नहीं… नहीं, हमने ईरान पर हमला नहीं किया है. इस हमले में हमारी कोई भूमिका नहीं है. इजराइल ने एकतरफ़ा कार्रवाई की है. इसलिए हमारे सैनिकों और खाड़ी देशों में हमारे ठिकानों पर ईरान को हमला नहीं करना चाहिए. इजराइल ने ख़ुद की रक्षा का हवाला देते हुए ये हमला किया है. हम मध्य पूर्व में अपने साथी देशों के संपर्क में हैं. ये बयान है अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो का. उधर अमेरिकी कांग्रेस के स्पीकर की माइक जॉनसन ने हमले को सही ठहराया ये कहा कि इज़राइल को आत्म रक्षा का अधिकार है इनके अलावा माइक पेंस, सिनेटर टेड क्रूज़ समेत कई नेताओं ने इज़राइल के एयर स्ट्राइक को सही ठहराया है. इज़राइल ने ईरान पर हमले को ऑपरेशन राइज़िंग लॉयन का नाम दिया है. मक़सद है इज़राइल को चारों तरफ़ से घेरने की ईरानी साज़िश को नेस्तनाबूद करना. बेंजामिन नेतन्याहू ने राष्ट्र के नाम संबोधन में ईरान की इस साज़िश को इज़राइल के अस्तित्व का ख़तरा बताया क्योंकि कुछ महीनों में ही ईरान के पास 9 परमाणु बम बनाने की ताक़त हो जाएगी.
अमेरिका की दोहरी चाल
नेतन्याहू ने बताया कि कैसे ईरान उनके देश को तबाह करना चाहता है. डेथ टू इजरायल , डेथ टू अमेरिका – ये ईरान का नारा है . नेतन्याहू ने इसे दोहराया. अब सवाल उठता है कि अमेरिका आख़िर ख़ुद को इस जंग से अलग क्यों दिखाना चाहता है. दरअसल ये अमेरिका की दोहरी चाल है. डोनॉल्ड ट्रंप दुनिया में कहीं भी जंग हो वहां से अमेरिका को बाहर रखना चाहते हैं. उनकी नीति है ये तुम्हारा प्रॉब्लम हमारा उससे लेना देना क्या ? इसलिए अमेरिका इज़राइल के कंधे पर रखकर बंदूक चला रहा है . हाल के घटनाक्रम को देखिए. डॉनल्ड ट्रंप ख़ुद तीन बार ईरान के साथ परमाणु समझौते को सही जता चुके हैं. खाड़ी देशों में ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत हो चुकी है. ट्रंप ये बार-बार कह चुके हैं कि समझौता ऐसा हो जिससे ईरान परमाणु बम न बना सके. लेकिन ईरान साफ कर चुका है कि वो यूरोनियम संवर्धन का इस्तेमाल ऊर्जा के लिए करना चाहता है. बात यूरोनियम संवर्धन कितना हो इस पर अटक गई. दोनों ने एक दूसरे को देख लेने की धमकी भी दी. इस बीच अंतरराष्ट्री परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने एक रिपोर्ट तैयार कर बताया कि ईरान तय शर्तों से ज्यादा तेजी से यूरोनियम संवर्धन कर रहा है. बस इजरायल को बहाना मिल गया.

पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की फाइल फोटो.
अब देखिए रुबियो के बयान से ऐसा लगता है जैसे इजरायल ने अमेरिका या ट्रंप प्रशासन को अपनी तैयारी की सूचन न दी हो. ऐसा हो सकता है क्या. बिल्कुल नहीं. पिछले दिनों अमेरिका ने इराकी दूतावास को खाली करा दिया. बेहद जरूरी लोगों के अलावा सबको वापस बुला लिया. रीजन के बाकी देशों में एंबेसी को आगाह कर दिया. मतलब ऑपरेशन राइजिंग लायन की जानकारी अमेरिका को थी. अब ट्रंप की बारी है. वो कभी भी इस हमले को .. बोल्ड एंड ब्यूटिफुल स्ट्राइक बता सकते हैं. उनका काम इजरायल जो कर रहा है. इतना तो बनता है.
ऑपरेशन सिंदूर बनाम ऑपरेशन लॉयन
अब आइए ऑपरेशन सिंदूर पर. ऑपरेशन राइजिंग लॉयन से तुलना करते हैं. क्या अमेरिका इजरायल और ईरान के बीच सीजफायर कराने आएगा. बेंजामिन नेतन्याहू के एक्शन पर चिंता जताएगा. ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन को एक महान नेता बताएगा. जैसे शहबाज शरीफ की तुलना हमारे पीएम से की थी. क्या अंतर है दोनो ऑपरेशन में. हमने भी आत्मरक्षा में पाकिस्तानी ठिकानों को निशाना बनाया. हमने तो पहले आतंकी ठिकाने चुने. वो तो पाकिस्तान ने उकसाया फिर उसके मिलिट्री बेस निशाने पर आए. पहलगाम अटैक कोई पहला नहीं था. अगर इजरायल को लगता है कि ईरान दशकों से उसे तबाह करने की साजिश रच रहा है तो पाकिस्तान भी वही कर रहा है. डेथ टू अमेरिका ईरान का नया नारा नहीं है. उसी तरह जुल्फिकार अली भुट्टो तो संयुक्त राष्ट्र में बोल आए कि उनका देश भारत के खिलाफ Thousand year war (हजार साल तक जंग) के लिए तैयार है. उसी की भाषा में जनरल जिया उल हक ने जहर मिला दिया और Bleeding India through a thousand cuts’ का नारा लगाया.
ऑपरेशन सिंदूर पर अमेरिका में खलबली
फिर ऑपरेशन सिंदूर पर अमेरिका में खलबली क्यों मच गई? हमारा सेल्फ डिफेंस और इजरायल का सेल्फ डिफेंस अलग कैसे है? ट्रंप ने डर जताया कि पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों पर भारत मिसाइल अटैक कर सकता है. और जवाब में पाकिस्तान भी कुछ कर सकता है. आज हालात ये हैं कि आईएईए ईरान के परमाणु ठिकाने नतांज में रेडिएशन का पता लगा है जहां इजरायल ने मिसाइल दागे हैं. दस मिनट के भीतर इजरायल ने ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड के हेड, चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ और खास परमाणु वैज्ञानिक को खल्लास कर दिया. लेकिन अभी तक कोई बयान नहीं आया है कि मसले का हल शांतिपूर्ण तरीके से किया जाए. ये अमेरिका की दोगली नीति है. पाकिस्तान का इस्तेमाल वो न सिर्फ भारत के बैलेंस करने के लिए करता रहा है बल्कि चीन को भी. ट्रंप चाहते हैं कि पाकिस्तान उनका टट्टू बन जाए.अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत की स्वतंत्र भूमिका शायद अमेरिका को नहीं पच रही. हम राष्ट्रहित में रूस के भी साथ हैं और अमेरिका के भी. उनके हितों के लिए हमारी नीति नहीं बदलती. यही ट्रंप को नागवार है. वो क्वाड तो चाहता है लेकिन ब्रिक्स से दिक्कत है. ऐसी दोगली नीति के प्रति हमें सजग रहने की जरूरत है.
नहीं… नहीं, हमने ईरान पर हमला नहीं किया है. इस हमले में हमारी कोई भूमिका नहीं है. इजराइल ने एकतरफ़ा कार्रवाई की है. इसलिए हमारे सैनिकों और खाड़ी देशों में हमारे ठिकानों पर ईरान को हमला नहीं करना चाहिए. इजराइल ने ख़ुद की रक्षा का हवाला देते हुए ये हमला किया है. हम मध्य पूर्व में अपने साथी देशों के संपर्क में हैं. ये बयान है अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो का. उधर अमेरिकी कांग्रेस के स्पीकर की माइक जॉनसन ने हमले को सही ठहराया ये कहा कि इज़राइल को आत्म रक्षा का अधिकार है इनके अलावा माइक पेंस, सिनेटर टेड क्रूज़ समेत कई नेताओं ने इज़राइल के एयर स्ट्राइक को सही ठहराया है. इज़राइल ने ईरान पर हमले को ऑपरेशन राइज़िंग लॉयन का नाम दिया है. मक़सद है इज़राइल को चारों तरफ़ से घेरने की ईरानी साज़िश को नेस्तनाबूद करना. बेंजामिन नेतन्याहू ने राष्ट्र के नाम संबोधन में ईरान की इस साज़िश को इज़राइल के अस्तित्व का ख़तरा बताया क्योंकि कुछ महीनों में ही ईरान के पास 9 परमाणु बम बनाने की ताक़त हो जाएगी.
अमेरिका की दोहरी चाल
नेतन्याहू ने बताया कि कैसे ईरान उनके देश को तबाह करना चाहता है. डेथ टू इजरायल , डेथ टू अमेरिका – ये ईरान का नारा है . नेतन्याहू ने इसे दोहराया. अब सवाल उठता है कि अमेरिका आख़िर ख़ुद को इस जंग से अलग क्यों दिखाना चाहता है. दरअसल ये अमेरिका की दोहरी चाल है. डोनॉल्ड ट्रंप दुनिया में कहीं भी जंग हो वहां से अमेरिका को बाहर रखना चाहते हैं. उनकी नीति है ये तुम्हारा प्रॉब्लम हमारा उससे लेना देना क्या ? इसलिए अमेरिका इज़राइल के कंधे पर रखकर बंदूक चला रहा है . हाल के घटनाक्रम को देखिए. डॉनल्ड ट्रंप ख़ुद तीन बार ईरान के साथ परमाणु समझौते को सही जता चुके हैं. खाड़ी देशों में ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत हो चुकी है. ट्रंप ये बार-बार कह चुके हैं कि समझौता ऐसा हो जिससे ईरान परमाणु बम न बना सके. लेकिन ईरान साफ कर चुका है कि वो यूरोनियम संवर्धन का इस्तेमाल ऊर्जा के लिए करना चाहता है. बात यूरोनियम संवर्धन कितना हो इस पर अटक गई. दोनों ने एक दूसरे को देख लेने की धमकी भी दी. इस बीच अंतरराष्ट्री परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने एक रिपोर्ट तैयार कर बताया कि ईरान तय शर्तों से ज्यादा तेजी से यूरोनियम संवर्धन कर रहा है. बस इजरायल को बहाना मिल गया.

पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की फाइल फोटो.
अब देखिए रुबियो के बयान से ऐसा लगता है जैसे इजरायल ने अमेरिका या ट्रंप प्रशासन को अपनी तैयारी की सूचन न दी हो. ऐसा हो सकता है क्या. बिल्कुल नहीं. पिछले दिनों अमेरिका ने इराकी दूतावास को खाली करा दिया. बेहद जरूरी लोगों के अलावा सबको वापस बुला लिया. रीजन के बाकी देशों में एंबेसी को आगाह कर दिया. मतलब ऑपरेशन राइजिंग लायन की जानकारी अमेरिका को थी. अब ट्रंप की बारी है. वो कभी भी इस हमले को .. बोल्ड एंड ब्यूटिफुल स्ट्राइक बता सकते हैं. उनका काम इजरायल जो कर रहा है. इतना तो बनता है.
ऑपरेशन सिंदूर बनाम ऑपरेशन लॉयन
अब आइए ऑपरेशन सिंदूर पर. ऑपरेशन राइजिंग लॉयन से तुलना करते हैं. क्या अमेरिका इजरायल और ईरान के बीच सीजफायर कराने आएगा. बेंजामिन नेतन्याहू के एक्शन पर चिंता जताएगा. ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन को एक महान नेता बताएगा. जैसे शहबाज शरीफ की तुलना हमारे पीएम से की थी. क्या अंतर है दोनो ऑपरेशन में. हमने भी आत्मरक्षा में पाकिस्तानी ठिकानों को निशाना बनाया. हमने तो पहले आतंकी ठिकाने चुने. वो तो पाकिस्तान ने उकसाया फिर उसके मिलिट्री बेस निशाने पर आए. पहलगाम अटैक कोई पहला नहीं था. अगर इजरायल को लगता है कि ईरान दशकों से उसे तबाह करने की साजिश रच रहा है तो पाकिस्तान भी वही कर रहा है. डेथ टू अमेरिका ईरान का नया नारा नहीं है. उसी तरह जुल्फिकार अली भुट्टो तो संयुक्त राष्ट्र में बोल आए कि उनका देश भारत के खिलाफ Thousand year war (हजार साल तक जंग) के लिए तैयार है. उसी की भाषा में जनरल जिया उल हक ने जहर मिला दिया और Bleeding India through a thousand cuts’ का नारा लगाया.
ऑपरेशन सिंदूर पर अमेरिका में खलबली
फिर ऑपरेशन सिंदूर पर अमेरिका में खलबली क्यों मच गई? हमारा सेल्फ डिफेंस और इजरायल का सेल्फ डिफेंस अलग कैसे है? ट्रंप ने डर जताया कि पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों पर भारत मिसाइल अटैक कर सकता है. और जवाब में पाकिस्तान भी कुछ कर सकता है. आज हालात ये हैं कि आईएईए ईरान के परमाणु ठिकाने नतांज में रेडिएशन का पता लगा है जहां इजरायल ने मिसाइल दागे हैं. दस मिनट के भीतर इजरायल ने ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड के हेड, चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ और खास परमाणु वैज्ञानिक को खल्लास कर दिया. लेकिन अभी तक कोई बयान नहीं आया है कि मसले का हल शांतिपूर्ण तरीके से किया जाए. ये अमेरिका की दोगली नीति है. पाकिस्तान का इस्तेमाल वो न सिर्फ भारत के बैलेंस करने के लिए करता रहा है बल्कि चीन को भी. ट्रंप चाहते हैं कि पाकिस्तान उनका टट्टू बन जाए.अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत की स्वतंत्र भूमिका शायद अमेरिका को नहीं पच रही. हम राष्ट्रहित में रूस के भी साथ हैं और अमेरिका के भी. उनके हितों के लिए हमारी नीति नहीं बदलती. यही ट्रंप को नागवार है. वो क्वाड तो चाहता है लेकिन ब्रिक्स से दिक्कत है. ऐसी दोगली नीति के प्रति हमें सजग रहने की जरूरत है.