प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले 5 दिनों में दो बार बिहार आए। इस दौरान उन्होंने औरंगाबाद, बेगूसराय और बेतिया में जन सभाएं कीं। इन सभाओं के जरिए पीएम मोदी ने औरंगाबाद, गया, बेगूसराय, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, वाल्मीकि नगर लोकसभा क्षेत्र को साधने की कोशिश की।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट की माने तो ये सभी इलाके सवर्ण बाहुल हैं। बड़ी बात यह रही कि तीनों स़भाओं में एक बार भी पीएम मोदी ने किसी जाति का नाम नहीं लिया। उन्होंने युवा, महिला, किसान और गरीबों की बात की।
एक्सपर्ट कहते हैं कि संभवत: ऐसा पहली बार हुआ, जब बिहार में रैली हो और जाति की बात नहीं हो। वहीं, दूसरी तरफ विपक्षी मंच से खुले तौर पर दलितों और पिछड़ों को साधने की कोशिश की गई। 3 मार्च को पटना में आयोजित जन विश्वास रैली के दौरान राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव ने पिछड़ों-दलितों को मजबूत बनाने और उनके दुख-दर्द में शामिल होने की बात कही।
समझिए, बिहार में मोदी ने जाति की बात क्यों नहीं की
बिहार की सियासत में एक कहावत बहुत लोकप्रिय है। कहा जाता है कि यहां से जाति है, जो जाती नहीं। ऐसे में सवाल उठ रहे है कि पीएम क्यों लोकसभा चुनाव से पहले जाति पर बोलने से परहेज कर रहे हैं। इस सवाल पर पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं, बिहार में हुई जाति आधारित गणना के बाद पिछड़े की राजनीति तेज हो गई है। इससे बीजेपी को डर सताने लगा है कि कहीं उनका अपर कास्ट वोट बैक कहीं खिसक ना जाए। इसीलिए बीजेपी उन्हें किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहती है।
बीजेपी पिछड़ा और अगड़ा दोनों को साथ लेकर चलना चाहती है। यही कारण है कि रैली अगड़े इलाके में आयोजित की गई और पिछड़ों की राजनीति की गई। ये सबका साथ, सबका विश्वास और सबका प्रयास को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। डीएम दिवाकर कहते हैं कि एनडीए खासकर बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पिछले परफॉर्मेंस को दोहराना है।
40 की 40 सीटें नहीं जीत पाएं तो कम से कम 39 सीटों को बचा पाना। बीजेपी अच्छे से जानती है कि इसे केवल रैली के जरिए हासिल नहीं किया जा सकता है। इसके लिए कैंडिडेट बहुत मायने रखते हैं। यही कारण है कि बीजेपी ने अपनी फर्स्ट लिस्ट में बिहार के किसी सवर्ण दिग्गज के नाम की घोषणा नहीं की।
3 पॉइंट में जानिए, बार-बार रद्द होने के बाद भी बेतिया क्यों आए पीएम
पीएम मोदी की सभा बेतिया में इससे पहले तीन बार रद्द हो चुकी थी। सबसे पहले वे यहां 13 जनवरी को आने वाले थे। इसके बाद 27 जनवरी को उनकी मोतिहारी में सभा होने वाली थी, लेकिन ये भी रद्द हो गई। 4 फरवरी को फिर से बेतिया में रैली प्रस्तावित हुई, लेकिन ये भी टल गई। आखिर में 6 मार्च को पीएम यहां आए। आखिर बेतिया में पीएम सभा क्यों करना चाहते थे? इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि जितनी भी रैलियां यहां होती है, उनमें जोड़-घटाव गुणा भाग के बाद ही सभा स्थल का चयन किया जाता है।
1. नेतृत्व के खिलाफ नाराजगी
बेतिया के वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि बेतिया में जमीनी स्तर पर भारी नाराजगी है। कार्यकर्ता अपने जिला नेतृत्व या संगठन से बहुत ज्यादा खुश नहीं है। इसका असर विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के दौरान दिखाई दिया था। जब यहां के दो विधायक पार्टी के खिलाफ बगावत कर गए। ऐसे में पार्टी को इस बात का डर सता रहा है कि कहीं वे अपने ही गढ़ में कमजोर ना पड़ जाए। बेतिया में पीएम की रैली आयोजित करा कर पार्टी ने कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने के साथ नाराजगी को डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है।
2. आरएसएस का फीडबैक
पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि बीजेपी में कैंडिडेट सिलेक्शन में आरएसएस की बड़ी भूमिका होती है। ऐसे में चंपारण को लेकर आरएसएस का फीडबैक बहुत अच्छा नहीं है। नीतीश के एनडीए से बाहर जाने के बाद पहले ही पार्टी वाल्मीकि नगर को अपने लिए कमजोर मान रही थी। वहीं लेफ्ट भी पूर्वी-पश्चिमी चंपारण में संगठन मजबूत कर रही है। यही कारण है कि पार्टी किसी प्रकार का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है।
3. चंपारण के तीनों उम्मीदवार बदलने की तैयारी
चंपारण की सियासत को करीब से जानने वाले कहते हैं कि बीजेपी चंपारण के तीनों लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बदलने की तैयारी कर रही है। राधा मोहन सिंह को बढ़ती उम्र का हवाला देकर एक्टिव पॉलिटिक्स से साइड किया जा सकता है तो संजय जायसवाल के खिलाफ जनता की नाराजगी बड़ा मुद्दा बन रहा है। वहीं, वाल्मीकि नगर सीट पर भी जदयू से बात चल रही है। हालांकि, बीजेपी के नेता इसे सिरे से खारिज तो कर रहे हैं, लेकिन इस पर कुछ भी बोलने से भी इनकार कर रहे हैं।
बिहार में मोदी ने लालू को ही मुख्य प्रतिद्वंदी माना
अपनी तीन सभाओं में पीएम मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार में उनका मुख्य मुकाबला राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से ही होगा। यही कारण है कि उन्होंने अपनी तीनों सभाओं में खुलकर जंगलराज और परिवारवाद पर ही निशाना साधा। उन्होंने एक बार भी कांग्रेस या लेफ्ट का नाम नहीं लिया।। इससे स्पष्ट हो गया कि बिहार की अन्य विपक्षी पार्टियां चाहे कांग्रेस या फिर लेफ्ट को मोदी अपना प्रतिद्वंदी नहीं मानते हैं।
लालू के तंज को बनाया चुनावी एजेंडा
3 मार्च को पटना में आयोजित जन विश्वास रैली में राजद सूप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने पीएम नरेंद्र मोदी के परिवार पर सवाल उठाए थे। अब पीएम मोदी ने इसे देश व्यापी चुनावी एजेंडा बना दिया है। बेतिया की रैली में पीएम ने अपने ही स्टाइल में लालू प्रसाद यादव को जवाब दिया।
उन्होंने इसे लालू के गुरु जेपी, लोहिया और कर्पूरी से जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि अगर ये आज जिंदा होते तो ये भ्रष्टाचारी और परिवारवाद के कट्टर समर्थक उन्हें भी कठघरे में खड़ा कर देते। इसके साथ ही उन्होंने बीजेपी के उस कैंपेन को भी दोहराया, जिसे मोदी का परिवार बता रहे हैं।