प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की विदेश नीति क्या अनावश्यक रूप से अतिसक्रियता का शिकार हो गई है, इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार टीका-टिप्पणी कर रहे हैं।
हिंद-प्रशांत और यूक्रेन युद्ध की चर्चा के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और इस्रइल एवं संयुक्त अरब अमीरात के नेताओं के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये शिखर वार्ता की। इसे चारों देशों के नामों के पहले अक्षर के आधार पर आई 2 यू 2 की संज्ञा दी गई। कुछ विश्लेषकों ने इसे पश्चिमी एशिया के ‘क्वाड’ की संज्ञा भी दी है। हिंद-प्रशांत के बाद यह किन्हीं चार देशों का दूसरा मंच है। हिंद-प्रशांत के क्वाड की तरह ही आई 2 यू 2 के बारे में भी सहयोगी देशों की अलग-अलग राय और रणनीतिक उद्देश्य हैं। इस मंच की पहल करने वाले जो बाइडेन पश्चिमी एशिया में चीन और रूस के प्रभाव को कम करने तथा ईरान के परमाणु कार्यक्रमों के मद्देनजर उसकी घेराबंदी का मंसूबा रखते हैं। इस संबंध में इस्रइल अमेरिका से दो कदम आगे है।
अमेरिकी राष्ट्रपति की इस्रइल यात्रा के दौरान मेजबान प्रधानमंत्री येर लैपिड ने ईरान के विरुद्ध बिना देरी किए सैनिक कार्रवाई किए जाने पर जोर दिया। येर लैपिड के अनुसार बातचीत और कूटनीति से इस मसले का हल नहीं हो सकता। उन्होंने यूक्रेन युद्ध का हवाला देते हुए कहा कि ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने का सबसे कारगर रास्ता सैनिक कार्रवाई ही है। दूसरी ओर, बाइडेन का मानना है कि बातचीत और कूटनीति के जरिये लक्ष्य हासिल किया जा सकता है तथा सैनिक कार्रवाई की नौबत नहीं आएगी। दोनों देशों ने बाद में जारी संयुक्त घोषणा पत्र में कहा कि ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने के लिए दोनों देश कृतसंकल्प हैं।
जाहिर है कि इस्रइल सैनिक कार्रवाई को पहला और अमेरिका अंतिम विकल्प मानता है। अमेरिका और इस्रइल की ओर से युद्ध की धमकियों पर ईरान ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इन देशों को किसी भी सैन्य दु:स्साहस की भारी कीमत चुकानी होगी। इस वाक युद्ध और संभावित सैन्य कार्रवाई की धमकी वाले माहौल में मोदी ने आई 2यू 2 में शिरकत क्यों की? इसके पक्ष -विपक्ष में तर्क दिए जा सकते हैं। वास्तव में ईरान भारत का निकट सहयोगी देश ही नहीं बल्कि चाबहार बंदरगाह के जरिये रूस और मध्य एशिया तक भारत की पहुंच बनाने का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। भारत इस बात का जोखिम नहीं उठा सकता कि चाबहार बंदरगाह स्थित उसकी रणनीतिक संपदा ठप पड़ जाए। आई2यू2 के संबंध में यह तर्क दिया जा सकता है कि जहां तक भारत का संबंध है वह इस मंच को आर्थिक फायदे के नजरिये से देखता है। शिखर वार्ता के दौरान संयुक्त अरब अमीरात ने भारत में खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में निवेश करने की घोषणा की। चारों देशों ने सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों की पहचान कर संयुक्त परियोजनाएं शुरू करने का निश्चय किया। जिस समय आई2यू2 शिखर वार्ता के आयोजन की घोषणा की गई, उसी समय क्रेमलिन की ओर से कहा गया कि राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन अगले सप्ताह ईरान की यात्रा पर जाने वाले हैं। जाहिर है कि पुतिन पश्चिम एशिया में अमेरिका के मंसूबों को नाकाम बनाने के लिए कूटनीतिक अभियान चला रहे हैं। यह देखने वाली बात होगी कि अमेरिका और इस्रइल की ओर से दी जा रही धमकियों के संदर्भ में पुतिन ईरान को किस सीमा तक भरोसा दिलाते हैं।
पश्चिम एशिया में उभर रहे ‘सुन्नी बनाम शिया’ गुटों के बीच शक्ति स्पर्धा इस क्षेत्र के लिए चिंता की बात है। मजहबी फिरकापरस्ती के आधार पर ईरान और खाड़ी देश यदि किसी संघर्ष में उलझते हैं तो यह दुनिया के लिए एक नया संकट होगा। यूक्रेन की तरह ही पश्चिमी एशिया के संभावित संघर्ष में भारत किसी एक पक्ष का साथ देने के बजाय तटस्थ ही रहेगा। इस बीच आई2यू2 मंच के जरिये समस्या का समाधान करने पर जोर दे सकता है। आई2यू2 शिखर वार्ता नुपूर शर्मा प्रकरण को लेकर मुस्लिम देशों में हुई तीखी प्रतिक्रिया के बाद आयोजित हुई। प्रधानमंत्री मोदी को इससे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में राहत मिली। शिखर वार्ता से यह संदेश गया कि भारत में अल्पसंख्यक वर्ग की सुरक्षा और कल्याण के संबंध में मोदी सरकार के कथन पर खाड़ी देश विास करते हैं।