भादों के इस महीने में सारी दुनिया के हिंदुओं का मन मथुरा की ओर स्वतः ही आकर्षित हो जाता है। 5500 वर्ष पहले कंस के कारागार में जन्म लेने वाले ब्रह्मांड नायक का जन्मोत्सव हजारों वर्ष बाद भी उसी उत्साह से मनाया जाता है‚ मानो यह आज की ही घटना हो। हम ब्रजवासियों के लिए तो बाल कृष्ण आज भी हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग हैं। वृंदावन में कोई अपनी कन्या का विवाह के लिए रिश्ता ले कर आएगा तो बेटे का पिता पहले बिहारी जी के मंदिर दौडेगा और ठाकुर जी के सामने खडे हो कर कहेगा‚ तुम कहो तौ हां कर और तुम कहो तो नाइ कर दऊ। तब आ कर कन्या के पिता से कहेगा कि‚ बिहारी जी ने हां कर दई है।
ऐसी दिव्य है ब्रज की भूमि‚ जो बार–बार उजडी और कई बार सजी। जब भगवान धरा धाम को छोड कर अपने लोक चले गए तब उनके वियोग में उनके प्रपौत्र वज्रनाभ जी द्वारिका से मथुरा आए। यहां उन्हें उपदेश देते हुए शांडिल्य मुनि जी ने कहा‚ ब्रज का अर्थ है व्यापक। सतो‚ रजो और तमो गुण से अतीत जो परब्रह्म है वही सर्वव्यापक है। कण–कण में व्याप्त है‚ और उसी ब्रह्म का धाम है‚ यह ब्रज है‚ जहां सगुण रूप में नंदनंदन भगवान श्री कृष्ण का नित्य वास है। यहां उनकी लीलाएं हर क्षण होती रहती हैं‚ जो हमें इन भौतिक आंखों से दिखाई नहीं देतीं। केवल प्रेम रस में गहरे डूबे हुए रसिक संत जन ही उसका अनुभव करते हैं। तब शांडिल्य मुनि ने वज्रनाभ जी को भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थलियां प्रकट करने और उनको सजाने–संवारने का आदेश दिया। मुनिवर ने कहा कि भगवान की लीलाएं ब्रज के कुंड़ों‚ वनों‚ पर्वतों और यमुना के तटों पर हुई थीं। इन्हें तुम सजाओ। वज्रनाभ जी ने इन सबको पुनः प्रकट किया और इनका जीणाद्धार किया।
उनके बाद हजारों वर्षों तक ब्रज प्रदेश उजडा पडा रहा‚ जहां सघन वन थे‚ जिनमें जंगली पशु विचरण करते थे। फिर कालांतर में व्यापक स्तर पर ब्रज का जीणाद्धार श्री चैतन्य महाप्रभु के आदेश पर १६वीं सदी में तब शुरू हुआ‚ जब उन्होंने बंगाल से अपने दो शिष्यों लोकनाथ गोस्वामी और भूगर्भ गोस्वामी को ब्रज भेजा। इसी दौर में मुगल बादशाह अकबर ने ब्रज में जजिया समाप्त कर दिया और देश भर के हिंदू राजाओं को यहां आकर यमुना के घाट‚ कुंड़‚ वन या मंदिर आदि निर्माण करने की छूट दे दी। इस परिवर्तन के कारण देश भर के रसिक संत भी ब्रज में आकर बसने लगे। किंतु उसके बाद औरंगजेब की नीतियों का यहां विपरीत प्रभाव पडा। तब बहुत से मंदिर तोडे गए। घाट‚ कुंड़‚ वन और मंदिर आदि सूने हो गए। लेकिन यह कालखंड़ ज्यादा समय नहीं रहा। उदात्त धार्मिकता और श्रद्धा भाव ने निराशा के परिदृश्य को हावी नहीं होने दिया।
पूरे ब्रज के विकास की एक विहंगम दृष्टि बीस बरस पहले बरसाना के विरक्त संत श्री रमेश बाबा ने दी। उन्होंने भी ब्रज के कुंड़ों‚ वनों‚ पर्वतों और यमुना घाटों को ही सजाने और संवारने का हम सबको आह्वान किया। उन्हीं की प्रेरणा से कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने मिलकर इस दिशा में अभूतपूर्व कार्य किया। इसी का परिणाम ब्रजवासियों और दुनिया भर के कृष्ण भक्तों ने देखा और अनुभव किया। उन्हें लगा कि अपेक्षित जो कुछ था‚ वह किया गया है। ॥ इसी दिशा में ब्रज की आध्यात्मिक चेतना और इसके महात्म को केंद्र में रखते हुए हमने ब्रज के समेकित विकास के लिए एक संवैधानिक संस्था के गठन का प्रस्ताव उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को दिया। उन्होंने इस संस्था का संवैधानिक गठन किया। बाद में उसी संस्था का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद’ रख दिया और बडी उदारता से बहुत बडी रकम इस परिषद को सौंपी। पर यहां वे दो भारी भूल कर गए। पहली‚ इस परिषद के संचालन का जिम्मा उन्होंने ऐसे सेवानिवृत्त अधिकारी को सौंपा जिन्हें न तो ब्रज संस्कृति की कोई समझ है‚ और न ही ऐसे ऐतिहासिक कार्य करने का कोई अनुभव ही है। इतना ही नहीं‚ इस परिषद के कुल दो अधिकारियों ने इस परिषद के संविधान को भी उठाकर ताक पर रख दिया। परिषद का वैधानिक रूप से वांछित नियमों के तहत गठन किए बिना ही बडे–बडे निर्णय स्वयं ही लेने शुरू कर दिए जिनमें पानी की तरह जनता का पैसा बहाया गया। बावजूद इसके‚ यह सरकारी संस्था ब्रज की धरोहरों और संस्कृति के संरक्षण की दिशा में कुछ भी उल्लेखनीय कार्य नहीं कर पाई है। इसकी परियोजनाओं से ब्रज की संस्कृति का विनाश ही हुआ है‚ संरक्षण नहीं। इस परिषद के किए गए कामों और खर्च की गई रकम की अगर निष्पक्ष खुली जांच कराई जाए तो सारे का सारा घोटाला सामने आ जाएगा।
आजकल चुनावी मूड में आ चुके उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जनसभाओं में ताल ठोक कर इस परिषद की उपलब्धियां गिना रहे हैं जबकि ब्रज के अनेक साधु–संत‚ सामाजिक संस्थाएं और खुद भाजपा और संघ के कार्यकर्ता तक गत चार वर्षों में योगी जी से बार–बार विकास और संरक्षण के नाम पर परिषद द्वारा मथुरा में किए जा रहे विनाश की शिकायतें कर चुके हैं पर योगी जी ने आज तक ईमानदारी से जांच किए जाने का कोई आदेश जारी नहीं किया। इससे ब्रज में रह रहे संत और ब्रजवासी ही नहीं‚ बल्कि यहां आने वाले लाखों तीर्थयात्री भी बहुत व्यथित हैं। इसी कालम में ६ नवम्बर‚ २०१७ को मैंने लिखा था ‘ऐसे नहीं होगी ब्रज धाम की सेवा योगी जी’। पर उन्होंने उसकी कोई परवाह नहीं की।
होडिंग और विज्ञापनों के जोर पर ही अगर विकास दिखाना है‚ तो फिर कोई काम करने की जरूरत ही क्या है। दुःख और पीडा तो इस बात की है कि हिंदू धर्म के नाम पर बनी योगी सरकार का सारा जोर विज्ञापनों पर है। न तो योजनाओं के निर्माण में पारदर्शिता और कल्पनाशीलता रही है और न ही उनके क्रियान्वयन में कोई तत्परता दिखी है। इससे हल्ला चाहे कितना मचा लें‚ हिंदू धर्म का कोई हित नहीं हो रहा। पर किसे फुरसत है सच को जानने और कुछ ठोस करने के लिएॽ कुछ ठोस करने के लिए ठहर कर सोचना होता है‚ और फिर दृढ़ निश्चय करना होता है‚ लेकिन जब बारहों महीने सबका लक्ष्य केवल चुनाव जीतना ही हो तो ऐसे में हम कब तक ब्रज के लिए आंसू बहाएंॽ चलो‚ आओ श्री कृष्ण का जन्मदिन मनाएं।