स्कूल के जिन कमरों में क से कबूतर और च से चरखा के शांतिस्वरूप स्वर फूटते थे, अब कई जगह क से कट्टा और च से चाकू की प्रवृत्ति विकसित हो रही। यह मनोदशा कहां और किस हद तक ले जाती है, इसके कई उदाहरण हैं। दो दिन पहले समस्तीपुर के अंगारघाट इलाके में नौवीं कक्षा के तीन छात्रों ने मिलकर सहपाठी का गला काट दिया। विवाद महज सीट पर बैठने को लेकर था। बीते 29 अगस्त को पश्चिम चंपारण के बेतिया में नौवीं-10वीं के छात्रों ने पिकनिक पर ले गए कार चालक की गला दबाकर हत्या कर दी। कार को गोपालगंज में एक युवक से एक लाख 30 हजार में बेच भी दिया।
क्लास में कट्टा लेकर पहुंच गया
इससे पहले जुलाई में समस्तीपुर के रोसड़ा स्थित करियन उत्क्रमित मध्य विद्यालय में एक छात्र के पास से कट्टा बरामद किया गया था। इस दौर में ये घटनाएं आखिरी नहीं हैं, क्योंकि जिस उम्र में किशोरों को स्कूल और क्लासरूम में होना चाहिए, उस पड़ाव पर वे कट्टा और चाकू लेकर न सिर्फ घूम रहे, बल्कि हत्या जैसी वारदात को अंजाम दे रहे। भविष्य के लिए यह खतरनाक संकेत है। क्लासरूम के छोटे-छोटे विवाद बाहर निकलकर बड़ी घटना का स्वरूप ले रहे हैं। स्कूल प्रबंधन भी यह कहकर बच रहा कि बाहर की घटना के लिए वह जिम्मेदार नहीं है। यह बिल्कुल नहीं देखा जा रहा कि विवाद का मूल क्या और कहां है।
स्कूल के भवन से कर रहे थे फायरिंग
करीब डेढ़ माह पहले समस्तीपुर के काशीपुर मोहल्ले के एक स्कूल का वीडियो वायरल हुआ था। इसमें कुछ छात्र स्कूल के पीछे के भवन से फायरिंग कर रहे थे। वीडियो के आधार पर पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर उन्हें धर दबोचा। एक सप्ताह पहले भी टाउन थाने की पुलिस ने एक छात्र के पास से कट्टा बरामद किया था। इससे पूर्व उच्च विद्यालय धर्मपुर में छात्रों के बीच विवाद में एक युवक ने विद्यालय परिसर में ही फायरिंग कर दी थी। पैर में गोली लगने से वहां के शिक्षक घायल हो गए थे। सोमवार को साथियों के हमले में घायल छात्र विश्वजीत कुमार की मां रिंकू देवी का कहना है कि विद्यालय प्रशासन को संदिग्ध प्रवृत्ति वाले छात्रों पर नजर रखनी चाहिए।
स्वजन, शिक्षक और बच्चों में संवादहीनता बड़ा कारण
स्वजन का बच्चों से संवाद कम हो जाना, इस स्थिति के लिए जवाबदेह है। माता-पिता बच्चों को अधिक समय नहीं दे पा रहे हैं। बच्चे स्कूल में क्या कर रहे, वहां किस प्रकार की एक्टिविटी चल रही, इसपर न बच्चों से बात करते हैं और न ही शिक्षकों से संवाद हो रहा है। विषयगत पढ़ाई में ऐसा कंटेंट भी नहीं जिससे बच्चों में नैतिक मूल्य का निर्माण हो। इस प्रवृत्ति के लिए वे फिल्में और वेब सीरीज भी जवाबदेह हैं, जिनमें कम उम्र के अपराधी को हीरो बनाकर पर्दे पर प्रस्तुत किया जाता है। इनसे बचने के लिए शिक्षकों को छात्रों से आमने-सामने बातचीत करनी चाहिए। उनकी परेशानियों और मस्तिष्क में चल रहीं बातों पर नजर रखनी चाहिए।
स्कूली पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा होना जरूरी
बच्चों में ऐसी प्रवृत्ति चिंतनीय है। इंटरनेट मीडिया पर ऐसी कई तस्वीरें और वीडियो दिखती हैं। उनकी पहचान कर कार्रवाई हो रही है। साथ ही, छात्रों में इस तरह के विचार उत्पन्न न हों, इसके लिए शिक्षकों व अभिभावकों से संवाद स्थापित किया जाएगा। छात्रों में रचनात्मकता के संचार के लिए पहल की जाएगी।
सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि आज न केवल आपराधिक मन: स्थिति वाले युवा बल्कि योग्य किशोर भी इस तरह के नृशंस अपराधों में शामिल हो जाते है। युवाओं के पाठ्यक्रम को रोजगार उन्मुखी बनाने की जरूरत है। युवाओं के नैतिक एवं चारित्रिक उन्नयन हेतु स्कूली पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाना है।