गुरुओं की हालत इधर इतनी पतली है साहब कि एक गुरू तो ओए गुरू‚ ओए गुरू करते करते अंदर हो गए। किसी ने यह तक नहीं पूछा कि यह क्या हुआ गुरू! कहावत तो खैर अपनी जगह‚ पर गुरू सचमुच गुड रह गया और चेला शक्कर निकल गया। इधर‚ कोरोना से लेकर बढती महंगाई और बेरोजगारी में मार्केटिंग गुरुओं की हालत भी खराब कर रखी है। क्या टिप्स दें बताओ। उधर‚ अमीर हैं कि अपने मुनाफे बढाए ही चले जा रहे हैं बिना मार्केटिंग गुरुओं की टिप्स के ही। जब सरकार साथ है तो मार्केटिंग गुरुओं के टिप्स को कौन पूछता है। कोरोना तो साहब इतना बडा विलेन निकला कि उसने धर्मगुरुओं तक को नहीं बख्शा। वे न तो कथावाचन कर पा रहे हैं और न ही प्रवचन दे पा रहे हैं। मौका ही नहीं मिला। फायदे में वे ही रहे जो बिस्कुट बनाने या तेल और मंजन बेचने के धंधे में चले गए थे। ऐसे धंधे करने वाले गुरुओं की हालत कुछ–कुछ वैसी ही है कि पढे फारसी‚ बेचे तेल। आजकल के पढे–लिखे बेरोजगार तो यह भी नहीं कर पा रहे।
इसके बाद स्कूलों में ठेके पर पढाने वाले गुरूजी हैं। सरकारें उनकी ठेकेदार हैं। सरकारें अब हर चीज की ठेकेदार हैं। जनतंत्र की ठेकेदार हैं‚ देशभक्ति और राष्ट्रवाद की ठेकेदार हैं‚ बल्कि अब तो वे धर्म की भी ठेकेदार हैं। हालांकि इन सबकी ठेकेदार होने से वे इंकार कर सकती हैं। लेकिन स्कूलों में पढाने वाले गुरुजनों की तो निश्चित रूप से ठेकेदार हैं‚ और उनसे वैसे ही सुलूक करती हैं जैसे ठेकेदार अपने मजदूरों से किया करते हैं। गुरुवाला सम्मान उनकी डिग्रियों की तरह ही रुलता–फिरता है। हालांकि उनके लिए संतोष की बात यह है कि गुरू तो हमेशा नाम ही अभाव का रहा है। ये गुरुजन बरसों से नियमित होने के लिए तरस रहे हैं। सरकारी नौकरी की उनकी चाह माशूका की चाह को भी पीछे छोडती है। लेकिन जैसे प्यार में आशिक रुसवा होता है‚ वैसे ही सरकारी नौकरी की चाह में ये गुरुजन रुसवा होते हैं। बल्कि अब तो मामला स्कूलों तक ही सीमित नहीं रहा। कालेजों और विश्वविद्यालयों में भी अब गुरुजन ठेके पर ही काम करते हैं‚ और दिहाडीदार की तरह की तन्ख्वाह पाते हैं। ऐसे में जब तमाम तरह के गुरुओं की हालत इतनी पतली है‚ अच्छी खबर यह है कि हम विश्व गुरु बन गए हैं। हर तरफ मुनाफी हो रही है‚ घोषणाएं हो रही हैं कि हम विश्व गुरु बन गए हैं। लेकिन भैया विश्व गुरु बनकर हमारी हालत बस ठेके वाले गुरुओं जैसी नहीं होनी चाहिए। पता चला कि विश्व गुरु बन गए‚ पर न भूख कम हो रही है‚ और न ही बेरोजगारी।