दूनिया की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपनी नई पहचान बनाई है। आकार के मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। यही नहीं कोविड महामारी के दौरान बुरी तरह प्रभावित हुई अर्थव्यवस्था की सेहत में अब सुधार दिख रहा है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ने पिछले साल के मुकाबले १३.५ फीसद की वृद्धि दर्ज की है। हालांकि अर्थव्यवस्था की पहली तिमाही की यह रफ्तार भारतीय रिजर्व बैंक के आकलन १६.२ से कम रही है। बावजूद इसके इस बात को स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए कि महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था को जो नुकसान पहुंचा था उससे उबरने की सही दिशा पकड़ ली है। अलबत्ता‚ हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि रिजर्व बैंक ने इस अवधि के लिए १६.२ फीसद की वृद्धि दर का अनुमान लगाया था। यानी अभी भी अर्थव्यवस्था में ऐसा कुछ है जो उसके स्वाभाविक विकास को बाधित कर रहा है। इसकी चर्चा हम आगे करेंगे‚ लेकिन इससे पूर्व हमें बीते तीन साल के कुछ आंकड़ों पर नजर डालनी होगी‚ जिससे अर्थव्यवस्था की वास्तविक तस्वीर को समझने में आसानी हो।
कोविड से ऐन पहले के वित्त वर्ष यानी २०१९–२० की पहली तिमाही में जीडीपी का आकार ३५.४९ लाख करोड़ रु पये का था। बावजूद इसके इस वित्त वर्ष में जीडीपी का आकार १४५.६९ लाख करोड़ रु पये तक ही पहुंच पाया। इसलिए वित्त वर्ष २०१८–१९ के मुकाबले आर्थिक विकास दर या जीडीपी दर मात्र चार फीसद पर ही सिमट गई। अगले वित्त वर्ष यानी २०२०–२१ से और आगे बढ़ने की आस बंधी थी‚ लेकिन मार्च २०२० में कोविड के चलते लॉकडाउन की घोषणा हो गई और देश भर में आर्थिक गतिविधियां ठप हो गइ। नतीजा वित्त वर्ष २०२०–२१ की पहली तिमाही में जीडीपी का आकार घटकर २७.०३ लाख करोड़ पर आ गया। विकास दर में लगभग २४ फीसद की गिरावट दर्ज की गई। अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में स्थितियां सुधरी और जीडीपी का आकार २०२१–२२ में २०.१ फीसद बढ़कर ३२.४६ लाख करोड़ रुपये हो गया‚ लेकिन अभी भी कोविड पूर्व की पहली तिमाही के ३५.४९ लाख करोड़ रु पये से कुछ कम ही था। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही ने इस बाधा को पार किया है और वित्त वर्ष २०१९–२० की पहली तिमाही के आंकड़े को पार कर जीडीपी का आकार ३६.८५ लाख करोड़ रु पये हुआ है। यानी यदि कोविड की अवधि को निकाल दिया जाए तो अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अभी हम लगभग २०१९ के स्तर पर ही खड़े हैं। आर्थिक मोर्चे पर अब हमें लगभग वहीं से शुरुआत करनी है जहां दो साल पहले हम पीछे छूट गए थे। अब बात करते हैं उन परेशानियों की जो अभी भी अर्थव्यवस्था की रफ्तार को बाधित कर रही हैं। इस वक्त की सबसे बड़ी अड़चन है महंगाई। हम सभी ने देखा है कि रिजर्व बैंक अब तक तीन बार रेपो रेट की दरों में वृद्धि कर चुका है‚ लेकिन उसका असर महंगाई पर अभी दिखा नहीं है। रिजर्व बैंक के मुताबिक दरों में बदलाव के उसके निर्णयों का असर जमीन पर दिखने में आठ से नौ महीने का वक्त लगता है। यानी दो–तीन महीने अभी और इंतजार करना होगा। महंगाई का सर्वाधिक असर इस बार देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ा है। ग्रामीण क्षेत्रों की महंगाई की दर शहरों के मुकाबले ऊपर बनी हुई है। इस बार मानसून में देरी के चलते धान की बुआई भी प्रभावित हुई। इसका असर पैदावार पर भी होगा। मनरेगा में भी रोजगार की तेज मांग देखने को मिली है जो यह दर्शाती है ग्रामीण अर्थव्यवस्था दबाव में है। भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत में ग्रामीण सेक्टर का योगदान काफी महत्वपूर्ण होता है। पहली तिमाही में व्यापार‚ होटल‚ ट्रांसपोर्ट‚ कम्यूनिकेशन आदि क्षेत्र की सेवाओं में १६.३ फीसद की वृद्धि दर दर्ज की गई है‚ लेकिन अभी भी यह कोविड पूर्व २०१९–२० की पहली तिमाही के २१.६ फीसद की वृद्धि दर से काफी पीछे है। अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने की दिशा में इस क्षेत्र को अभी और आगे आना होगा।
वहीं निर्यात के मोर्चे पर अभी भी दिक्कत है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार निर्यात बाजार में भारत की हिस्सेदारी को बढ़ने नहीं दे रही है। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र अभी भी पटरी पर नहीं आ पाया है। पहली तिमाही में मैन्यूफैक्चरिंग की वृद्धि दर मात्र ८.६ फीसद रही है‚ जबकि अनुमान इससे अधिक का था‚ लेकिन कृषि विकास दर अनुमान से अधिक ४.५ फीसद रही है। दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारतीय अर्थव्यवस्था का यह प्रदर्शन उत्साहवर्धक है। हालांकि महंगाई और बेरोजगारी के आंकड़े अभी भी चिंता का सबब बने हुए हैं। इसलिए नीति निर्माताओं की परीक्षा का भी यही सही वक्त है। कोविड महामारी के पूर्व की आर्थिक स्थिति को तो हमने पा लिया है। अब यहां से किस रफ्तार से आगे जाते हैं यह सरकार की नीतियों पर ही निर्भर करेगा। रिजर्व बैंक का अनुमान चालू वित्त वित्त वर्ष के लिए ७.३ फीसद की आर्थिक विकास दर का है‚ जबकि आइएमएफ ने इसी सप्ताह अपना अनुमान घटाकर ७.४ फीसद की विकास दर किया है।