हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक (Mirwaiz Umar Farooq) को चार साल से अधिक समय बाद शुक्रवार को नजरबंदी से रिहा कर दिया गया. उनको अनुच्छेद 370 (Article 370) के निरस्तीकरण का विरोध करने के कारण हिरासत में रखा गया था. मीरवाइज ने श्रीनगर की जामिया मस्जिद में नमाज की रहनुमाई की. जहां उन्होंने कश्मीर मुद्दे का बातचीत के जरिए हल करने की अपील की. उन्होंने कहा कि हमने हमेशा अपने पंडित भाइयों को घाटी लौटने के लिए कहा है. मीरवाइज ने अफसोस जताया कि शांति की वकालत करने के बावजूद यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें ‘राष्ट्र-विरोधी, शांति-विरोधी और अलगाववादी’ करार दिया गया.
मीरवाइज उमर फारूक को धारा 370 हटाए जाने से एक दिन पहले 4 अगस्त, 2019 को हिरासत में लिया गया था. ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के मुताबिक मीरवाइज ने कश्मीरी पंडितों की घर वापसी पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि ‘हमने हमेशा अपने पंडित भाइयों को घाटी लौटने के लिए आमंत्रित किया है.’ अपने भाषण के दौरान वह अक्सर भावुक हो जाते थे और उनकी आंखों में आंसू आ जाते थे. मीरवाइज ने बताया कि कश्मीर कई लोगों के लिए एक इलाके का सवाल हो सकता है, लेकिन इलाके के लोगों के लिए यह ‘सबसे जरूरी मानवीय मुद्दा’ है, जिसे बातचीत के जरिये हल किया जाना चाहिए.
मीरवाइज उमर फारूक के मुताबिक हुर्रियत का मानना है कि ‘जम्मू-कश्मीर का एक हिस्सा भारत में है जबकि बाकी दो पाकिस्तान और चीन में हैं. इन्हें पूरी तरह से विलय करने से जम्मू-कश्मीर पूरा हो जाएगा, जैसा कि वह 14 अगस्त 1947 को था.’ हुर्रियत चीफ ने यूक्रेन संघर्ष पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का उल्लेख किया कि ‘यह युद्ध का युग नहीं है.’ उन्होंने कहा कि यह भावना कश्मीर के बारे में भी सच है. ‘हमने हमेशा हिंसक तरीकों के बजाय उसके विकल्पों के जरिये समाधान की कोशिशों में भरोसा किया है और इसमें हिस्सा लिया है, जो कि बातचीत और सुलह का रास्ता है. इस रास्ते को अपनाने के लिए हमें निजी रूप से तकलीफ सहना पड़ा है.’
मीरवाइज ने कहा कि 5 अगस्त, 2019 के बाद लोगों को कठिन समय का सामना करना पड़ा क्योंकि जम्मू-कश्मीर की विशेष पहचान छीन ली गई और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया. उन्होंने अपने पिता की मौत के बाद अपनी हिरासत को अपने जीवन का सबसे कठिन चरण बताया. मीरावाइज ने कहा कि ‘बहरहाल मुझे अदालत जाने के लिए मजबूर होना पड़ा और कल वरिष्ठ अधिकारियों ने मुझे बताया कि मुझे रिहा कर दिया जाएगा.’ मीरवाइज ने 15 सितंबर को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसने सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा था.
कश्मीर के प्रतिनिधि चेहरे के रूप में मीरवाइज को पेश कर केंद्र सरकार पाकिस्तान को भी कड़ा संदेश देना चाहती है, क्योंकि मीरवाइज कभी पाकिस्तान के कट्टर समर्थक नहीं रहे हैं। कश्मीर मामलों के जानकार विशेषज्ञों का कहना है कि मीरवाइज का न केवल कश्मीर में बल्कि मध्य एशिया में भी जबर्दस्त प्रभाव है। अलगाववादियों के गढ़ माने जाने वाले श्रीनगर के डाउनटाउन में अकेले मीरवाइज के छह लाख फॉलोअर बताए जाते हैं। कश्मीर के मौलवी तथा मौलानाओं में भी उनकी गहरी पकड़ है।
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- रिहाई से पहले भाजपा प्रवक्ता द्राक्षां मिलीं, अल्ताफ पहले मिल चुके : रिहाई से पहले जम्मू कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष व भाजपा प्रवक्ता डॉ. द्राक्षां अंद्राबी नगीन स्थित आवास पर जाकर मीरवाइज से मिलीं। उनका कहना है कि वह चूंकि धार्मिक संस्थाओं की प्रमुख हैं। इस नाते उनसे मुलाकात हुई। सरकार ने अमन का माहौल बनाया है। चार साल बाद सरकार ने उनकी रिहाई की, उन्होंने जामिया से तकरीर की, लेकिन कहीं भी न पथराव हुआ और न ही गोलियां चलीं। सकारात्मक रूप से उनकी रिहाई को लिया जाना चाहिए।
- अलगाववादी मुख्य धारा की राजनीति में खोजने लगे जगह : 370 खत्म होने के बाद अलगाववादियों का अस्तित्व समाप्त हो गया है। गिलानी गुट के लगभग सभी प्रमुख नेता या तो जेल में बंद हैं या फिर भूमिगत हैं। ऐसे में पाकिस्तान की आवाज उठाने वाला कोई नहीं बचा। बदली परिस्थितियों में सक्रिय अलगाववादी अब मुख्य धारा की राजनीति में जगह खोजने लगे हैं।
कश्मीरी पंडितों की वापसी की वकालत
हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष ने कश्मीर मुद्दे पर अपने अलगाववादी समूह के रुख को दोहराते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से हल किया जाना चाहिए। मीरवाइज ने यह भी कहा कि कश्मीर के लोग समुदायों और राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास करते हैं। उन्होंने कहा कि हमने हमेशा कश्मीरी पंडितों की वापसी की वकालत की है। यहां तक कि इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने से इन्कार किया है, क्योंकि यह एक मानवीय मुद्दा है। मुद्दों को सख्ती से निपटना बेहद खतरनाक है। इसने मानवाधिकारों के हनन को न्योता दिया है। हमारे कई नेता, हमारे लोग, महिलाएं और पुरुष, सालों से जेलों में हैं।
- मुद्दों को सख्ती से निपटना खतरनाक : हुर्रियत अध्यक्ष ने कहा कि कश्मीर के लोग समुदायों और राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास करते हैं। मुद्दों को सख्ती से निपटना बेहद खतरनाक है। इसने मानवाधिकारों के हनन को न्योता दिया है।