950 करोड़ रुपए के देश के बहुचर्चित चारा घोटाले केस में से एक डोरंडा ट्रेजरी से गबन के मामले में 15 फरवरी को CBI की विशेष अदालत फैसला सुनाएगी। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और RJD सुप्रीमो लालू यादव भी आरोपी हैं। अब सबकी निगाहें कोर्ट के फैसले पर टिकी है कि इस केस में क्या होगा? क्या 5वें केस में भी लालू दोषी करार दिए जाएंगे या बरी हो जाएंगे। इससे पहले लालू को चार अन्य मामले में दोषी करार दिया जा चुका है। वह अब तक 6 बार जेल भी जा चुके हैं। अभी दुमका ट्रेजरी मामले में जमानत पर बाहर हैं।
मंगलवार (15 फरवरी) को सुनवाई से दो दिन पहले ही लालू रविवार को रांची पहुंच जाएंगे। लालू सहित 99 आरोपियों को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है। अब आइए जानते हैं डोरंडा ट्रेजरी (कांड संख्या RC47A/96) से जुड़े इस महाघोटाले के बारे में…
डोरंडा ट्रेजरी से 139.35 करोड़ रुपए की अवैध निकासी के इस मामले में पशुओं को फर्जी रूप से स्कूटर पर ढोने की कहानी है। यह उस वक्त का देश का पहला मामला माना गया जब बाइक और स्कूटर पर पशु को ढोया गया हो। यह पूरा मामला 1990-92 के बीच का है। CBI ने जांच में पाया कि अफसरों और नेताओं ने मिलकर फर्जीवाड़ा का अनोखा फॉर्मुला तैयार किया। 400 सांड़ को हरियाणा और दिल्ली से स्कूटर और मोटरसाइकिल पर रांची तक ढोया गया। ताकि बिहार में अच्छी नस्ल की गाय और भैंसों का उत्पादन किया जा सके। पशुपालन विभाग ने 1990-92 के दौरान 2,35, 250 रुपए में 50 सांड़, 14, 04,825 रुपए में 163 सांड़ और 65 बछिया खरीदा।
इतना ही नहीं विभाग ने इस दौरान क्रॉस ब्रिड बछिया और भैंस की खरीद पर 84 लाख 93 हजार 900 रुपए का भुगतान मुर्रा लाइव स्टॉक दिल्ली के दिवंगत प्रोपराइटर विजय मल्लिक को की थी। इसके अलावा भेड़ और बकरी की खरीद पर भी 27 लाख 48 हजार रुपए खर्च किए थे। इस मामले में हिन्दुस्तान लाइव स्टॉक एजेंसी दिल्ली के आपूर्तिकर्ता संदीप मल्लिक को भी आरोपी बनाया गया।
विभाग ने स्कूटर और मोपेड का नंबर दिया
इस घोटाले की खास बात है कि जिस गाड़ी नंबर को विभाग ने पशुओं को लाने के लिए रजिस्टर में दर्शाया था वह सभी स्कूटर और मोपेड के थे। CBI ने जांच में पाया है कि लाखों टन पशुचारा, भूसा, पुआल, पीली मकई, बादाम, खल्ली, नमक आदि स्कूटर, मोटरसाइकिल और मोपेड पर ढोए गए। देश के सभी राज्यों के करीब 150 DTO और RTO से गाड़ी नंबर की जांच कराकर जांच टीम ने सबूत जुटाए हैं।
CBI के मुताबिक, इस घोटाले में लाखों टन भूसा, पुआल, पीली मकई, बदाम खली, नमक आदि सामान भी स्कूटर, बाइक और मोपेड पर ढोए गए थे। लेकिन दिलचस्प यह है कि हरियाणा से बढ़िया नस्ल के सांड़, बछिया और हाईब्रिड भैंस भी स्कूटर से ही झारखंड लाए गए थे, ताकि यहां अच्छी नस्ल की गाय और भैंसों का उत्पादन किया जा सके।
CBI ने कहा था- ये सामान्य नहीं व्यापक षडयंत्र का मामला है
देश में चारा घोटाले की जब गूंज उठी तो CBI ने जांच के बाद कहा था कि ये सामान्य आर्थिक भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि व्यापक षड्यंत्र का मामला है। इसमें राज्य के कर्मचारी, नेता और व्यापारी वर्ग समान रूप से भागीदार थे। यह केस सिर्फ RJD तक भी सीमित नहीं रहा। इस सिलसिले में बिहार के एक और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र समेत राज्य के कई मंत्रियों की गिरफ्तारी हुई थी।
चाईबासा में फूटा पहला भंडा, इसके बाद बढ़ता गया घोटाला
1996 में तब संयुक्त बिहार के चाईबासा जिले के DC अमित खरे ने पशुपालन विभाग के इस घोटाले का पर्दाफाश किया था। उन्होंने विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा। इस दौरान उन्हें कुछ ऐसे दस्तावेज मिले जो चारा आपूर्ति के नाम पर अस्तित्वहीन कंपनियों द्वारा धन की हेराफेरी का पता चला। इसके बाद चाईबासा उपायुक्त के पद पर रहते हुए अमित खरे ने चारा घोटाला में पहली FIR दर्ज कराई थी। इसके बाद कई जिलों से चारा के नाम पर घोटाले की खबरें आने लगी।
2012 में तय हुआ पहला आरोप
बता दें, मार्च 2012 में चारा घोटाले से जुड़े एक केस में 44 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई। CBI कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव, जगन्नाथ मिश्र, जहानाबाद के तत्कालीन JDU सांसद जगदीश शर्मा समेत 31 के खिलाफ बांका और भागलपुर कोषागार में हुई धोखाधड़ी मामले में आरोप तय किए थे।
मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था हाईकोर्ट का फैसला
8 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया था, जिसमें उसने लालू के खिलाफ चारा घोटाले में आपराधिक साजिश की जांच खत्म कर दी थी। हाईकोर्ट ने तब तर्क दिया था कि जिस शख्स को दोषी ठहरा दिया गया है या बरी कर दिया गया है, उसे फिर से उसी मामले में जांच के दायरे में नहीं लाया जा सकता है। इसके बाद CBI ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लालू के खिलाफ चारा घोटाले में अलग-अलग जांच जारी रहेगी।
कहां हो सुनवाई इस पर ही हुई थी लंबी बहस
मामले के तेजी से निबटारे में बहुत सारी बाधाएं आईं। पहले तो इसी पर लंबी कानूनी बहस चलती रही कि बिहार से अलग होकर बने झारखंड राज्य के मामलों की सुनवाई पटना हाईकोर्ट में होगी या रांची हाईकोर्ट में।