लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भारत-चीन सरहद के पास बनायी गयी सड़कों, सुरंगों और एयरफील्ड्स का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को उदघाटन किया. ऐसे कुल 90 प्रोजेक्ट्स हैं, जिनका एक साथ उदघाटन हुआ. भारत ने दिखाया कि चीन की हरकतों का जबाव देने के लिए सरहदी इलाकों में हमारे इन्फ्रास्ट्रक्चर को किस कदर मजबूत किया जा रहा है. राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत-चीन सीमा पर सड़कें, सुरंग बनाने का जितना काम साठ साल में नहीं हुआ, उससे कई गुना ज्यादा काम नरेन्द्र मोदी की सरकार ने सिर्फ दस साल में कर दिया है. सरहदी इलाकों में सड़क, पुल, सुरंग, एयरफील्ड बनाने वाले बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन के चीफ ने कहा कि पहले की सरकारों में न इच्छाशक्ति थी और न सरकारें पैसा देती थी, इसलिए चीन से सटे ऊंचाई वाले इलाकों में सेना, सीमा सुरक्षा बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के आने जाने में बहुत दिक्कतें होती थी. लेकिन अब वक्त बदल गया है. तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप हो रहा है. BRO के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी ने कहा कि वो दिन दूर नहीं जब हिमालय क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में भारत चीन को पीछे छोड़ देगा. सड़कों के साथ साथ हमारी सेनाओं के लिए दुनिया की सबसे ऊंची एयर फील्ड भी तैयार हो जाएगी. ये खबर इसलिए बड़ी हो जाती है क्योंकि कांग्रेस के नेता, खासतौर पर राहुल गांधी, रोज़ रोज़ ये इल्जाम लगाते हैं कि चीन ने हमारी सैकड़ों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है, हमारी सेना को पीछे हटना पड़ा क्योंकि सरकार चीन से डरती है. राहुल गांधी इल्जाम लगाते हैं कि चीन ने सरहद के बिल्कुल करीब सड़कों का जाल बिछा दिया है, सुरंगे बना ली हैं, तमाम पुल बना दिए हैं जबकि हमारी सरकार इस इलाके में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है लेकिन आज BRO के चीफ ने बताया कि भारत-चीन सरहद के आसपास तेजी से काम हो रहा.
बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइज़ेशन ने पश्चिम बंगाल के बागडोगरा और बैरकपुर एयरपोर्ट्स पर नए रनवे बनाए हैं. उनका भी उदघाटन हुआ. 529 करोड़ की लागत से बनाए गए नए रनवे वायु सेना के फॉरवर्ड बेस को और मज़बूती देंगे. अब भारत लद्दाख में अपनी चौकसी मज़बूत करने के लिए दुनिया की सबसे ऊंची एयरस्ट्रिप को रिडेवलप करने जा रहा है. ये एयरस्ट्रिप लद्दाख के न्यौमा में बनाई जा रही है. इस हवाई पट्टी पर काम शुरू हो गया है. न्यौमा में पहले भी एयरस्ट्रिप थी लेकिन 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद इसका इस्तेमाल बंद कर दिया गया था. 2009 से वायु सेना यहां पर ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उतारने लगी थी. 2020 में जब चीन के साथ तनाव बढ़ा, तो वायु सेना ने यहां C-130J ट्रांसपोर्टर प्लेन और हेलीकॉप्टर उतारे थे ताकि LAC पर सैनिकों और हथियारों को पहुंचाया जा सके. अब BRO को इस हवाई पट्टी को रिडेवेलप करने की ज़िम्मेदारी दी गई है. जब ये एयरस्ट्रिप तैयार हो जाएगी, तो भारत अपने फाइटर जेट्स और कारगो प्लेन यहां उतार सकेगा.आपातकालीन स्थिति में यहां टैंक, तोपें और सैनिकों को कुछ ही घंटों में सीमा तक पहुंचाया जा सकेगा. BRO को दुनिया की सबसे ऊंची टनल बनाने के प्रोजेक्ट को भी हरी झंडी दे दी गई है. ये सुरंग हिमाचल प्रदेश को लद्दाख से जोड़ेगी जिससे हर मौसम में लद्दाख तक रसद, और साज़-ओ-सामान पहुंचाया जा सकेगा.
राजनाथ सिंह ने जो बातें कहीं उसकी बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइज़ेशन के चीफ़ ने पुष्टि की. लेफ्टीनेंट जनरल राजीव चौधरी ने हमारे संवाददाता को बताया कि न्यौमा में नई एयरस्ट्रिप 2025 तक बनकर तैयार हो जाएगी, जिसके बाद न्यौमा एयरफ़ोर्स के फाइटर प्लेन्स के बेस का काम करेगा. न्यौमा के प्रोजेक्ट की अगुवाई BRO के महिला ऑफ़िसर्स की एक टीम करेगी. भारत-चीन सीमा पर 90 प्रोजेक्ट का उदघाटन हो गया. इसके अलावा 60 और प्रोजेक्ट पर तेज़ी से काम चल रहा है. ये प्रोजेक्ट इस साल के अंत तक पूरे हो जाएंगे. इनमें अरुणाचल प्रदेश में बन रही सेला टनल भी शामिल है. ये दुनिया की सबसे ऊंची डबल लेन टनल है जिसको 13 हज़ार फुट की ऊंचाई पर बनाया गया है. इस टनल के बनने से तवांग सेक्टर के फॉरवर्ड एरिया में सैनिकों की मूवमेंट बहुत आसान और तेज़ हो जाएगी. असल में चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता है. लद्दाख के अलावा अरुणाचल प्रदेश से लगने वाली अपनी सीमा पर चीन तेज़ी से एय़रबेस, मिसाइल रखने के ठिकाने, सड़कें, पुल और अंडरग्राउंड बंकर बना रहा है. इसके अलावा चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी सरहद के पास सैनिकों के रहने के लिए कॉलोनी और हथियारों के डिपो भी बना रही है.
भारत अभी तक बॉर्डर एरिया के डेवेलपमेंट में चीन से बहुत पीछे था लेकिन अब मोदी सरकार, लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल तक पहुंचने के लिए टनल्स, रोड, ब्रिज और बेस बनाने पर ज़ोर दे रही है. हालांकि इतनी ऊंचाई पर टनल बनाना आसान काम नहीं होता. इतनी ऊंचाई पर मशीनें भी ठीक से काम नहीं करतीं. BRO के चीफ ने बताया कि अब ऊंचे पहाड़ों पर टनल बनाने के लिए लेटेस्ट टेक्नोल़जी का इस्तेमाल किया जा रहा है. विपक्ष आरोप लगाता है कि सरकार चीन को ठीक से जवाब नहीं दे रही है. चीन से निपटने के लिए कुछ नहीं कर रही है लेकिन आज BRO की तरफ से कई चौंकाने वाले आंकड़े सामने रखे गए. बताया गया कि 2008 से 2015 के दौरान BRO सीमा पर हर साल 632 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाता था, लेकिन 2015 के बाद से BRO हर साल 934 किलोमीटर रोड बना रहा है. 2008 से 2015 के बीच BRO सीमा पर हर साल 1224 मीटर पुल बनाता था, अब ये रेट 3652 मीटर per year हो गया है. काम की स्पीड बढ़ी है, तो ख़र्च भी बढ़ा है. इसलिए सरकार ने BRO का बजट भी बढ़ा दिया है. 2008 से 2017 के बीच बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइज़ेशन का बजट 3,305 करोड़ रुपए से लेकर चार हज़ार 670 करोड़ रुपए के बीच रहा करता था लेकिन 2023-24 के लिए BRO का बजट 15 हज़ार करोड़ रुपए है. वहीं, 2022-23 में BRO ने सीमा पर इन्फ्रा विकास के लिए 12 हज़ार 340 करोड़ रुपए ख़र्च किए थे. 2021 में ये रक़म नौ हज़ार तीन सौ 75 करोड़ रुपए, 2020 में क़रीब नौ हज़ार करोड़ रुपए और 2019 में सात हज़ार 737 करोड़ रुपए थी. यानी चार साल के भीतर बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइज़ेशन का बजट दो गुने से भी ज़्यादा हो गया है… इसका ट्रिगर प्वाइंट गलवान वैली में PLA और इंडियन आर्मी के बीच ख़ूनी संघर्ष था… उसके बाद से ही मोदी सरकार ने सरहदी इलाके में इन्फ्रास्ट्रक्चर को तेजी से विकसित करने पर फोकस किया है.
BRO के चीफ़ ने बताया कि आज़ादी के बाद के 60 साल में BRO ने केवल दो टनल बनाई थीं, लेकिन पिछले तीन साल में बॉर्डर एरिया में चार टनल का काम पूरा हो चुका है, 10 टनल पर काम पूरा होने वाला है और फॉरवर्ड लोकेशन्स पर सात टनल का प्लान भी तैयार है. लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी ने माना कि बॉर्डर एरिया के डेवेलपमेंट में अभी चीन भारत से काफ़ी आगे है. उसने LAC पर कई एयरस्ट्रिप बना ली हैं, फॉरवर्ड बेस बना लिए हैं, लेकिन BRO चीफ का कहना है कि अगले दो तीन साल में भारत इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा. भारत ने चीन की सीमा पर जो इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया है , इसकी बहुत जरूरत थी. आज सरहद पर चीन और भारत की सेनाएं आमने सामने हैं. चीन पिछले कई साल से यहां इंफ्रास्ट्रक्चर बनाता रहा लेकिन दुख की बात ये है कि पहले ही हमारी सरकारों ने भारत-चीन सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं बनाया ये सोचकर कि कहीं चीन नाराज न हो जाये. उस सरकार की सोच ऐसी थी कि हम चीन का मुकाबला नहीं कर पाएंगे. डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार में रक्षी मंत्री रहे ए के एंटोनी ने 6 सितंबर 2013 को लोकसभा में कहा था कि सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के मामले में चीन हमसे बहुत आगे है, हम उसका सामना नहीं कर सकते. उस समय की सरकार ने सीमा के आस-पास सड़क, टनल, और एयरफील्ड्स बनाए ही नहीं क्योंकि उस समय हमारी सरकार की नीति रही है कि ‘non-developed border is more secure than developed border’. यही वजह थी कि चीन हमको आंख दिखाता था लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस नीति को बदल दिया, रक्षात्मक होने की बजाय आक्रामक नीति बनाई. चीन को उसी की भाषा में जबाव दिया और अब हमारी सेनाएं हर मौसम में चीन का मुकाबला करने को तैयार है. आज जिस विशाल पैमाने पर सड़कों, पुलों, टनल और एयरस्ट्रिप का उदघाटन हुआ, वो एक बड़ी बात है. अब हमारे सैनिकों को टैंक और तोपों को सरहद तक पहुंचाने में देर नहीं लगेगी. लेकिन राहुल गांधी को ये सब दिखाई नहीं देता. क्योंकि उन्हें हर हाल में नरेन्द्र मोदी का विरोध करना है. भले ही उसके लिए चीन का परोक्ष रूप से समर्थन क्यों न करना पड़े. हकीकत कुछ भी हो, लेकिन विरोधी दलों के नेताओं का एक ही लक्ष्य है, नरेन्द्र मोदी को नीचा दिखाना, मोदी का विरोध करना.