देश के पहले स्वदेश निर्मित हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर (एलसीएच) का भारतीय वायुसेना के युद्धक बेड़े़ में शामिल होना रक्षा क्षेत्र का आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया गया एक और महत्वपूर्ण कदम है। पिछले महीने स्वदेशी युद्धपोत आईएनएस विक्रांत नौसेना के बेड़े़ में शामिल हुआ था‚ जिससे देश की समुद्री सुरक्षा घेरे को मजबूती मिली। स्वेदश नि्र्मिमत हेलीकॉप्टर का रक्षा मंत्री ने ‘प्रचंड़’ नाम रखा। ५.८ टन वजन‚ दो इंजन‚ २० मिमी बुर्ज गन‚ राकेट सिस्टम‚ हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों से लैस प्रचंड़ को विशेषकर उच्च पर्वतीय युद्ध क्षेत्र में इस्तेमाल करने के लिए विकसित किया गया है। यह हेलीकॉप्टर १६‚४०० फीट की ऊँचाई से हमला कर सकता है। प्रचंड़ दुश्मनों के थल सेना‚ टैंकों‚ बंकरों और ड्रोनों आदि को मार गिराने की क्षमता रखता है। अपेक्षा की जा रही है कि यह लड़़ाकू हेलीकॉप्टर वायु सेना की शक्तियों को और मारक बनाएगा। प्रचंड़ की यह भी विशेषता है कि दिन और रात दोनों पहर ड्यूटी पर तैनात रहेगा। वायु सेना में शामिल करने से पहले समुद्र‚ रेगिस्तान और पहाड़़ों में इसकी क्षमता को परखा गया है। तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य और राजनीतिक हितों के मद्देनजर रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता भारत के लिए जरूरी हो गया है। रक्षा उत्पादों और उपकरणों के लिए भारत ज्यादातर रूस पर निर्भर है। यही वजह है कि रूस–यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में देश की रणनीतिक हित और राजनीतिक मूल्य प्रभावित हो रहे हैं। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में देश के रक्षा उत्पादों के निर्यात में संतोषजनक वृद्धि है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार स्वदेश निर्मित सिंगल–इंजन लाइट कॉम्बेट एयरक्राफ्ट तेजस की खरीदारी के लिए मलयेशिया‚ अर्जंटीना‚ ऑस्ट्रेलिया‚ अमेरिका‚ मिस्र‚ इंड़ोनेशिया और फिलीपींस‚ इच्छुक हैं। केंद्र सरकार विदेशों में स्व निर्मित रक्षा उपकरणों के निर्यात के लिए राजनयिक स्तर पर कोशिश कर रही है। रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण की प्रक्रिया के साथ सैन्य क्षेत्र में आधुनिकीकरण को भी बढ़ावा मिलना चाहिए। सरकार भी इस दिशा में काम कर रही है‚ लेकिन हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स जैसे रक्षा उद्योगों के लिए कम लागत वाली ऐसी तकनीक का विकास करना एक बड़़ी चुनौती है‚ जिसकी गुणवत्ता विश्व स्तर की हो। उम्मीद की जानी चाहिए भारत बहुत शीघ्र रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त कर लेगा।
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