भारत से लेकर ईरान तक हिजाब पर हंगामा मचा हुआ है। भारत में हिजाब विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। तो वहीं इस्लामिक देश ईरान में महिलाएं हिजाब के विरोध में सड़कों पर उतर आई हैं। दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जहां हिजाब को लेकर अलग-अलग नियम हैं। कुछ देशों में तो हिजाब पहनने पर पूरी तरह से पाबंदी भी लगाई गई हैं। लेकिन इसके बावजूद किसी न किसी देश में हिजाब पर हंगामा देखने को मिल जाता है। आपको हम उन देशों के बारे में बताएंगे, जहां हिजाब पर अलग-अलग नियम हैं।
भारत में मचा हिजाब पर विवाद
भारत में हिजाब पहनने पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं हैं, लेकिन देश में इन दिनों हिजाब पर हंगामा देखने को मिल रहा है। कर्नाटक से शुरू हुआ हिजाब विवाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। कुछ छात्राओं ने कर्नाटक सरकार के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनकर आने पर प्रतिबंध लगाया गया है। सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर अलग-अलग तर्क भी दिए जा रहे हैं। कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर पाबंदी को लेकर बीते 8 दिनों से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है और अब बुधवार को भी इस पर बहस होगी। मंगलवार को कर्नाटक सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कई तर्क दिए। यहां तक कि उन्होंने ईरान में हिजाब के खिलाफ चल रहे महिलाओं के आंदोलन का भी हवाला देते हुए कहा कि शरीयत से चलने वाले देशों में भी इसके खिलाफ गुस्सा दिख रहा है। उन्होंने अदालत से कहा, ‘उन देशों में भी महिलाएं हिजाब के खिलाफ आंदोलन कर रही हैं, जहां से इस्लाम की शुरुआत हुई थी।’ मेहता ने कहा कि हिजाब अनिवार्य नहीं है और यहां तक कि इस बात पर भी चर्चा करने की जरूरत नहीं है कि इसका इस्लाम में क्या स्थान है।
वहीं केस की सुनवाई कर रही बेंच ने कहा कि यूनिफॉर्म स्कूलों और कॉलेजों में असमानता को समाप्त करने के लिए है। जजों ने कहा कि जैसा संस्थान ने बताया हो, उसी तरह से यूनिफॉर्म पहननी चाहिए। अदालत ने कहा कि ड्रेस की अनिवार्यता से किसी की धार्मिक मान्यताओं पर प्रभाव नहीं पड़ता है। वहीं कर्नाटक सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यदि क्लास का हर बच्चा अपनी धार्मिक पुस्तकों और रिवाजों का हवाला देते हुए ड्रेस पहनने की बात करेगा तो फिर कोई नियम ही नहीं रह जाएगा। इससे समानता के सिद्धांत को भी नुकसान होगा।
हाई कोर्ट के फैसले पर भी SC में उठा सवाल
अदालत ने इस दौरान कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले पर भी टिप्पणी की और कहा कि इस्लाम में हिजाब अनिवार्य है या नहीं, इसे आधार बनाते हुए सुनवाई करना गलत था। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हिजाब पर बैन का विरोध करने वालों ने ही अदालत में यह तर्क दिया था कि यह इस्लाम में जरूरी है। हालांकि वे कोर्ट में यह नहीं साबित कर सके कि हिजाब की अनिवार्यता का कहां वर्णन किया गया है और कैसे यह जरूरी है।
केरल के स्कूल में भी हिजाब पहनकर नोएंट्री, छिड़ गया विवाद
इस बीच केरल के एक स्कूल में भी हिजाब पर रोक लगाए जाने से मुस्लिम संगठन भड़क गए हैं। कोझिकोड के एक स्कूल ने मंगलवार को 11वीं की एक छात्रा को हिजाब पहनकर क्लास में बैठने से रोक दिया था। इस पर मुस्लिम संगठनों ने ऐतराज जताया है। मुस्लिम यूथ लीग नाम के संगठन ने कहा कि हम इस बात से हैरान हैं कि स्कूल की मनमानी के बाद भी कैसे अब तक प्रशासन ने उसके खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं लिया है। लड़की के परिजनों ने स्कूल शिक्षा मंत्री से मिलकर शिकायत की है।
पाकिस्तान में नहीं है हिजाब पर प्रतिबंध
भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान मुस्लिम बाहुल देश हैं। हालांकि, पाकिस्तान में हिजाब पर कोई पाबंदी नहीं हैं। यहां आमतौर पर मुस्लिम महिलाएं बुर्का पहने हुए दिख जाती हैं।
सऊदी अरब में अबाया पहनती हैं महिलाएं
सऊदी अरब में मुस्लिम महिलाओं के लिए अबाया पहनना जरूरी होता है। यह एक तरह की ढीली पोशाक है, जो महिलाओं को पूरी तरह से ढक देता है। हालांकि, यहां हिजाब अनिवार्य नहीं है।
तुर्की ने हिजाब पर लगे प्रतिबंध को हटाया
तुर्की आधिकारिक तौर पर एक सेक्युलर देश है। यहां साल 2013 तक सार्वजनिक इमारतों में हिजाब पहनने पर पाबंदी थी। लेकिन, 2013 में हिजाब पहनने पर लगे प्रतिबंध को वापस ले लिया गया। तुर्की के राष्ट्रपति की पत्नी भी हिजाब पहनती हैं।
ईरान में महिलाओं ने विरोध में काटे बाल
ईरान में इन दिनों हिजाब को लेकर महिलाएं विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। कुछ महिलाओं ने तो इसके विरोध में अपने बाल तक काट दिए हैं। ईरानी नागरिक महसा अमिनी की पुलिस कस्टडी में मौत के बाद हिजाब विवाद और तेज हुआ है। बता दें कि ईरान में 9 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों और महिलाओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य किया गया है।
फ्रांस, बेल्जियम और रूस में कड़े प्रतिबंध
फ्रांस और बेल्जियम में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध हैं। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति निकोला सारकोजी ने हिजाब पर प्रतिबंध लगाया था। फ्रांस में नियम के उल्लंघन पर जुर्माने का भी प्रावधान है। वहीं, बेल्जियम ने जुलाई 2011 में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाया था। साथ ही रूस में 2012 में सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने पर बैन लगाया था
जर्मनी, इटली व नीदरलैंड्स में ये हैं नियम
जर्मनी, इटली व नीदरलैंड्स में हिजाब पर पूरी तरह से प्रतिबंध हैं। नीदरलैंड्स में इसे लेकर कानून भी बनाया गया है। वहीं, इटली के कुछ शहरों में बुर्का पहनने पर प्रतिबंध हैं, इसके अलावा जर्मनी में हिजाब पर प्रतिबंध तो है, लेकिन इसे लेकर कोई कानून नहीं है।
इन देशों में भी हैं पाबंदियां
आस्ट्रिया, नार्वे और स्पेन में भी आंशिक रूप से चेहरा ढकने पर प्रतिबंध लगाया गया है। जबकि, मलेशिया में हिजाब पर निर्णय महिलाओं पर छोड़ा गया है। इसके अलावा इंडोनेशिया में महिलाओं का सिर ढंकना पूरी तरह से वैकल्पिक है। इसके लिए यहां कोई नियम नहीं है। जबकि जॉर्डन में महिलाओं का सिर ढंकने पर कोई पाबंदी नहीं है। वहीं, चीन में भी हिजाब पहनने पर पूरी तरह से पाबंदी है।
हिजाब पर आर-पार के मूड में क्यों और कैसे आ गई हैं ईरान की महिलाएं?
दुनिया के 195 देशों में से 57 मुस्लिम बहुल हैं. इनमें से 8 में शरिया कानून का सख्ती से पालन होता है. लेकिन सिर्फ 2 देश ही ऐसे हैं, जहां महिलाओं को घर से निकलने पर हिजाब पहनना अनिवार्य है. ये दो देश हैं शिया बहुल ईरान और तालिबान शासित अफगानिस्तान. ईरान में किसी महिला के इस कानून को तोड़ने पर बेहद सख्त सजा दी जाती है. उसे 74 कोड़े (चाबुक) लगाने से लेकर 16 साल की जेल तक हो सकती है. इतनी सख्ती के बाद भी ईरान की 72 फीसदी आबादी हिजाब को अनिवार्य करने के खिलाफ है.
वैसे, ईरान में हिजाब को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं. ये सिलसिला करीब एक दशक से जारी है. लेकिन इस बार पुलिस कस्टडी में 22 साल की महसा अमिनी की मौत ने ‘एंटी हिजाब’ मूवमेंट को और ज्यादा भड़का दिया है. अमिनी को बिना हिजाब राजधानी तेहरान में घूमने पर गिरफ्तार किया गया. अरेस्ट होने के कुछ देर बाद ही वो कोमा में चली गईं और 3 दिन बाद (16 सितंबर) को पुलिस कस्टडी में उनकी मौत हो गई.
अब ईरान में जगह-जगह महिलाएं एंटी हिजाब कैंपेन चला रही हैं. शहर के किसी भी चौक-चौराहे पर महिलाओं की भीड़ इकट्ठा होती है और सामूहिक रूप से हिजाब उतारकर विरोध दर्ज कराया जाता है. खौफनाक सजा को दरकिनार कर ईरान जैसे कट्टरवादी देश में महिलाएं अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर प्रोटेस्ट कर रही हैं.
चार दशक पहले ऐसा नहीं था ईरान
43 साल पहले तक ईरान ऐसा नहीं था. पश्चिमी सभ्यता का बोलबाला होने के कारण यहां खुलापन था. पहनावे को लेकर कोई कोई रोकटोक नहीं थी. महिलाएं कुछ भी पहनकर कहीं भी आ-जा सकती थीं. 1979 ईरान के लिए इस्लामिक क्रांति का दौर लेकर आया. शाह मोहम्मद रेजा पहलवी को हटाकर धार्मिक नेता अयातुल्लाह खोमैनी ने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले ली और पूरे देश में शरिया कानून लागू कर दिया.
हिजाब के खिलाफ कब शुरू हुए प्रोटेस्ट
ईरान में हिजाब अनिवार्य होते ही छिटपुट विरोध प्रदर्शन भी शुरू हो गए, लेकिन इस आंदोलन को असली हवा 2014 में मिली. दरअसल, ईरान की राजनीतिक पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने लंदन की गलियों में टहलते हुए अपनी एक फोटो फेसबुक पर पोस्ट कर दी. अलीनेजाद की फोटो पर सैकड़ों ईरानी महिलाओं के कमेंट आए. इससे प्रभावित होकर उन्होंने एक और फोटो पोस्ट किया. ये फोटो तब का था, जब मसीह अलीनेजाद ईरान में थीं. इसमें भी वो हिजाब नहीं पहने हुई थीं.इसमें भी वो हिजाब नहीं पहने हुई थीं. ईरान की महिलाओं ने भी बिना हिजाब के उन्हें अपनी फोटो भेजना शुरू कर दिया और इस तरह एक आंदोलन का जन्म हुआ. अलीनेजाद अब अमेरिका में रहती हैं.
70 लाख लोग अभियान से जुड़े
2014 में हिजाब के खिलाफ विरोध के लिए माय स्टील्थी फ्रीडम नामक एक फेसबुक पेज बनाया गया. इस पेज के जरिए एकत्रित हुईं महिलाओं ने सोशल मीडिया पर ‘मेरी गुम आवाज’ , हिजाब में पुरुष , मेरा कैमरा मेरा हथियार है जैसी कई पहल कीं. मई 2017 में White Wednesday (सफेद बुधवार) अभियान चलाया गया. इस अभियान में शामिल महिलाएं हिजाब के खिलाफ सफेद कपड़े पहनकर विरोध करती है.आज के समय इस अभियान से दुनियाभर के करीब 70 लाख लोग जुड़े हुए हैं. इन 70 लाख में से 80 फीसदी ईरान के है.
ईरान के लोग हिजाब के खिलाफ
हिजाब को लेकर ईरान में जारी सख्ती को देखते हुए नीदरलैंड की टिलबर्ग यूनिवर्सिटी (Tilburg University) के असिस्टेंट प्रोफेसर अम्मार मालकी (AMMAR MALEKI) ने 2020 में एक सर्वे किया. ईरानी मूल के 50 हजार लोग इस सर्वे का हिस्सा बने. 15 दिन तक चले इस सर्वे के नतीजों ने हर किसी को चौंका दिया. रिजल्ट में पाया गया कि ईरान की 72 फीसदी आबादी हिजाब को अनिवार्य किए जाने के खिलाफ है.
गैर मुस्लिमों के लिए भी यही नियम
वैसे तो कई फीमेल एक्टिविस्ट अपनी जान दांव पर लगाकर ईरान की महिलाओं के अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं. लेकिन एल्नाज सरबर का नाम इस लिस्ट में सबसे आगे है. एल्नाज ‘माय स्टील्थी फ्रीडम’ अभियान से भी जुड़ी हुई हैं. एल्नाज बताती हैं, ‘मैं ईरान में इस्लामिक क्रांति आने के बाद पैदा हुई. बचपन से मैंने हिजाब की परंपरा को देखा है. बिना हिजाब के स्कूल या ऑफिस में किसी महिला को एंट्री नहीं मिलती. ईरान में सार्वजनिक जगह पर हिजाब न पहनने की सजा 74 कोड़े मारकर दी जाती है. इससे कोई मतलब नहीं है कि आप मुस्लिम हैं या किसी और धर्म से वास्ता रखते हैं. टूरिस्ट पर भी यही निमय लागू होते हैं.