बिहार में लोजपा की टूट के बाद लोजपा का विवाद अब सड़़क पर आ गया है। लोजपा के संस्थापक दिवंगत रामविलास पासवान की पहली जयंती पर सोमवार को पार्टी में वर्चस्व को लेकर बिहार की जमीन पर सीधी राजनीतिक टक्कर हुई। रामविलास पासवान की विरासत पर अपनी–अपनी दावेदारी पेश करते हुए इन नेताओं के बीच आज अपने–आपको साबित करने की होड दिखी। बिहार की धरती पर लोजपा में टूट के बाद पहली बार उतरे चिराग को उम्मीद से बेहतर वेलकम मिला। १०१ घोडे की सलामी मिली तो हजारों समर्थकों से जिंदाबाद मिला। सुरक्षा के लिए लिहाज से अतिसंवेदनशील एयरपोर्ट पर हजारों की संख्या में समर्थकों का हुजूम दिखा। यहां ना तो कोरोना गाइडलाइन थी और ना प्रशासन। अगर कुछ था चिराग पासवान जिंदाबाद के नारे। पोस्टरों से पटे पटना की सडकों पर चिराग पासवान का हाजीपुर के रास्ते भी भव्य स्वागत किया गया। जगह–जगह लोजपा नेता हुजूम के साथ खडे रहे और चिराग पासवान का स्वागत–अभिनंदन करते रहे। एक समय ऐसा लगा कि जैसे खुद रामविलास पासवान हाजीपुर पहुंच रहे हों। इधर‚ रामविलास पासवान के निधन के बाद ५ जुलाई को उनकी जयंती को भव्य तरीके से मनाने का ऐलान पशुपति पारस ने भी किया था। पारस के ऐलान के मुताबिक‚ १० हजार लोगों को भोजन कराने से लेकर बिहार के कोने कोने से लोगों को पटना बुलाकर भव्य आयोजन करने का था‚ लेकिन यह आयोजन पटना के लोजपा कार्यालय तक ही सीमित रहा। पशुपति पारस के कार्यक्रम में १० हजार लोग तो नहीं आए‚ महज कुछ सौ लोग जरूर पहुंचे। जयंती में बडे नेता के तौर पर पशुपति पारस ही थे‚ बाकी किसी की बडी उपस्थिति नहीं दिखी। इस बीच चाचा पारस ने मीडिया के जरिए ये खबर भी चिराग तक पहुंचाई कि अगर वो लोजपा कार्यालय आते हैं तो उन्हें रोकेंगे नहीं। लोजपा कार्यालय में पशुपति पारस ने रामविलास पासवान की जयंती पर समारोह का आयोजन किया था‚ लेकिन चिराग यहां नहीं गए और सीधे हाजीपुर के लिए रवाना हो गए।