लखीमपुर खीरी और तिकुनिया गांव निश्चित रूप से कुछ समय तक अभी चर्चा में रहेगा। हालांकि कोई भी नहीं चाहेगा कि इस तरह की दर्दनाक घटना किसी क्षेत्र की चर्चा का कारण बने। आठ लोगों की जिस तरह मृत्यु हुई सामान्य स्थिति में दुःस्वप्नों में भी उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। जिन्होंने जान गंवाए चाहे किसान संगठन के लोग हों या भाजपा के या केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र के पुत्र आशीष मिश्र का ड्राइवर ‚सब हमारे ही थे। दुर्भाग्य है कि मृत्यु को भी राजनीतिक खेमे में बांट दिया गया।
ऐसी घटनाओं पर राजनीतिक दल सामाजिक शांति और एकता का ध्यान रखते हुए संयम और संतुलन के अनुसार भूमिका निर्वहन करें इसकी केवल कल्पना की जा सकती है। भारत की राजनीति में लगता ही नहीं कि यह स्वाभाविक स्थिति कभी लौटेगी भी। इस तरह की घटना में राजनीतिक दलों का दायित्व है कि वे सच्चाई जानने की कोशिश करें‚ पीडि़तों तक पहुंचें‚ दोषियों को सजा दिलाने की मांग करें और सरकार पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाएं। इस oष्टि से देखें तो पहली नजर में भाजपा विरोधी दलों की गतिविधियां स्वाभाविक लगेंगी। शायद भाजपा विपक्ष में होती तो वह भी ऐसा ही करती। कायदे से जब भी ऐसी घटना हो तो जब तक स्थिति थोड़ी नियंत्रण में न आ जाए नेताओं को राजनीतिक दौरे से बचना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया है। जाहिर है‚ वह इसकी छानबीन सहित पूरी कानूनी कार्रवाई पर नजर रखेगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ओर विशेष जांच दल यानी एसआईटी का गठन किया है तो दूसरी ओर एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा न्यायिक जांच की भी शुरुआत कर दी है। आशीष की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। उम्मीद करनी चाहिए कि छानबीन में पूरा सच सामने होगा‚ जो दोषी हैं वो निश्चित रूप से सजा प्राप्त करेंगे। किंतु जब ऐसी दर्दनाक घटना राजनीति का शिकार हो जाती है तो उसे समझना जरा कठिन होता है। धीरे–धीरे कई वीडियो सामने आ चुके हैं। इनमें से कोई संपूर्ण नहीं है‚ लेकिन इन सबको जोड़कर घटना की थोड़ी बहुत झलक मिल जाती है। एक गाड़ी तेजी से बढ़ती है और उसके नीचे किसान कुचले जाते हैं। बताया गया कि यही गाड़ी आशीष मिश्र की थी‚ जिसमें वह बैठा था। कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता। किंतु उस गाड़ी के ड्राइवर को पीट–पीटकर मारा गया। यह आसानी से गले नहीं उतरता कि आशीष उसमें बैठा था‚ इतने लोगों ने गाड़ी को घेरा फिर भी वह भागने में सफल हो गया। अगर उसने किसानों को कुचलने के लिए कहा‚ ड्राइवर ने कुचला तो ड्राइवर पकड़ा जाए और वह उतनी भीड़ से बच कर चला जाए यह कैसे संभव हैॽ आशीष था तो उस पर भी हमला हुआ होगा‚ वह भागा तो भीड़ उसे खदेड़ी होगी। इसमें चोट का कोई तो निशान होना चाहिए। लोगों ने उसका पीछा किया तो उस पर लाठी–डंडे‚ पत्थर कुछ चलते। वह कह रहा है कि अपने गांव में दंगल आयोजन में शामिल था‚ जहां उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को आना था। अगर ड्राइवर जिंदा होता तो वह सच बता।
अब आएं इसके दूसरे पहलुओं पर। किसान संगठन के लोगों की हत्या अगर इरादतन है तो उसके अपराधी और दोषियों को चिह्नत कर सजा मिलनी चाहिए। इसी अनुसार जिस तरह ड्राइवर को पीट–पीटकर मारा गया उसके दोषी भी तो पकड़े जाने चाहिए। राजनीति में इसकी मांग नहीं हो रही है। इसे क्या कहेंगेॽ जिस गाड़ी से किसान कुचलते हुए दिखते हैं‚ वीडियो को स्थिर करके देखने से पता चलता है कि उसके आगे का शीशा टूटा हुआ है‚ बगल के शीशे भी फूटे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि गाड़ी पर हमला हुआ था। संभव है भीड़ के भीषण हमले से भयभीत ड्राइवर ने गाड़ी भगाने की कोशिश की हो और किसान मारे गए हों। इसकी भी जांच होनी चाहिए कि भीड़ को इस तरह उत्तेजित कैसे और क्यों किया गया कि वह हमलावर हो गईॽ कृषि कानूनों के विरु द्ध जारी किसान संगठनों के आंदोलन के समर्थक हैं तो विरोधी भी। आंदोलन के लोग जगह–जगह कुछ ऐसे व्यवहार कर रहे हैं‚ जो अहिंसक सत्याग्रह की श्रेणी में नहीं आता। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के क्षेत्र में आगमन पर किसान संगठनों या उनके समर्थकों द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने की तैयारी में कोई समस्या नहीं है। हालांकि काला झंडा दिखाना लोकतांत्रिक तरीके में नहीं आता। पर काला झंडा दिखाने का मतलब हिंसक तरीके से कानून हाथ में लेना नहीं है।
जिन लोगों ने उत्तेजना में आकर घेराव या काला झंडा दिखाने के कार्यक्रम को गाडि़यों पर हमले में परिणत कर दिया वो सब दर्दनाक हत्याओं के दोषी हैं। वीडियो में कुछ लोग अपनी टी–शर्ट पर जरनैल सिंह भिंडरावाले की तस्वीर लगाए हुए हैं। ये कौन लोग हैंॽ राहुल गांधी‚ प्रियंका वाड्रा‚ अखिलेश यादव‚ सतीश मिश्र‚ मायावती‚ ममता बनर्जी और इनकी पार्टियों के नेतागण भाजपा का विरोध करें‚ लेकिन भिंडरावाले जैसे अलगाववादी आतंकवादी की तस्वीर लगाए लोगों के बारे में एक शब्द नहीं बोलना चिंताजनक है। चुनावी राजनीति इतनी बड़ी हो जाएगी कि देश की एकता अखंडता को हिंसा की बदौलत तोड़ने का काम करने वाले व्यक्ति की तस्वीरें लगाकर आंदोलन करने वालों पर राजनीतिक दल इसलिए चुप रहें कि भाजपा का इसमें विरोध हो रहा है‚ सामान्यतः अकल्पनीय है। इसी तरह आंदोलन का समर्थन एक बात है‚ लेकिन आंदोलन में हिंसक तौर तरीकों के इस्तेमाल का विरोध सभी राजनीतिक दलों को करना चाहिए। केशव प्रसाद मौर्य के लिए हेलीपैड बना।
इंटेलिजेंस की रिपोर्ट के बाद उनको सड़क से ले जाने का निर्णय हुआ। उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार है। अगर वह चाहती तो पुलिस की बदौलत प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेकर उपमुख्यमंत्री को वहां से जाने देती। योगी सरकार ने ऐसा नहीं किया तो इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ४५ लाख रु पया मुआवजा और मृतकों के परिवार के एक–एक व्यक्ति को नौकरी की घोषणा सबके लिए है। वहीं पंजाब और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों ने केवल मृतक किसान संगठन के परिवारों को ही ४५–४५ लाख रुपया दिया। क्या ड्राइवर और भाजपा कार्यकर्ता इनकी दृष्टि में भारतीय नहीं थेॽ लखीमपुर खीरी में हुई मौत से हर भारतीय दुखी होगा‚ लेकिन राजनीतिक रवैये ने भविष्य की दृष्टि से ज्यादा चिंतित और भयभीत किया है।