देश की राजनीति को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी अलग राह पकड़ ली है। यह राह उन्हें कहां ले जायेगा यह तो वक्त बताएगा। लेकिन जो राह पकड़ी है वह I.N.D.I.A गठबंधन की तरफ जाते नहीं दिखता। राम मंदिर आमंत्रण की ही बात ले लें तो इन्होंने अपनी एक अलग राह बनाई। जानते हैं इंडिया गठबंधन से कैसे नीतीश कुमार ने एक अलग रेखा सेक्युलरिज्म की राह पकड़ी है। आइए जानते हैं किसने क्या और नीतीश कुमार के स्टैंड से क्या अलग कहा।
आरएसएस और बीजेपी का इवेंट
राम मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम को कांग्रेस ने आरएसएस और बीजेपी का इवेंट करार दिया। इस खास वजह से न सोनिया गांधी और न ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और न ही इस कार्यक्रम में लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन ही शामिल होंगे। बीजेपी और आरएसएस ने वर्षों से अयोध्या में राम मंदिर को एक राजनीतिक परियोजना बना दिया है। मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए ही किया जा रहा है।
नौटंकी कर रही है भाजपा: ममता
तृणमूल कांग्रेस की नेत्री और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी राम मंदिर उद्घाटन से खुद को यह कहते हुए अलग कर लिया है कि बीजेपी लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के जरिये नौटंकी कर रही है। भाजपा लोगों को धार्मिक आधार पर बांट रही है। मैं धर्म के आधार पर जनता को बांटने में विश्वास नहीं करती।
अयोध्या के राम मंदिर पर क्या बोले अखिलेश यादव
समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राम मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम में जाने से साफ ना कहा। वजह यह बताई कि निमंत्रण हम स्वीकार नहीं। हम जिन्हें जानते नहीं हैं, उन्हें न तो निमंत्रण देते हैं और न ही उनसे कोई निमंत्रण स्वीकार करते हैं। यह टिप्पणी अखिलेश यादव ने उनके लिए कि जो विश्व हिंदू परिषद की तरफ से आमंत्रण देने आए थे। वैसे उन्होंने यह भी कहा कि भगवान जब बुलाएंगे तब हम जाएंगे।
नीतीश कुमार को समय मिलेगा तो जाएंगे अयोध्या या फिर दूत
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राम मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम से सीधे ना नहीं कहा। उनकी तरफ से मीडिया में जो बातें आई हैं कि समय मिलेगा तो जायेंगे। या फिर उनका करीबी कोई नीतीश कुमार का दूत बनकर प्रतिनिधित्व करेंगे। यह मंत्री संजय झा होंगे या विजय चौधरी या फिर अशोक चौधरी यह विकल्प खुला रखा गया है। दरअसल, नीतीश कुमार की राजनीति का आधार सेक्युलरिज्म है। धर्म के नाम पर ना काहू से दोस्ती और न काहू से बैर…! सर्व धर्म संभाव के लिए जाने जाते हैं।
मगर ‘दूत’ शब्द जेडीयू की राजनीति को बदलता रहा है
नीतीश कुमार की राजनीति में दूत शब्द काफी बदलाव भरा होता है। याद होगा जब महागठबंधन की सरकार से नाता तोड़कर भाजपा से नाता जोड़ा था तब उन्होंने दूत संजय झा पर ही सारी जवाबदेही सौंप दी कि उन्हीं की राय पर भाजपा का दामन थामा। पर इस बार जब भाजपा से नाता तोड़कर महागठबंधन के साथ सरकार बनाई तो इस बाद दूत के नाम पर मंत्री विजेंद्र यादव और नीतीश कुमार के करीबी नेता राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह का नाम आया।