सुप्रीम कोर्ट ने असहमति के अधिकार को बरकरार रखते हुए कहा है कि हर आलोचना अपराध नहीं होती है। अगर हर आलोचना या असहमति को अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा तो लोकतंत्र जीवित नहीं रह पाएगा। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने को लेकर कुछ टिप्पणियां करने के आरोपी के खिलाफ दाखिल केस को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान के आर्टिकल 19(1)(a) के तहत नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी दी गई है। इस आजादी के तहत हर नागरिक को अधिकार है कि वह आर्टिकल 370 हटाए जाने से लेकर केंद्र सरकार के किसी भी फैसले की आलोचना कर सकता है। उसे ये कहने का अधिकार है कि वह सरकार के फैसले से खुश नहीं है।
जस्टिस अभय एस ओका और उज्ज्वल भुयान की बेंच ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपनी पुलिस को आर्टिकल 19(1)(a) में दिए गए बोलने और अभिव्यक्ति के अधिकारी के बारे में जागरूक करें और उन्हें उचित संयम बनाए रखने की सीमा भी बताएं। पुलिस को हमारे संविधान में दिए गए मूल्यों के बारे में संवेदनशील बनाना चाहिए।
क्या था मामला…
महाराष्ट्र के कोल्हापुर कॉलेज के कश्मीरी प्रोफेसर जावेद अहमद हाजम के खिलाफ एक क्रिमिनल केस दर्ज किया गया था। इसमें कहा गया था कि उन्होंने वॉट्सऐप स्टेटस लगाकर 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के लिए काला दिन घोषित करने और 14 अगस्त को पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस मनाने की अपील की थी।
इसे लेकर कोर्ट ने कहा कि 5 अगस्त को ब्लैक डे कहना सिर्फ प्रोफेसर के विरोध और पीड़ा जताने का एक तरीका है। वहीं, पाकिस्तानी लोगों को उनकी आजादी के दिन की शुभकामना देना एक सद्भावना का काम है। ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि इससे अलग-अलग धार्मिक समूहों के बीच किसी तरह की नफरत या दुर्भावना पैदा होगी।
जजों ने ये भी कहा कि ऐसे मामलों ये नहीं देखा जा सकता है कि शब्दों का कुछ कमजोर दिमाग के लोगों पर क्या असर पड़ेगा, जो हर विरोधाभासी बात में खतरा ढूंढ लेते हैं। ऐसे मामलों में ये देखा जाता है कि कही गई बात का समझदार लोगों पर क्या असर होगा, जो गिनती में ज्यादा हैं।
सर्वोच्च अदालत की जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुयन की पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘यही समय है जब हमें अपनी पॉलिसी मशीनरी को बोलने की आजादी और विचार व्यक्त करने की आजादी के बारे में शिक्षित करना है, जो हमें संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत मिली हुई है। नीतियां लागू करने वाले लोगों को संविधान के लोकतांत्रिक मूल्यों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।’