आज का दिन देवी मां के भक्तों के लिए बहुत विशेष है क्योंकि सोमवार, 26 सितंबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो रही है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के 9 रुपों की विधि- विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। शारदीय नवरात्रि इस साल 26 सितंबर से शुरू होकर 4 अक्टूबर यानी चलेगी। इस बीच मां दुर्गा के आराधक उन्हें प्रसन्न करने की पूरी कोशिश करते हैं, लोग मां की कृपा पाने के लिए व्रत रहते हैं, पूजन करते हैं, पाठ व जप के साथ यज्ञ और हवन भी करते हैं। क्योंकि यह मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा भक्तों के घर में प्रवेश करती हैं। आइए डॉ. वैशाली गुप्ता से जानते हैं कि नौ दिन में किस दिन मां दुर्गा के किस रूप की पूजा की जाती है। साथ ही हर रूप के लिए विशेष मंत्र और पूजा विधि।
शारदीय नवरात्र पर बन रहा खास संयोग
इस साल शारदीय नवरात्र सोमवार के दिन शुरू हो रहा है। जो काफी शुभ माना जाता है। 26 सितंबर के दिन सोमवार पड़ने के साथ-साथ शुक्ल और ब्रह्न योग बन रहा है। इस शुभ योग में मां दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा करने से कई गुना अधिक फलों की प्राप्ति होगी।
इस तरह धरती में आएगी मां दुर्गा
हर साल नवरात्र के दिन मां दुर्गा अलग-अलग वाहनों में सवार होकर धरती में पधारती हैं। बता दें कि मां दुर्गा के वाहनों की गणना सप्ताह के दिन के हिसाब से होती है। इस साल शारदीय नवरात्र सोमवार से शुरू होने के कारण मां हाथी में सवार होकर आ रही है। इस वाहन से आना शुभ माना जाता है। हाथी की सवारी का मतलब है कि अधिक वर्षा होना। पृथ्वी में हर जगह हरियाली और खुशहाली होगी।
शारदीय नवरात्र 2022 कब से शुरू
आश्विन मास की प्रतिपदा आरंभ- 26 सितंबर 2022 को सुबह 03 बजकर 22 मिनट पर शुरू
आश्विन मास की प्रतिपदा समाप्त- 27 सितंबर 2022 को सुबह 03 बजकर 09 मिनट पर समाप्त
दुर्गा अष्टमी- नवरात्र की अष्टमी तिथि 3 अक्टूबर 2022
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
26 सितंबर से मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। इसके साथ ही घट स्थापना का भी विधान है।
घटस्थापना सुबह का मुहूर्त – सुबह 06 बजकर 17 मिनट से 07 बजकर 55 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 42 मिनट तक
नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापना के साथ होती है। नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं नवरात्रि में कलश स्थापना क्यों की जाती है। नवरात्रि पूजन में कलश स्थापना से ही नवरात्रि का आरंभ माना जाता है। कलश स्थापना को को घटस्थापना भी कहते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार कलश को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है। इसलिए नवरात्रि पूजा से पहले घट स्थापना या कलश की स्थापना करने का विधान है। नवरात्रि में कलश स्थापना के संबंध में एक पौराणिक कथा जुड़ी है। इस कथा के अनुसार श्री हरि विष्णु अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे इसलिए इसमें अमरत्व की भावना भी रहती है। यही कारण है कि घर के किसी भी शुभ अवसर पर घटस्थापना या कलश स्थापना की विधि सम्पन्न कराई जाती है। कहते हैं कलश में देवी-देवताओं, ग्रहों व नक्षत्रों का वास होता है और कलश को मंगल कार्य का प्रतीका माना गया है। कलश स्थापना करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। शास्त्रों के अनुसार कलश विश्व ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि संपूर्ण देवता ब्रह्मांड में एकसाथ विराजित हैं। नवरात्रि पूजन में कलश इस बात का सूचक है कि कलश के माध्यम से समस्त देवताओं का पूजा में आह्वान करें। और उन्हें नवरात्रि पूजन में शामिल करें।
माता के नौ रूपों की पूजा ……..
पहला दिन मां शैलपुत्री (हिमालय की पुत्री): देवी के इस रूप से हमारे जीवन में पर्वत के समान समृद्धि, धन और दृढ़ता आती है। मां परमात्मा का पूर्ण रूप। उनके एक ओर त्रिशूल और दूसरी ओर कमल है। उसके सिर के पीछे आधा चांद है। ध्यान करते समय अगर हम उनकी प्रार्थना करें और अपनी एकाग्रता को मूलाधार चक्र पर ले जाएं तो हम अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव महसूस कर सकते हैं।
मंत्र जाप : ” ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैल पुत्री नमः”
रंग: मां भ्रामचारिणी का प्रिय रंग पीला है।
दूसरा दिन मां भ्रामचारिणी: देवी के इस रूप का अर्थ है, मां का अविवाहित रूप। एक तरफ उनके पास कमंडल और दूसरी तरफ जप माला है। ध्यान करते समय अपना ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर लगाएं। वह प्यार और बलिदान को दर्शाती है। उसका रंग हरा है।
मंत्र जाप: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं भ्रामचारिह्य नमः”
रंग: मां भ्रामचारिणी का प्रिय रंग हरा है।
तीसरा दिन है मां चंद्रघंटा: वह हमें बुरे कर्मों से मुक्ति दिलाती हैं और हमारे जीवन में वीरता बढ़ाती हैं। यदि आप पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और मणिपुर पर हमारा ध्यान रखते हुए इस मंत्र का जाप करते हैं। चक्र हम अपने जीवन में उसकी सकारात्मकता महसूस करेंगे।
मंत्र जाप: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चंद्रघंताये नमः”
रंग: मां चंद्रघंटा पसंदीदा रंग पीला है
चौथा दिन मां कुष्मांडा: उनके चेहरे पर मुस्कान है। वह हमारे जीवन से अंधकार को दूर करती हैं। वह सिद्धि की देवी हैं और वह हमारे जीवन से बीमारी को दूर करती हैं और हमें खुश करती हैं। उनसे प्रार्थना करते समय आपको अहनत चक्र पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
मंत्र जाप: “ओम ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडाये नमः”
रंग: मां कुष्मांडा का पसंदीदा रंग नारंगी है
पांचवां दिन मां सकंद माता: उनके 4 हाथ और 3 आंखें हैं। उनकी गोद में भगवान कार्तिकेय (शिशु) हैं। देवी का यह रूप हमें खुशी, समृद्धि और मोक्ष प्रदान करता है। हमें विशुद्धि चक्र पर ध्यान करना चाहिए।
मंत्र जाप: “ओम ऐं ह्रीं क्लीं स्कंध मताय नमः”
रंग: मां सकंद माता का पसंदीदा रंग सफेद है
छठा दिन माँ कात्यायनी: उनके 4 हाथ हैं और वह एक बाघ की सवारी करती हैं। एक हाथ में उनके पास तलवार है और कहा जाता है कि जब हम देवी के इस रूप की पूजा करते हैं तो हम बीमारी और भय को हराने में सक्षम होते हैं। मंत्र का जाप करते समय आपको अपना ध्यान आज्ञा चक्र पर रखना चाहिए।
मंत्र जाप: “ओम ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनि नमः”
रंग: माँ कात्यायनी का पसंदीदा रंग लाल है
सातवां दिन माँ कालरात्रि: माना जाता है कि यह माँ का सबसे आक्रामक रूप है। देवी का यह रूप दुश्मनों को दूर कर हमें लंबी उम्र देता है। कहा जाता है कि ध्यान करते समय आपको माथे पर ध्यान देना चाहिए।
मंत्र जाप: “ओम ऐं ह्रीं क्लीं कल रत्रिय्या नमः”
रंग: माँ कालरात्रि का पसंदीदा रंग नीला है
आठवां दिन माँ गौरी: वह हमारे जीवन को धन, स्वास्थ्य, नाम, प्रसिद्धि और सभी प्रकार की समृद्धि से भर देती है। उनका ध्यान सिर पर ध्यान के साथ किया जाता है।
मंत्र जाप: “ओम ऐं ह्रीं क्लीं महा गौरिये नमः”
रंग: माँ गौरी का पसंदीदा रंग गुलाबी है
नौवां दिन है मां सिद्धिदात्री: कहा जाता है कि इनके 4 हाथ हैं और ये कमल पर विराजमान हैं। ये हमारे जीवन में सिद्धियां लाती हैं। इनके पास हीलिंग शक्तियां हैं और ये किसी भी बीमारी को ठीक कर सकती हैं। इनका ध्यान माथे पर एकाग्रता के साथ करना चाहिए।
मंत्र जाप: “ओम ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्रिये नमः”
रंग: मां सिद्धिदात्री का पसंदीदा रंग बैंगनी है।