चैत मास के शुक्ल पक्ष की नवमी मर्यादा पुरु षोत्तम भगवान श्रीराम के प्राकट्य की पावन तिथि है। चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि को अभिजीत मुहूर्त में श्रीराम का अवतरण बताया गया है। इस तिथि को श्रीराम नवमी के रूप में मनाया जाता है। श्रीराम नवमी केवल धार्मिक पर्व नहीं है। यह मानव समाज में फैले कलुषित वैचारिक व व्यावहारिक पक्ष को दूर करने के संकल्प का पर्व है। यह समाज के अभावों को पूरा करने के प्रयासों और सदाशयता‚ सहिष्णुता और लोकमंगल के कार्यों को करने की संकल्पना को साकार करने का दिन है। यह मर्यादा से परिपूर्ण एक जीवनशैली को आत्मसात करने का संदेश देने वाला पर्व है। श्रीराम के आविर्भाव की तिथि पर वसुंधरा भी वात्सल्य से परिपूरित होकर मनुष्य को आशीष प्रदान करती हैं। श्रीराम का जीवन एक आदर्श है और रामराज्य की अवधारणा आज भी प्रासंगिक व अनुकरणीय है।
रामराज्य को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी इन शब्दों में वर्णित करते हैं– दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज निहं काहुहि ब्यापा॥ अर्थात राम राज्य में सभी को दैहिक‚ दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति मिल गई। वहीं वाल्मीकि रामायण में भरत जी रामराज्य के विलक्षण प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहते हैं‚ ‘राघव! आपके राज्य पर अभिषिक्त हुए एक मास से अधिक समय हो गया। तब से सभी लोग निरोग दिखाई देते हैं। बूढ़े प्राणियों के पास भी मृत्यु नहीं फटकती है। त्रुटियाँ बिना कष्ट के प्रसव करती हैं। सभी मनुष्यों के शरीर हृष्ट पुष्ट दिखाई देते हैं। राजन! पुरवासियों में बड़ा हर्ष छा रहा है। राजन नगर तथा जनपद के लोग इस पुरी में कहते हैं कि हमारे लिए चिरकाल तक ऐसे ही प्रभावशाली राजा रहें।’
जैसा कि विदित है भगवान श्रीराम ने अयोध्या का शासन संभाला तो उन्होंने कई वर्षों तक भारत पर शासन किया। श्रीराम के काल में रावण‚ बाली‚ जनक और अहिरावण नाम के शासक थे जिनका अंत कर दिया गया। रामराज्य कोरी कल्पना नहीं है‚ अपितु यह मर्यादित जीवनशैली‚ शुद्ध आचरण और नीतिगत राजधर्म का संतुलन है। इसे चरितार्थ करना ही रामराज्य है। कहा जाता है कि धर्म में राजनीति आ जाए तो धर्म अशुद्ध हो जाता है‚ लेकिन यदि राजनीति से धर्म जुड़ जाए राजनीति शुद्ध व सफल हो जाती है। रामराज्य को लोकतंत्र का परिमार्जित रूप माना जाता है। महात्मा गांधी को भी रामराज्य के स्थापना की इच्छा थी। भारत में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद ग्राम स्वराज के रूप में गांधी ने रामराज्य की कल्पना की थी। गांधी ने रामराज्य के बारे में लिखा था‚ ‘स्वराज्य के चाहे जितने अर्थ किए जाएं‚ लेकिन मेरे लिए वह रामराज्य ही है। अगर कोई रामराज्य शब्द का बुरा मानेगा तो मैं धर्मराज्य कहने को तैयार हूं।’ दरअसल‚ रामराज्य का स्थायी भाव अधिकतम जनसंख्या का अधिकतम कल्याण है। हजारों सालों में न जाने कितने साम्राज्य आए–गए। सभ्यता व जीवन–यापन के तरीकों में भी बदलाव आए। लेकिन राम‚ रामायण और रामराज्य आज भी प्रासंगिक हैं। ज्ञात हो कि अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि से जुड़ा विवाद समाप्त हो चुका है और दिव्य–भव्य राम मंदिर का निर्माण अपनी पूर्णता की ओर से है।
राम मंदिर का निर्माण भी रामराज्य को दर्शाता है क्योंकि भविष्य में वहां पर्यटन का विकास होगा। कई लोग तीर्थाटन करने पहुंचेंगे तो कई लोग पर्यटन के उद्ेश्य से पहुंचेंगे। सुविधाएं विकसित हो रही हैं तो लोग अयोध्या दर्शन को लगातार जाएंगे। इससे वहां के स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का मार्ग प्रशस्त होगा। तीर्थ क्षेत्र तो वैसे भी साधु–संतों से लेकर पूजन सामग्री बेचने वाले‚ होटल व्यवसायी‚ यहां तक कि वहां के भिक्षुक तक को भूखा नहीं सोने देता। तीर्थ क्षेत्र की यही महिमा है। हर किसी को रोटी मिलती रहे‚ यह रामराज्य की ही संकल्पना का एक भाग है। कुछ घटनाएं प्राकृतिक और स्वाभाविक होती हैं। देश में रामराज्य सा माहौल वर्तमान में भी दृष्ट है। भारत में रामराज्य की शुरुआत हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश नित नई ऊंचाइयां छू रहा है। भाजपा के स्थापना दिवस पर मोदी ने अपने संबोधन में समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने और उसका कल्याण करने की बात कही। उनकी यह सोच रामराज्य से ही प्रेरित है।
सांगठिनक संरचना मजबूत बनाते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करना‚ जनधन बैंक अकाउंट में खाते से लेकर महिलाओं को एलपीजी गैस क्शन देने का कार्य‚ हर घर में शौचालय बनवा कर गांवों को खुले में शौच से मुक्ति दिलाना‚ हर घर को नल से जल की व्यवस्था करना‚ हर किसी के कच्चे मकान को पक्का मकान बनवाना‚ हर किसी गरीब की रोटी सुनिश्चित करना; यह सब रामराज्य से ही उत्प्रेरित है। शहर में रोजगार तो है ही‚ ग्राम स्तर पर भी काम करने वालों के लिए बहुत से अवसर हैं। दृढ़ इच्छाशक्ति और विकासवाद की सोच से हर स्तर पर कार्य हो रहा है। संसाधनों और सुविधाओं में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। आम आदमी के लिए केंद्र सरकार की कई योजनाएं मददगार साबित हो रही हैं। शिक्षा‚ स्वास्थ्य‚ रोजगार‚ पर्यावरण‚ सामाजिक उत्थान को केंद्र में रखते हुए मोदी जी ने लगातार काम किया और कर रहे हैं। ‘सबका साथ–सबका विकास’ के मूलमंत्र पर सरकार लगातार काम कर रही है। मोदी ने संकल्प से सिद्धि का मंत्र देकर एक ऐसा भारत बनाने का संकल्प लिया है जो गंदगी‚ गरीबी‚ जातिवाद‚ संप्रदायवाद‚ आतंकवाद‚ नक्सलवाद से मुक्ति दिलाएगा।
भाजपा के स्थापना दिवस पर मोदी ने तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं की ओर इंगित किया। पहला; आजादी के ७५ साल पूरे हो रहे हैं। दूसरा; तेजी से बदलती वैश्विक परिस्थितियां‚ जिसमें भारत के लिए लगातार नई संभावनाएं बन रही हैं और तीसरा; चार राज्यों में भाजपा की सरकारें वापस लौटी हैं। यह बताने के पीछे उद्देश्य आम आदमी को हर तरह की मिली आजादी‚ बदलती परिस्थितियों में डटे रहने का जीवट तथा उससे लाभ और राज्य व केंद्र सरकार के समन्वय से जनता को मिलने वाले लाभ को बताना है। स्मरण रहे कि राष्ट्रभक्ति राष्ट्रसेवा से प्रेरित होती है और परिवारवाद व्यक्ति सेवा से। श्रीराम जैसा शासन तंत्र आज भी अनुकरणीय है। श्रीराम के शासन में राष्ट्रभक्ति केंद्र में रही और जहां राष्ट्रभक्तिही सर्वोपरि होती है‚ वहां रामराज्य का शंखनाद होता है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में रामराज्य का शंखनाद हो चुका है।