कोरोना की पहली विस्फोटक लहर आने पर सरकार द्वारा अकस्मात तालाबंदी की घोषणा करने पर देशवासियों के मन में भय व्याप्त हो गया था। मजदूर हाल–बेहाल थे। अपनों के बीच अपने गांव–कस्बे जाना चाहते थे किंतु आवागमन के साधन बंद होने से पैदल ही सैकड़ों मील का सफर करने को विवश हो गए थे। बदहाल सड़कों पर पैदल चल रहे थे और हम जैसे अपने घरों में कैद टीवी स्क्रीन पर भक्ति भाव से रामायण और महाभारत देख रहे थे। उन्हीं दिनों ‘जनसत्ता’ के संपादक मुकेश भारद्वाज ने अपने बहुचर्चित–बहुपठित स्तंभ ‘बेबाक बोल’ में महाभारत और महाभारत के चरित्रों को आज की राजनीति के संदर्भ में पुनर्व्याख्यायित‚ पुनववेचित‚ पुनवश्लेषित और पुनर्भाषित करना शुरू किया था। मेरे जैसे हजारों पाठक इस „श्रृंखला को पढ़ते हुए अपने सोच और अपनी दृष्टि को विस्तृत करते हुए विस्मित होते रहे। उन्हीं विचारोत्तेजक–चिंतनपरक आलेखों का संग्रह अब हमारे बीच है–‘सत्ता का मोक्ष द्वार महाभारत’।
कोरोना जैसी आपदा में हमारी सरकार को अध्यात्म का सहारा लेने की विवशता क्यों पड़ी‚ इसका बहुत ही तार्किक विश्लेषण पुस्तक की प्रस्तावना में किया गया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने सोशल मीडिया पर रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय धारावाहिक दिखाने की मांग को आधार बताते हुए इन्हें शुरू करने की जानकारी ट्वीट पर दी थी कि २८ मार्च‚ २०२० से महाभारत धारावाहिक डीडी भारती पर दिखाया जाएगा। सरकार के आध्यात्मिक बनने की वजह स्पष्ट करते हुए मुकेश लिखते हैं‚ ‘मध्यवर्गीय जनता एक बार अपने घर की खिड़की से सड़क पर निकले मजदूरों को देखती और फिर स्क्रीन पर रामराज्य को देखकर मुग्ध हो जाती। मार्क्सवादी चिंतक धर्म को अफीम कहते हैं‚ लेकिन भारत जैसे देश में अफीम सकारात्मक तरीके से भी काम करता है। अभाव में भाव आता है कि जिस राम जी ने पेट दिया वही दाना भी देंगे.यहीं राज्य और धर्म की भूमिका सोचने को मजबूर करती है कि कैसे इन्हीं धर्मग्रंथों द्वारा हर अन्याय और हर कुतर्क को जायज ठहराया गया।’
श्री कृष्ण गीता में निष्काम कर्म का संदेश देते हैं‚ वहीं अर्जुन को समझाते हैं कि युद्ध नहीं करोगे तो स्वर्ग नहीं मिलेगा। ऐसी परस्पर विरोधी बातों को खोलते हुए मुकेश लिखते हैं‚ ‘गीता की परस्पर विरोधी बातें शासक वर्ग के अनुकूल होती हैं। कृष्ण का कोई उपदेश टिकाऊ नहीं है‚ हिंसा‚ अहिंसा से लेकर भक्ति की बातें करते हैं। वो हर मौके पर फल के लिए प्रेरित करते हैं। उनका लक्ष्य है विजय यानी सफलता हासिल करना.जिस तरह भारतीय संविधान को वकीलों का स्वर्ग कहा जाता है‚ उसी तरह भारतीय विद्वानों से लेकर राजनीतिज्ञों के लिए गीता स्वर्ग है। परस्पर विरोधी चीजें यहां न्यायोचित होती हैं। आप जो कहना चाहते हैं‚ गीता के माध्यम से कह सकते हैं। इसलिए यह हमेशा सत्ता का मोक्ष द्वार रहा है।’ । कोरोना काल में सत्ता को भी महाभारत मोक्ष द्वार लगा। आपदा से निपटने में अपनी नाकामियों और अव्यवस्थाओं से जनता का ध्यान हटाने की नीयत से उसने दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत दिखाना शुरू कर दिया। जनता एक बार के लिए आपदा की भयावहता को भूल भक्ति भाव से भगवान की लीलाएं देखती रही।
अर्जुन को महाभारत का नायक बनाया गया है। वे विषम परिस्थितियों में भी संयम‚ धैर्य और विवेक नहीं खोते। मुकेश लिखते हैं‚ ‘ताकत और सत्ता का गठजोड़ धैर्य और विवेक के साथ होता है तो कैसे वह विशिष्ट होता है इसका उदाहरण अर्जुन है।’
महाभारत में एकमात्र ऐसा चरित्र नजर आता है जो कौरवों–पांडवों में भाईचारे की कोशिश करता है‚ युद्ध रोकना चाहता है‚ शांति स्थापित करना चाहता है‚ वो हैं बलराम । ऐसे निष्पक्ष‚ शांतिप्रिय‚ नीति परायण और महात्मा गांधी की तरह अहिंसात्मक हस्तक्षेप करने वाले बलराम को महाभारत में नायकत्व नहीं देने की वजह बताते हुए मुकेश भारद्वाज लिखते हैं‚ ‘महाभारत में बलराम की भूमिका वैसे ही कमतर की गई है जैसे आज के समय में युद्धोन्मादी देशों ने गुटिनरपेक्ष विचारधारा को हाशिये पर धकेला है। मूल्य तो पक्षधरता से ही तय हो सकता है। तभी युद्धों के पक्षधरों के लिए बलराम का कोई मूल्य नहीं है।