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यूक्रेन का घटनाक्रम कुछ दिनों या कुछ महीनों का नतीजा नहीं……….

UB India News by UB India News
March 6, 2022
in Lokshbha2024, अन्तर्राष्ट्रीय, खास खबर
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यूक्रेन का घटनाक्रम कुछ दिनों या कुछ महीनों का नतीजा नहीं……….
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यूक्रेन संकट के बाद दुनिया का क्या खाका बनेगा अभी यह निश्चित नहीं है। घटनाएं कोई भी रूप ले सकती हैं। यूक्रेन के जपोरिज्जिया परमाणु संयत्र पर जो गोलीबारी हुई वह दुनिया के भविष्य के लिए भी एक प्रश्नचिह्न है। यदि संयत्र को नुकसान पहुंचा होता और चेरनोबिल जैसा हादसा हुआ होता तो दुनिया कोरोना महामारी से भी बड़े़ संकट में फंस जाती। सौभाग्य से परमाणु संयत्र को नुकसान नहीं पहुंचा और रेडि़योधर्मिता का संकट पैदा नहीं हुआ। यह एक विडंबना है कि यदि आज विश्व मानवता तीसरे विश्वयुद्ध का सामना नहीं कर रही है तो इसका श्रेय परमाणु हथियारों को है। अमेरिका और पश्चिमी देश यूक्रेन में रूस के विरुद्ध यदि सीधे रूप से मैदान में नहीं उतरे हैं तो इसका कारण यह है कि वे परमाणु हथियारों से लैस महाशक्तियों के बीच टकराव को टालना चाहते हैं। हालांकि ये देश यूक्रेन को परोक्ष रूप से हरसंभव मदद देंगे कि वह रूस का मुकाबला कर सके। वास्तव में रूस के लिए अफगानिस्तान जैसे दलदल का निर्माण किया जा रहा है। रूस १९७९ में अफगानिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप करने का खमियाजा भुगत रहा है। अफगानिस्तान में अमेरिका ने पाकिस्तान और मुजाहिदीन के साथ मिलकर रूस के विरुद्ध ऐसा संघर्ष शुरू किया था जिसकी परिणति तत्कालीन सोवियत संघ की हार और अंततः इसके विघटन के रूप में सामने आई थी। यूक्रेन में भी ऐसा हो सकता है। सोवियत संघ के विघटन के बाद आज रूस जिस रूप में है‚ उसका अस्तित्व यूक्रेन के घटनाक्रम से तय होगा। राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन में जो जुआ खेला है उसकी परिणति रूस के विघटन के रूप में नहीं देखना चाहेंगे। जब किसी देश पर अस्तित्व का संकट पैदा होता है तब वह जाने–अनजाने ऐेसे कदम उठाता है जो विनाशकारी सिद्ध होते हैं। इसलिए तीसरे विश्व युद्ध की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है।

यूक्रेन का घटनाक्रम कुछ दिनों या कुछ महीनों का नतीजा नहीं है। बरसों से यह ज्वालामुखी सुलग रहा था जो इस समय फट गया। विश्व नेताओं की यह अदूरदर्शिता या नकारापन है कि उन्होंने बरसों तक भावी संकट से बचाव का कोई उपाय नहीं किया। पिछले दो दशकों के दौरान अफगानिस्तान‚ इराक‚ लीबिया और सीरिया में हुए संघर्षों को रोकने के लिए विश्व नेताओं ने कोई पहल नहीं की। इसके विपरीत उन्होंने इसका उपयोग दुनिया पर अपना दबदबा बनाए रखने के लिए किया। विश्व शांति और स्थिरता की बजाय अपना वर्चस्व कायम करने का यह स्वाभाविक नतीजा था कि महाशक्तियां आमने–सामने आ जाए॥। भारत ने यूक्रेन के घटनाक्रम पर जो रवैया अपनाया है वह दुनिया के लिए मार्गदर्शक हो सकता है। भारत का जोर टकराव को टालने और संघर्ष को समाप्त करने पर रहा है। भारत ने किसी एक पक्ष की तरफदारी करने की बजाय सभी पक्षों के तर्कों को समझने पर जोर दिया। मौजूदा संकट में यूक्रेन का एक पक्ष है तो रूस का भी एक पक्ष है। दोनों देशों की अपनी–अपनी सुरक्षा चिंताएं हैं। आदर्श स्थिति तो यह होती कि सभी पक्षों की सुरक्षा चिंताओं का समाधान किया जाए। अपने इसी तर्कसंगत कूटनीतिक रवैये के कारण भारत ने सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान में भाग नहीं लिया। जाहिर है कि भारत का यह फैसला अमेरिका और पश्चिमी देशों को नागवार गुजरा है। आने वाले दिनों में पश्चिमी देश भारत के प्रति कैसा रवैया अपनाएंगे‚ यह गौर करने वाली बात होगी। भारत के स्वतंत्र रवैये के कारण घरेलू मोर्चे पर जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वाहवाही हो रही है वहीं दूसरी ओर उन्हें पश्चिमी देशों के कोप का सामना करना पड़़ सकता है। वास्तव में मोदी को उन्हीं परिस्थितियों का सामना करना पड़़ सकता है जैसा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय हुआ था। सन ७० के दशक में इंदिरा गांधी कि सरकार को अस्थिर करने के लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों की ओर से तरह–तरह के हथकंडे़ अपनाए गए थे। पूरे कालखंड़ में भारत को बहुत नुकसान उठाना पड़़ा था। मोदी के विरुद्ध भी ऐसे ही हालात पैदा किए जा सकते हैं। मोदी इस विषम परिस्थिति में राष्ट्र हितों को आगे बढ़ाते हुए घरेलू मोर्चे पर स्थिरता कायम रखने में किस सीमा तक सफल होंगे यह भविष्य के गर्भ में है। कुल मिलाकर यूक्रेन संकट के झटके भारत की घरेलू राजनीति में भी महसूस किए जाएंगे॥।

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