नहीं जी‚ यह शेर आया–शेर आया वाली कहानी नहीं है। वह तो एक झूठे चरवाहे की कहानी थी‚ जो लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बार–बार शेर आया–शेर आया‚ लोगो भागो–दौडो‚ देखो शेर आया–शेर आया का झूठा राग अलापता रहता था। लोग उसकी मदद करने के लिए आते भी थे। जिस पर वह ताली पीटकर खूब हंसता था‚ कि देखो मैंने इन्हें कैसा बेवकूफ बनाया। लेकिन धीरे–धीरे लोगों ने उस पर विश्वास करना छोड दिया और एक दिन सचमुच शेर आकर उसको खा गया। लेकिन यह वो कहानी नहीं है।
यह तो चीतों की कहानी है। हालांकि इन चीतों को भी शेर ही लेकर आया है। जन्मदिन पर ऐसा सद्भाव और कहां देखने को मिलेगा। अब तो शायद होली पर भी ऐसा सद्भाव देखने को न मिले। खैर‚ लोग चाह रहे थे कि चिंता की जाए–महंगाई की‚ बेरोजगारी की। बेरोजगार इसीलिए तो इस दिन बेरोजगारी दिवस मना रहे थे। लेकिन अब ऐसा तो हो नहीं सकता साहब कि सरकार ने चिंता को चीता समझ लिया हो और लोगों की समस्या को संबोधित कर दिया हो। वैसे भी कहा है न कि चिंता चिता समान है। और जन्मदिन जैसे शुभ अवसर पर ऐसी मनहूस बातें की भी नहीं जानी चाहिए। सो‚ चिंता को छोड चीते लाए गए। लाने को सरकार बहुत कुछ ला सकती थी। बल्कि इधर तो जब से इंग्लिशतान की महारानी स्वर्ग सिधारी हैं‚ लोग कोहिनूर हीरे को वापस लाने की बातें भी करने लगे हैं। भक्त लोग तो पीओके को वापस लाने की बात कुछ इस अंदाज में करते ही रहते हैं जैसे आज कल में वह वापस मिल ही जाएगा। अच्छी बात यही है कि वे चीन द्वारा कब्जाई हमारी जमीन वापस लाने की बात नहीं करते। लेकिन भगवा ध्वज वापस लाने की बातें खूब की जाती हैं। नहीं क्याॽ सरकार चाहती तो बेरोजगारों के चेहरों पर खुशी ला सकती थी। महंगाई कम करके आम लोगों और प्रसाद की तरह रेवडियां बांटकर गरीबों के चेहरों पर खुशी ला सकती थी। लेकिन वो चीते ले आए। बेशक‚ उनकी वापसी में विपक्ष के लिए सत्तर साल की लानत मौजूद थी। सत्तर साल बाद भारत की धरती पर उतरे चीते इस बात की गवाही दे रहे थे कि सत्तर साल में कुछ भी नहीं हुआ। चीते तक तो ला नहीं सके और क्या तीर मारतेॽ लो‚ अब चिंता भी पालो और चीते भी।