बहुत कम ऐसा होता है कि कोई दल चुनाव में बहुमत हासिल करे और सरकार गठन का समय आये तो इस बात पर चर्चा न हो कि सीएम कौन बनेगाॽ २०२२ के चुनाव परिणाम आने के बाद यूपी में कुछ ऐसा हुआ कि मीडि़या से लेकर पार्टी के अन्दर और बाहर तक इस चर्चा की कोई गुंजाइश ही नहीं बची कि सीएम कौन बनेगा। अपने आप में यह भी ऐतिहासिक है कि एकदम सहज और स्वाभाविक रूप से योगी आदित्यनाथ दोबारा मुख्यमंत्री बने हैं। इसके मूल में दो कारण साफ हैंः– यूपी की जनता का योगी को साथ और पीएम मोदी का उनके कंधे पर हाथ! गृहमंत्री अमित शाह ने योगी के विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद यह कहकर इस बात की पुष्टि भी कर दी कि योगीजी को सीएम जनता ने बनाया है‚ हमने तो सिर्फ नेता चुना है।
सत्तर के दशक में उत्तराखंड़ के कोटद्वार दुगड्ड़ा काण्ड़ी ऋषिकेश मार्ग पर स्थित पन्चूर गांव में वन विभाग में कार्यरत आनन्द सिंह बिष्ट एवं सावित्री देवी के घर जन्म लेने वाले अजय सिंह बिष्ट पढ़ाई पूरी करने और कुछ समय ऋषिकेश में गुजारने के बाद जब गोरक्षपीठाधीश्वर महन्त अवैद्यनाथ की शरण में पहुंचे और ‘दीक्षा’ ग्रहण की‚ तभी से साफगोई और दृढ़ इच्छाशक्ति योगी आदित्यनाथ के व्यक्तित्व का मुख्य हिस्सा बनने लगी। आमतौर पर भारतीय राजनीति में नेताओं की पहचान पारंपरिक व औपचारिक परिवेश की होती है मगर योगी आदित्यनाथ हमेशा इसके उलट रहे। अपनी जाति‚ अपने धर्म से लेकर अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता को स्पष्टता के साथ मुखर होकर जनता के सामने रखने वाले योगी आदित्यनाथ अपने इन्हीं गुणों के कारण जनता के दिल में अलग पहचान बनाने में सफल रहे। यह भी किसी सोची समझी रणनीति के तहत नहीं बल्कि स्वाभाविक रूप से हुआ। एक समय में भारतीय जनता पार्टी का नारा था– ‘जो कहा‚ सो किया’। हकीकत में उत्तर प्रदेश में इस नारे पर अमल करने का काम योगी आदित्यनाथ ने किया। सोचिए ! अजय मोहन बिष्ट से योगी आदित्यनाथ बन जाना क्या आसान है ॽ इसके लिए जरूरत पड़़ती है भावनाओं के विस्तार की‚ सांसारिक सुखों के त्याग की और बिना भटके अपनी राह चलते रहने की।
अपने पिछले कार्यकाल में बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय कई अवसरों पर दिया‚ वह अभूतपूर्व था। मुझे याद आता है अप्रैल २०२१ का आखिरी सप्ताह। कोरोना की दूसरी लहर से त्राहि–त्राहि मची हुई थी। योगी खुद कोरोना संक्रमित हो चुके थे। कोरोना हर रोज अपनी भयावहता जन–जन को बांट रहा था। सरकार के सवालों पर मीडि़या में खूब सवाल उठने लगे थे। खुद भारतीय जनता पार्टी के कुछ बड़े़ नेताओं ने सरकारी प्रयासों पर सवालिया निशान लगाया था। ऐसे में योगी ने निराशापूर्ण माहौल को खत्म करने के लिए संपादकों के साथ वर्चुअल मीटिंग की और उनसे कहा हमें हताश‚ निराश होकर घबराना नहीं है। यह (कोरोना) अभूतपूर्व संकट का समय है। मैं स्वयं पूरे प्रदेश के अस्पतालों का दौरा कर कोविड़ इंतजामों की पड़़ताल करूंगा। इसके बाद वे सीधे कोविड़ वार्ड़ों तक निरीक्षण करने पहुंच गये। २४ घंटे सीधे ‘कोरोना मैनेजमेंट’ की कमान संभाली। नतीजतन एक महीने से भी कम समय में यूपी की तस्वीर बदल गयी। यहां के कोविड़ इंतजामों की प्रशंसा होने लगी। विकास दुबे कांड़ हो या हाथरस की घटना‚ किसान आन्दोलन हो अथवा लखीमपुर काण्ड़‚ गुण्डे़ माफिया से निपटने के तौर–तरीके हों या विकास के कामों को आगे बढ़ाने का अंदाज‚ सब कुछ विवाद रहित वातावरण में मजबूती से हुआ।
चुनाव से पहले बीजेपी के विधायकों की सरकार से नाराजगी का मुद्दा जोरों से उठाया गया। सीएम योगी आदित्यनाथ की मजबूत छवि ने ऐसा पासा पलटा कि जनता ने विधायकों का चेहरा देखा ही नहीं और वोट मोदी–योगी के नाम पर दिया। शुक्रवार को अपने दूसरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री की शपथ लेते–लेते योगी आदित्यनाथ देश–प्रदेश के लिए ब्रांड़ योगी बन चुके हैं। इस ब्रांड़ के कंधे पर ‘सुपर ब्रांड़ मोदी’ का हाथ है। वक्त अभी थोड़़ा दूर है लेकिन लगता यही है कि ‘मोदी–योगी ब्रांड़’ साल २०२४ की राह सुगम जरूर बना देगा।