जनप्रतिनिधियों को जनता की समस्याओं के प्रति संवेदनशील रहना चाहिये। सदन की गरिमा और मर्यादा को बनाये रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। सदन में जितनी अधिक सार्थक चर्चा होगी‚ उसके उतने ही अच्छे परिणाम आयेंगे। लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों के आचरण से ही सदन की गरिमा और मर्यादा बनती है।’ ये बातें लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बृहस्पतिवार को बिहार विधानमंड़ल के सदस्यों के चौथे प्रबोधन कार्यक्रम में कहीं। उन्होंने कहा कि संसद एवं विधानमंडलों को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है कि जनप्रतिनिधि जनता की समस्याओं के प्रति संवेदनशील रहें तथा उनकी आशाओं और अपेक्षाओं को विधानमंडलों के माध्यम से पूर्ण कर सकें। सदन की गरिमा और मर्यादा को बनाये रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों के आचरण से ही सदन की गरिमा और मर्यादा बनती है। हम सदन की जितनी गरिमा और मर्यादा बनाये रखेंगे‚ इसे जितना अधिक चर्चा और संवाद का केंद्र बनायेंगे‚ उतने ही इसके सुपरिणाम आयेंगे। हम कार्यपालिका को उतना ही अधिक जवाबदेह बना पायेंगे और सरकार में पारदर्शिता ला सकेंगे। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के अंदर नीतियों‚ कार्य योजनाओं एवं कार्यक्रमों के निर्माण में जनता की जितनी अधिक सक्रिय भागीदारी होगी‚ उतना ही अधिक हम लोगों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा कर पायेंगे‚ उनकी भावनाओं के अनुसार कार्य कर पायेंगे। इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम विधानमंडलों के अंदर हर विषय पर‚ हर मुद्े पर चर्चा करें‚ कानून बनाते समय व्यापक चर्चा–संवाद हो और इस सामूहिक विचार–विमर्श के बाद सामूहिकता से जो निर्णय हो‚ सरकार भी सकारात्मक रूप से उसी दिशा में कार्य करे‚ ताकि अपेक्षित परिणाम आ सकें। उन्होंने कहा कि सदन की घटती गरिमा‚ चर्चा–संवाद में कमी‚ नीति निर्माण में विचार–विर्मश की कमी होना और जन भागीदारी में कमी होना गंभीर चिंता का विषय है। इसके समाधान के लिए हम सबको मिलकर सामूहिकता से चिंतन करने की आवश्यकता है। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि हमारे यहां बहुदलीय संसदीय व्यवस्था है। सरकारें आती–जाती रहती हैं। चाहे कोई भी दल सत्ता में रहे‚ हर दल को सकारात्मक दिशा में काम करते हुए इन लोकतांत्रिक संस्थाओं को साक्त व मजबूत बनाने में अपनी भूमिका तय करनी चाहिए‚ ताकि हम आदर्श संस्थाएं खडी कर सकें। लोकतंत्र वाद–विवाद और संवाद पर आधारित पद्धति है। सदन वाद–विवाद और संवाद के लिए ही होता है। पक्ष–विपक्ष में मतभेद होना‚ सहमति–असहमति होना स्वाभाविक है। लोकतंत्र में यह जरूरी भी है‚ परंतु विरोध के बावजूद गतिरोध नहीं होना चाहिए। और नियोजित गतिरोध तो बिल्कुल ही नहीं। यह लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत है। हमें व्यवधान का नहीं‚ समाधान का रास्ता ढूंढना चाहिए।
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पाकिस्तान में आज शुक्रवार जुमे की नमाज के दौरान दो जगहों पर बड़े धमाके हुए हैं. पहला धमाका पाकिस्तान के...