिन ठाकरे की जिद थी कि इसे शिवाजी पार्क में किया जाए।
शिवसेना के इतिहास पर लिखने वाले वरिष्ठ मराठी पत्रकार प्रकाश अकोलकर के मुताबिक पहली रैली की सफलता को लेकर खुद बाल ठाकरे भी आश्वस्त नहीं थे, क्योंकि तब वह केवल कार्टूनिस्ट और एक मैगजीन के एडिटर थे, लेकिन उनकी रैली को जबर्दस्त कामयाबी मिली।
शिवसेना पहली बार सत्ता में आई, तो मनोहर जोशी ने शिवाजी पार्क में सीएम पद की शपथ ली थी
महाराष्ट्र की राजनीति में जैसे-जैसे बाल ठाकरे का कद बढ़ा, वैसे-वैसे शिवसेना की दशहरा रैली में भीड़ और इस रैली का महत्व भी बढ़ा। आलम ये था कि शिवसेना की दशहरा रैली महाराष्ट्र की राजनीति की एक प्रमुख तारीख बन गई और इस रैली में बाल ठाकरे के दिए भाषण पार्टी की विचारधारा का संकेत बन गए।
1995 में जब शिवसेना-BJP गठबंधन ने पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल किया, तो शिवसेना के मनोहर जोशी ने राजभवन के बजाय मुख्यमंत्री पद की शपथ शिवाजी पार्क में ली थी।
2010 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने BMC को शिवाजी पार्क को साइलेंट जोन बनाने का आदेश दिया। बाल ठाकरे ने कोर्ट के आदेश की आलोचना करते हुए शिवसेना के मुखपत्र सामाना में एक संपादकीय लिखा। बाद में कोर्ट ने शिवसेना को दशहरा रैली के आयोजन की अनुमति दे दी।
बाल ठाकरे ने बीमार होने की वजह से 2012 में शिवाजी पार्क में अपना आखिरी भाषण वर्चुअली दिया था। रैली में बाल ठाकरे का रिकॉर्डेड संदेश एक बड़ी स्क्रीन पर दिखाया गया था। ठाकरे ने पार्टी कार्यकर्ताओं से उनके बेटे उद्धव और पोते आदित्य ठाकरे को भी उनके जैसा ही समर्थन देने की अपील की थी।
नवंबर 2012 में बाल ठाकरे के निधन के बाद राजकीय सम्मान के साथ शिवाजी पार्क में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। ठाकरे की अंतिम यात्रा में करीब 15 लाख लोग शामिल हुए थे। शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे को समर्पित ‘स्मृति स्थल’ नामक स्मारक बनाया गया है।
2006 में जब राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी MNS का गठन किया, तो MNS की पहली रैली भी शिवाजी पार्क में हुई थी।
उद्धव-शिंदे गुट दशहरा रैली से ताकत साबित करने में जुटे
दशहरा रैली से पहले भी उद्धव और शिंदे गुट श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, गणेश उत्सव और दुर्गा पूजा को लेकर आमने-सामने आ चुका है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि धार्मिक त्योहार शिवसेना की विरासत पर दावा ठोकने के लिए दोनों गुटों के लिए रस्साकशी का खेल बन गए हैं।
यही वजह है कि इस बार दोनों गुट अपनी-अपनी दशहरा रैलियों में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जुटाने की कोशिश में लगे हैं, ताकि वे ये दिखा सकें कि उनके पास ज्यादा जन-समर्थन है। दोनों गुट शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे की रैलियों के पुराने वीडियो को शेयर करते हुए खुद को उनकी विरासत का असली उत्तराधिकारी साबित करने में जुटे हैं।
संख्या के लिहाज से शिंदे गुट आगे है। शिवसेना के 55 विधायकों में से 40 और 18 सांसदों में से 12 शिंदे के समर्थन में हैं। अब असली जमीनी लड़ाई स्थानीय कार्यकर्ताओं के बीच जगह बनाने की है।
इसकी एक और वजह अगले कुछ महीने में होने वाले BMC चुनाव भी हैं।
शिवसेना अपने जन्म के बाद से ही धार्मिक और सांस्कृतिक इवेंट्स को लोगों के बीच पहुंच बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती आई है। उद्धव ठाकरे गुट के प्रवक्ता हर्षल प्रधान का कहना है-’बालासाहब (ठाकरे) ने कहा था कि लोगों का भरोसा जीतने के लिए 80% सामाजिक काम और 20% राजनीति करनी है।’