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सिर्फ एक सत्य, एक अहिंसा, दो हैं जिनके हथियार…’ गांधी

अंग्रेजी हुकूमत से भारत को आजादी दिलवाने वाले और ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि से सम्मानित महात्मा गांधी दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। सत्य और अहिंसा के पुजारी गांधी जी ने भारत को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करवाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने पूरी दुनिया को सत्य, अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ाया था। मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टबर 1869 को हुआ था। इसलिए हर साल 2 अक्टूबर को दुनियाभर में ‘गांधी जयंती’ मनाई जाती है, इस दिन को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में भी सेलिब्रेट किया जाता है।

UB India News by UB India News
October 4, 2021
in खास खबर, दिन विशेष, राष्ट्रीय
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सिर्फ एक सत्य, एक अहिंसा, दो हैं जिनके हथियार…’ गांधी
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आज 2 अक्टूबर है… यानि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म दिवस पूरे देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है. आज देशभर में बापू के 152वें जन्म दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. गांधी जी ने अहिंसा के मार्ग पर चलकर भी अंग्रेजी हुकूमत को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. अंत में उन्हे देश छोड़कर भागना पड़ा. बापू सभी को अहिंसा के रास्ते पर चलने की सलाह देते थे. इसलिए गांधी जी के जनमदिवस को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में भी मनाया जाता है.. आज हम गांधी जी के उन आन्दोलनों के बारे में आपको बताते हैं. जिन आन्दोलनों की वजह से अंग्रेजी सरकार भारत छोड़ने के लिए मजबूर हो गई..

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी वह बिन्दु हैं जिसपर आकर समाज की सभी धाराएं एकाकार हो जाती हैं। ज्ञापन और निवेदन के माध्यम से राजनीति करने वाले उदारवादी हों या आंदोलन के माध्यम से मांग पूरी करवाने की इच्छा रखने वाले उग्रवादी हों, समाज सुधार को राष्ट्रीय जागरण का माध्यम मानने वाले समाज-सुधारक हों या पुनर्जागरण की इच्छा रखने वाले सांस्कृतिक राष्ट्रवादी हों, धरती का सीना चीरकर अन्न उपजाने वाले किसान हों या जमीन पर मालिकाना हक़ रखने वाले जमींदार, कारखानों को चलाने वाले मजदूर हों या उसके मालिक, सभी महात्मा गांधी के अंदर अपना नेतृत्व देखते थे।

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भारत जैसे विविधतापूर्ण देश का नेतृत्व वही व्यक्ति कर सकता है जो समन्वय की चेष्टा रखता हो, और गांधी समन्वय की विराट चेष्टा लेकर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में प्रवेश करते हैं।

समन्वय की इस प्रक्रिया में गांधी जी का सबसे बड़ा शस्त्र संवाद और जनसंचार की क्षमता थी। गांधी संचार का प्रयोग प्रक्रिया एवं गतिविधि दोनों स्थिति में करने की क्षमता रखते थे।
गांधी जी और संचार और संवाद का जीवन
अंतरवैयक्तिक संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सूचना के प्रसार से संबन्धित है। इसके अंतर्गत बोलने, सुनने से लेकर किसी व्यक्ति को सहमत करने तक के आयाम आते हैं। गांधी जी एक साधारण किसान के आमंत्रण पर चंपारण गए। उस समय उनका भोजपुरी, मैथिली, मगही, कैथी इत्यादि स्थानीय भाषाओं से कोई परिचय नहीं था।

दूसरी तरफ स्थानीय किसानों का गुजराती तथा अंग्रेजी से कोई परिचय नहीं था। गांधी जी ने समानुभूति के माध्यम से चंपारण के किसानों के दिल में ऐसा स्थान बना लिया कि उनकी गिरफ्तारी की खबर पर पूरा चंपारण बलिदान देने के लिए निकल पड़ा। वह भी पूरी दुनिया में पहली बार प्रयोग किए जा रहे सत्याग्रह की रणनीति के साथ। इस दौरान गांधी जी द्वारा चंपारण के मैजिस्ट्रेट को दिया गया बयान आज भी सत्याग्रहियों को प्रेरित करता है।

जनसंचार की प्रक्रिया में प्रतीकों एवं चिन्हों के चयन का सर्वाधिक महत्व होता है। महात्मा गांधी को इस संदर्भ में महारत प्राप्त थी। उन्होंने जब सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए ‘नमक’ को प्रतीक के रूप में चुना तब उनके सबसे बड़े समर्थकों में से एक मोतीलाल नेहरू ने भी इसके प्रभावशीलता पर संदेह प्रकट किया।

जैसे-जैसे सत्याग्रहियों की यात्रा दांडी की तरफ बढ़ती गई वैसे-वैसे पूरा देश सविनय अवज्ञा की धारा में बहता गया, क्योंकि गांधी जी को पता था कि नमक पर कर की दर भले ही बहुत कम हो लेकिन यह ‘नमक-हराम’, ‘नमक-हलाल’ जैसे समाज जीवन के मुहावरों तक में शामिल है।

भारतीय समाज इसको हवा और पानी की तरह ही सबके लिए बराबर और मौलिक मानता है। गांधी जी सत्याग्रह में जिस दृढ़ता और सत्यनिष्ठा की अपेक्षा करते थे वह उनकी गिरफ्तारी के बाद भी धरना सत्याग्रह में बरकरार रहा।

महात्मा गांधी ने  लेखन की भाषा को सरल और दृढ़ रखा। – फोटो : social media
गांधी जी ने अपने इस प्रतिकात्मक आंदोलन के माध्यम से दोहरे लक्ष्य को प्राप्त किया। एक तो उन्होने भारत के लोगों में दमन के प्रति निर्भीकता का विकास किया दूसरे ब्रिटिश सभ्यता और ‘व्हाइट मैन बर्डेन’ को दुनिया के सामने बेनकाब भी कर दिया। अपने पहले मकसद के लिए उन्होने जनता को पत्रों के माध्यम से प्रशिक्षित किया तो दूसरे मकसद के लिए वेब मिलर जैसे अमेरिकी पत्रकार का सहारा लिया।

राष्ट्रीय आंदोलन में अपने नवाचारों को प्रसारित करने के लिए गांधी जी ने समय-समय पर विभिन्न समाचार-पत्रों इंडियन ओपेनिअन, यंग इंडिया, नवजीवन, हरिजन और सेवक इत्यादि का प्रकाशन स्वयं किया। इनके माध्यम से गांधी जी अपने निर्णयों तथा धारणाओं की सार्थकता के तर्क प्रस्तुत करते थे तथा उनको पब्लिक स्पेस में स्थापित करते थे।

वे अधिकतम संप्रेषणीयता के लिए लक्षित पाठकों की सुविधा की भाषा का चयन करते थे। यही कारण था कि दक्षिण अफ्रीका में इंडियन ओपेनिअन गुजराती, हिन्दी, तमिल और अंग्रेजी चार भाषाओं में प्रकाशित होता था।

आजकल संचार की दृष्टि से अंतर वैयक्तिक संचार के दो मॉडल प्रमुख रूप से प्रचलित एवं प्रासंगिक हैं एक पालो अल्टो स्कूल द्वारा विकसित interactionism और दूसरा डेनियल गोलमैन द्वारा विकसित भावनात्मक बुद्धिमत्ता।

interactionism के अंतर्गत सूचना प्रेषक और ग्रहणकर्ता के मध्य विभिन्न कुशलताओं की उपस्थिति की व्याख्या की जाती है वहीं भावनात्मक बुद्धिमत्ता के अंतर्गत भावनाओं के प्रबंधन पर ज़ोर दिया जाता है।

इन दोनों ही पैमानों पर गांधी जी खरे उतरते हैं। वो एक बच्चे की गुड़ खाने की लत से लेकर नाजीवाद के उभार से उत्पन्न अंतरराष्ट्रीय समस्या तक पर विचार करते हैं और प्रत्येक समस्या का सर्वकालिक तथा सर्वदेशीय हल सुझाते हैं। अपने सुझाव को स्थायी तथा प्रसारणीय बनाने के लिए लेखन कार्य करते हैं।  लेखन की भाषा को सरल और दृढ़ रखते हैं।

गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में ‘सत्याग्रह’ शब्द के खोज की लंबी प्रक्रिया का वर्णन किया है। – फोटो : फाइल फोटो
जहां जीवन और आचरण ही संवाद है
यहां तक कि जब वे सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह और सात पाप जैसे दार्शनिक सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हैं तब भी अपनी भाषा को यथासंभव सरल ही रखते हैं। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में ‘सत्याग्रह’ शब्द के खोज की लंबी प्रक्रिया का वर्णन किया है। यह दृष्टांत गांधी जी के शब्द सजगता को स्पष्ट करता है।

गांधी जी अपने हाव-भाव व शारीरिक चेष्टाओं से भी संवाद करते हैं। आम जनमानस से जुड़ाव के लिए उन्होंने अपने पाश्चात्य वस्त्रों को त्यागकर मात्र एक धोती के आवरण को ही ग्रहण कर लिया। यहां तक कि इंग्लैंड की अक्टूबर की सर्दियों में आयोजित गोलमेज़ सम्मेलन में भी अपने पहनावे को नहीं बदला। उनकी इस दृढ़ता ने चर्चिल द्वारा नकारात्मक संदर्भ में प्रदान की गई संज्ञा ‘नंगे फकीर’ को भी त्याग, साहस, समर्पण की उपमा में परिवर्तित कर दिया।

गांधी जी सदैव साधारण शब्दों और शांत शैली में भाषण देते थे। परंतु जब उनको लगा कि अब अंग्रेजों को भारत छुड़ाने का समय आ गया है परंतु उनकी पार्टी ही उनसे असहमत हो रही थी तब उनके द्वारा गोवालिया टैंक बंबई में दिया गया भाषण इतिहास के सबसे प्रेरक भाषणों में से एक बन गया। उनके इस अंतिम सार्वजनिक भाषण के बाद प्रत्येक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेता बन गया और अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा।

गांधी की संवाद क्षमता का सामर्थ्य इसमें है कि मार्टिन लूथर किंग जूनियर से लेकर आंग सान सू की तक पूरी दुनिया में अन्याय के विरुद्ध युद्ध में कमजोरों को शक्ति प्रदान किया। आज भी उनके शब्दों के अंदर किसी भी मुन्ना भाई के दिमाग में केमिकल लोचा उत्पन्न करने की क्षमता विद्यमान है।

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