कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ने के बावजूद पिछले वित्त वर्ष में प्रदेश के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में २.५ प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह बात शुक्रवार को बिहार विधानमंडल के बजट सत्र के पहले दिन पेश की गयी वित्त वर्ष २०२१–२२ के आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में सामने आयी।
उपमुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री तारकिशोर प्रसाद ने वर्ष २०२१–२२ का आर्थिक सर्वेक्षण पेश करने के बाद संवाददाता सम्मेलन में बताया कि लॉकडाउन के प्रभाव के कारण बिहार का सकल राज्य घरेलू उत्पाद वित्त वर्ष २०२०–२१ में मात्र २.५ प्रतिशत बढा‚ लेकिन यह प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से अधिक है‚ क्योंकि इस अवधि में देश की अर्थव्यवस्था वस्तुतः ७.५ प्रतिशत सिकुड़ गई। इस दौरान वर्तमान मूल्य पर प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय ५०५५५ रुपए थी‚ जबकि देश की ८६६५९ रुपए रही। पिछले पांच वर्षों में राज्य का प्राथमिक क्षेत्र २.३ प्रतिशत‚ द्वितीयक क्षेत्र ४.८ प्रतिशत और तृतीयक क्षेत्र सर्वाधिक ८.५ प्रतिशत वार्षिक दर से बढा है। आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में बिहार की अर्थव्यवस्था एक अवलोकन‚ राजकीय वित्त व्यवस्था‚ कृषि एवं सहवर्ती क्षेत्र‚ उद्यमिता क्षेत्र‚ श्रम‚ राजगार एवं कौशल‚ अभिसंरचना एवं संचार‚ ऊर्जा क्षेत्र‚ ग्रामीण विकास‚ नगर विकास‚ बैंकिंग एवं सहवर्ती क्षेत्र‚ मानव विकास‚ बाल विकास तथा पर्यावरण‚ जलवायु परिवर्तन एवं आपदा प्रबंधन की बातें कही गयी हैं। आर्थिक सर्वे में कहा गया कि जहां तक राज्य की वित्त व्यवस्था की बात है‚ तो कोविड–१९ महामारी के कारण २०२०–२१ कठिनाइयों वाला वर्ष था। राज्य सरकार ने इन चुनौतियों का जवाब अपने वित्तीय संसाधनों के सर्वोतम संभव उपयोग के जरिये दिया। वर्ष २०२०–२१ में राज्य सरकार का कुल व्यय गत वर्ष की अपेक्षा १३.४ फीसद बढकर १‚६५‚६९६ करोड रुपये पहुंच गया। इसमें से २६‚२०३ करोड़़ रुपये पूंजीगत व्यय था और १३९‚४९३ करोड रुपये का व्यय हुआ है। राजस्व व्यय वर्ष २०२०–२१ में सामान्य सेवाओं में ११.१ फीसद‚ सामाजिक सेवाओं में १०४० फीसद और आर्थिक सेवाओं पर १०.८ फीसद बढ़ा है। वर्ष २०२०–२१ में राज्य सरकार का राजस्व व्यय १२८१६८ करोड रुपये और पूंजीगत व्यय ३६७३५ करोड रुपये था। वहीं‚ वर्ष २०२०–२१ में अपने कर और कर इतर स्रोतों से राज्य सरकार का राजस्व वर्ष २०१९–२० के ३३‚८५८ करोड रुपये से बढकर ३६‚५४३ करोड रुपये हो गया। आर्थिक सर्वे में कहा गया कि प्रदेश की अर्थव्यस्था में कृषि का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। राज्य में कृषि सहवर्ती क्षेत्रों का लगातार विकास हुआ है। वर्ष २०१९–२० में सकल शस्य क्षेत्र (जीसीए) ७२.९७ लाख हेक्टेयर था और फसल सघनता १.४४ फीसद थी। गत पांच वर्षों में कृषि एवं सहवर्ती क्षेत्र २.१ फीसद की वार्षिक दर से बढे। उप क्षेत्रों के बीच पशुधन में १० फीसद एवं मत्स्य पालन क्षेत्र में ७ फीसद की दर से वृद्धि हुई है। वर्ष २०२०–२१ में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड १७.९५ लाख टन होने का अनुमान है। वर्ष २०२०–२१ में ६.८३ लाख टन मछली का उत्पादन होने से राज्य मछली उत्पादन में लगभग आत्मनिर्भर हो गया है। सूबे में दूध का कुल उत्पादन २०२०–२१ में ११५.०१ लाख टन रहा था।
प्रदेश में हाल के वर्षों में आशाजनक औद्योगिक विकास हुआ है। औद्योगिक निवेश आकर्षित करने के लिए राज्य सरकार ने कई नीतिगत उपाय करने के साथ समर्पित संस्थानों की स्थापना की है। सरकार की इस पहल से वर्ष २०१७ से २०२१ के बीच राज्य को कुल ५४७६१ करोड रुपये के निवेश के १९१८ प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। यह बात शुक्रवार को विधानमंड़ल में पेश की गयी आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में सामने आयी। आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया कि तीन सर्वाधिक आकर्षक उद्योग इथेनॉल‚ खाद्य प्रसंस्करण और नवीकरणीय ऊर्जा हैं। दिसम्बर २०२१ तक इथेनॉल के क्षेत्र में कुल ३२‚४५४ करोड रुपये निवेश वाली १५९ इकाइयों को प्रथम स्तर की एनओसी दी गई। इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार ने इथेनॉल उत्पादन प्रोत्साहन नीति २०२१ सूत्रबद्ध की है। राज्य में चिकित्सा संबंधी प्रयोजनों के लिए ऑक्सीजन के उत्पादन में तेजी लाने के लिए राज्य सरकार ने ऑक्सीजन प्रोत्साहन नीति २०२१ भी लागू की है। राज्य में कामकाजी उम्र वाले लोगों की बडी संख्या और उनमें से अधिकतर को कृषि सहित अनौपचारिक क्षेत्र में लगा देखते हुए राज्य सरकार ने अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने और श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न योजनाओं की शुरुआत की है। इन योजनाओं के लाभार्थी प्रवासी मजदूर‚ बाल मजदूर और निर्माण मजदूर हैं। २०१६–१७ से २०२०–२१ तक कुल मिलाकर ४०३८ लाख मजदूर निबंधित हुए हैं। वर्ष २०२०–२१ में राज्य सरकार ने ११.१० लाख निर्माण मजदूरों को कुल ५३८ करोड रुपये का वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी है।