इजरायल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष को 16 दिन हो चुके हैं. हालांकि अब इसके जल्द खत्म होने की उम्मीद नहीं लग रही हैं. इस बीच कई देश इजरायल तो कई फिलिस्तीन का समर्थन कर रहे हैं. ऐसे में फिलिस्तीन का समर्थन कर रहे देश हमास के हमले को भी गलत नहीं ठहरा रहे.
आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस नीति अपनाने वाले भारत ने इस मुद्दे पर इजरायल का समर्थन किया है. 7 अक्टूबर को इजरायल पर अचानक हमास ने 5 हजार मिसाइल दाग दी थीं. जिससे कई नागरिकों की मौत हो गई. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल का समर्थन करते हुए सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर की गई पोस्ट में लिखा था, “मैं प्रधानमंत्री नेतन्याहू का फोन करके मुझे स्थिति पर अपडेट देने के लिए धन्यवाद देता हूं. भारत के लोग इस मुश्किल घड़ी में इजरायल के साथ मजबूती से खड़े हैं. भारत आतंकवाद के सभी रूपों की कड़ी निंदा करता है.” इसके पहले भी रॉकेट से किए गए हमले में मारे गए लोगों के लिए पीएम मोदी ने संवेदना व्यक्त की थी.
हालांकि पड़ोसी देश पाकिस्तान इस मुद्दे पर इस्लामिक कार्ड खेलते हुए फिलिस्तीन के प्रति अपनी संवेदनाएं जताईं. लेकिन उसका ये कार्ड चला नहीं. ऐसे में भारत के सामने भी एक बड़ी चुनौती है.
भारत को किस बात की चिंता?
हमास द्वारा इजरायल पर किया गया हमला भारत के लिए रणनीतिक लिहाज से अच्छा समय नहीं है. 2014 में जब से पीएम मोदी सत्ता में आए हैं तभी से उन्होंने अरब देशों और इजरायल के साथ संबंधों को बढ़ावा देने की दिशा में काम किया है. इस बीच भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच रिश्ते अच्छे हुए हैं. ऐसे में ये दोनों देश भारत को एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति के रूप में देखते हैं. इसके अलावा ये देश भारत के रणनीतिक भागीदार भी बन गए हैं.
भारत ने पहले ही संयुक्त अरब अमीरात के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और अक्टूबर 2021 में इजरायल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के साथ I2U2 नामक एक नए आर्थिक गठबंधन में प्रवेश किया है. वहीं हाल ही में भारत द्वारा जी20 शिखर सम्मेलन में पेश किए गए भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे पर अमेरिका सहित सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में सहमति बनी. जिसे बाद में इजरायल तक विस्तारित किया जाएगा. इस दिल्ली समझौते में भाग लेने वाले देशों के बीच व्यापार को भी बढ़ावा मिलेगा. हालांकि इजरायल-हमास के बीच चल रहे इस युद्ध से दिल्ली समझौता ठंडे बस्ते में जाता दिख रहा है.
भारत को क्यों है सावधानी से चलने की जरूरत?
यदि इजरायल और हमास के बीच छिड़ा संघर्ष उन्हीं तक सीमित रहता है तो भारत के लिए इसका नकारात्मक असर बहुत कम होगा. लेकिन यदि ये संघर्ष एशिया के अन्य हिस्सों में फैलता है तो आर्थिक मुद्दों के अलावा दुनिया के अन्य देशों के बीच संबंधों में भी इसका असर देखने को मिल सकता है. यदि भारत को दूसरे देशों से अपने संबंधों में प्रमुख खिलाड़ी माना जाना है तो उसे इजरायल और अरब देशों से अपने संबंधों में संतुलन लाना होगा, क्योंकि इस संघर्ष में अरब देश फिलिस्तीन के साथ हैं. यदि बात आगे बढ़ती है तो इजरायल समर्थक भारत को अरब देशों की नाराजगी का भी सामना करना पड़ सकता है.
विदेशी नीति के जानकारों का इस मामले पर मानना है कि यदि भारत वैश्विक दक्षिण नेता के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहता है तो उसे अरब देशों से अच्छे संबंध बरकरार रखने होंगे. इसके अलावा भारत को प्रमुख पश्चिमी देशों के साथ इजरायल को युद्ध के नियमों का पालन करने के लिए भी राजी करना होगा. क्योंकि यदि इजरायल अपने जमीनी हमले को बढ़ाता है और गाजा में लगातार आम नागरिक हताहत और पीड़ित होते हैं तो इससे इजरायल के प्रति सहानुभूति कम होने की संभावना ज्यादा है.
क्या है जी20 समिट में पेश किया गया आर्थिक गलियारा?
जी20 समिट से इतर भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ के नेताओं की ओर से संयुक्त रूप से नए आर्थिक गलियारे की घोषणा की गई, जिसे चीन की बेल्ट एंड रोड के विकल्प के रूप में देखा गया. इस पहल में दो अलग-अलग गलियारे शामिल होंगे- पूर्वी गलियारा जो भारत को पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व से जोड़ता है और उत्तरी गलियारा जो पश्चिम एशिया या मध्य पूर्व को यूरोप से जोड़ता है. आसान तरीके से कहें तो ये गलियारा भारत को मिडिल ईस्ट (मध्य पूर्व) और आखिर में यूरोप से जोड़ने का काम करेगा.
इस आर्थिक गलियारे का उद्देश्य रेलवे मार्ग के साथ प्रतिभागियों का इरादा बिजली और डिजिटल कनेक्टिविटी के लिए केबल बिछाने के साथ-साथ स्वच्छ हाइड्रोजन निर्यात के लिए पाइप बिछाने का है. ये गलियारा क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करेगा, व्यापार पहुंच बढ़ाएगा, व्यापार सुविधा में सुधार करेगा और पर्यावरणीय सामाजिक और सरकारी प्रभावों पर बढ़ते जोर का भी समर्थन करेगा. पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन समेत सभी भाग लेने वाले देशों के नेताओं ने इस आर्थिक गलियारे को ऐतिहासिक बताया है. साथ ही इस कदम को वैश्विक व्यापार के लिए ‘गेम चेंजर’ माना जा रहा था.
कैसे रहे हैं भारत और फिलिस्तीन के संबंध?
भारत फिलिस्तीन की मांगों का समर्थन करता रहा है. साल 1947 में भारत फिलिस्तीन के बंटवारे के खिलाफ इसके साथ था. इसके अलावा 1970 के दशक में भारत ने पीएलओ और उसके नेता यासिर अराफात का भी समर्थन किया था. इसके बाद 1975 में भारत ने पीएलओ को मान्यता दी थी. भारत पहला गैर-अरब देश था जिसने पीएलओ को मान्यता दी थी. साल 1988 में भारत ने फिलिस्तीन को एक देश के रूप में औपचारिक तौर पर मान्यता दी थी.
भारत ने साल 1996 में फिलिस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण की स्थापना के बाद गाजा में अपना रिप्रेजेंटेटिव ऑफिस भी खोला था. हालांकि 2003 में इसे ‘रामाल्लाह’ में शिफ्ट कर दिया गया. रामाल्लाह वेस्ट बैंक की इलाके में एक शहर है जो जुडी की पहाड़ियों से घिरा हुआ है. फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने साल 2008 में भारत दौरे के दौरान नई दिल्ली में फिलिस्तीनी दूतावास भवन का शिलान्यास किया था.
कब-कब बदले इजरायल के साथ भारत के संबंध?
भारत ने 1950 में इजरायल को मान्यता दी थी. हालांकि, 1992 से पहले तक भारत के इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंध नहीं थे. साल 1992 में पहली बार भारत ने इजरायल के साथ अपने कूटनीतिक संबंध स्थापित किए थे. इसके बाद साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग इजराइल के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया था. इस प्रस्ताव में गाजा इलाके में इजरायल के मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच शामिल थी. साथ ही इस प्रस्ताव पर भारत ने इजरायल के खिलाफ वोट करने से किनारा कर लिया था.
इजरायल और भारत के व्यापारिक संबंध
इजराइल के साथ भारत के व्यापारिक संबंध लगभग 10.7 अरब डॉलर के हैं. जिसमें निर्यात का हिस्सा $8.2 बिलियन है. इसके अलावा 300 से ज्यादा इजराइली कंपनियों ने भारत में निवेश किया है. इजराइल से भारत में होने वाला एफडीआई 28.5 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया है. वहीं भारतीय प्रॉजेक्ट्स में भी इजराइली निवेश 27 करोड़ डॉलर पार जा चुका है. भारत और इजरायल के बीच अगर इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट पर नजर डालें तो वित्त वर्ष 2022-23 में भारत ने इजराइल से लगभग 1400 तरह के समान का आयात किया है. जिसमें मोती, रत्न-आभूषण, फर्टिलाइजर, इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट और क्रूड जैसी चीजें शामिल है. ये व्यापार लगभग 2.32 अरब डॉलर का है.
इसके अलावा भारत ने इजराइल को लगभग 3500 वस्तुओं का निर्यात किया है. वर्ष 2022-23 में ये व्यापार लगभग 8.45 अरब डॉलर का रहा. भारत इजराइल को तराशे हुए हीरे, ज्वेलरी, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग सामान भेजता है. दोनों देशों में 2022 से फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर भी बातचीत चल रही है.