सीएए–एनआरसी के विवादित मुद्दे को गृह मंत्री अमित शाह ने फिर छेड़़ दिया है। प. बंगाल के दौरे पर सिलिगुड़़ी में एक रैली में उन्होंने यह कहकर हलचल मचा दी कि कोविड का असर खत्म होने के बाद नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू किया जाएगा। सीएए की मुखर विरोधी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ललकरते हुए उन्होंने कहा‚ ‘ममता दीदी‚ आप तो यही चाहती हो कि घुसपैठ चलती रहे‚ मगर कान खोलकर तृणमूल वाले सुन लें‚ सीएए वास्तविकता था‚ वास्तविकता है‚ और वास्तविकता रहने वाला है। इसलिए आप कुछ नहीं बदल सकते हो।’ ‘तृणमूल कांग्रेस सीएए के बारे में अफवाहें फैला रही है कि सीएए जमीन पर लागू नहीं होगा। लेकिन कोरोना की लहर खत्म होते ही सीएए को हम जमीन पर उतार कर दिखाएंगे।’ इस बयान पर तुरंत तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए ममता ने इसे ‘गंदी बात’ करार दिया। कहा‚‘यह शाह की योजना है। हम किसी नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन नहीं चाहते। सब मिल जुलकर रहें। एकता ही हमारी ताकत है। यह सब विधानसभा चुनावों में भाजपा की करारी हार से निकली खीझ है।’ सीएए में अफगानिस्तान‚ बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू‚ सिख‚ बौद्ध‚ जैन‚ पारसी और ईसाई धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियमों को आसान बनाया गया है। लेकिन इससे मुसलमानों को बाहर रखा गया है। यही विवाद की जड़ है। सीएए विधेयक ९ दिसम्बर‚ २०१९ को लोक सभा में पास किया गया था और दो दिन बाद राज्य सभा में भी पास हो गया। २१ दिसम्बर‚ २०१९ को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही इसने कानून का रूप ले लिया। लेकिन इस दौरान देश भर में यहां तक कि विदेशों में भी विरोध प्रदर्शन हुए। सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान ८० से अधिक लोगों ने जान गंवाई। असम‚ यूपी‚ कर्नाटक‚ मेघालय और दिल्ली में विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा हुई थी। दिल्ली के शाहीन बाग में कई महीने लंबा महिलाओं का धरना चला‚ जिस कोविड महामारी शुरू होने के बाद खत्म किया गया। सीएए लागू तो हो गया है‚ लेकिन उस पर नियम बनाने का काम अधूरा है। कानून की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है‚ जिस पर फैसला लंबित है। यद्यपि प्रदर्शनों के बाद यूपी में वसूले गए जुर्माने लौटाए जा रहे हैं। एनआरसी प्रक्रिया के दौरान असम में लाखों हिंदू ही संकट में आ गए लेकिन भाजपा चुनावी मुद्दे बनाना और उन्हें गर्माए रखना जानती है। इसे भी २०२४ की तैयारी माना जाना चाहिए।
राजनीति समाज के बदलाव का माध्यम रही है………….
राजनीति समाज के बदलाव का माध्यम रही है। अफसोस की बात है कि समय के साथ इसकी यह धार कुंद...