यूनिफॉर्म सिविल कोड के मसले पर विचार करने के लिए कानून मंत्रालय से जुड़ी संसदीय स्थायी समिति की बैठक सोमवार 3 जुलाई को होगी और इसमें कानून मंत्रालय और विधि आयोग के आधिकारियों को बुलाया गया है। इस बीच समान नागरिक संहिता को लेकर देश भर में बहस का दौर जारी है। गुरुवार को ईद की नमाज़ के बाद मौलानाओं ने अपनी तकरीरों में इस पर अपनी अपनी राय रखी। ज्यादातर मुसलमान समान नागरिक संहिता के पक्ष में नहीं है। उनका कहना है कि समान संहिता आने से इस्लाम में लागू शरीयत के नियम कायदे प्रभावित होंगे। कोई कह रहा है कि इसे सिर्फ मुसलमानों को परेशान करने की नीयत से लाया जा रहा है। किसी ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का सिर्फ शिगूफा छोड़ा गया है, ये सिर्फ सियासी जुमला है, होगा कुछ नहीं। हालांकि कुछ मौलानाओं का मानना है कि अगर समान नागरिक संहिता सभी धर्मों के लोगों से बात करके, सबकी सहमति से लागू की जाती है, तो इसमें कोई हर्ज नहीं, लेकिन इसे जबरन नहीं थोपा जाना चाहिए। विरोधी दलों के नेताओं ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर जोरदार हमला बोला। फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि कहीं ऐसा न हो कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने से देश में कोई तूफान आ जाए। शरद पवार ने कहा कि मोदी की नीयत में खोट है और उन्होंने विरोधी दलों की एकता से घबरा कर ये मुद्दा उछाला है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा कि यह वोटों का ध्रुवीकरण करने की बीजेपी की चाल है, लोगों को इसमें नहीं फंसना चाहिए। कुल मिलाकर अब इस मुद्दे पर आम लोग भी अपनी राय जाहिर कर रहे हैं और राजनीतिक दल भी सक्रिय हो गए हैं। अब सवाल ये है कि क्या ये मसला सिर्फ सियासी है, या वाकई में सरकार संसद के मॉनसून सत्र में सिविल कोड पर बिल पास कर सकती है? यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर जो तस्वीरें पेश की जा रही है, उनमें से एक है कि ये कानून मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए लाया जा रहा है। दूसरी तस्वीर ये है कि अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो गया तो धार्मिक आजादी खत्म हो जाएगी, शादी ब्याह के तौर तरीके बदल जाएंगे, रीति रिवाज़ छोड़ने पड़ेंगे। ये कहकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है कि मुसलमानों और ईसाइयों को मरने के बाद दफनाने नहीं दिया जाएगा, सबको हिंदू रिवाजों के मुताबिक शवों को जलाना होगा। लेकिन असलियत में यूनिफॉर्म सिविल कोड का ऐसे रीति-रिवाजों और परंपराओं से कोई सरोकार नहीं है। यूनिफॉर्म सिविल कोड तो कुछ सामाजिक नियमों में बदलाव है। ये कानून सबको बराबरी का हक देगा। जैसे अभी अलग-अलग धर्मों में लड़की की शादी की उम्र अलग-अलग है, वो सबके लिए एक होगी, कई शादियां करने पर रोक लगेगी, हलाला जैसी प्रथाएं खत्म होंगी। अभी सबके लिए शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं हैं, यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद शादी का रजिस्ट्रेशन जरूरी होगा। अभी सभी धर्मों में पिता की जायदाद में लड़कियों को मिलने वाले हिस्से के नियम अलग-अलग हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड में लड़कियों को उत्तराधिकार में मिलने वाली संपत्ति का नियम सबके लिए बराबर होगा। इसी तरह अभी बच्चा गोद लेने के नियम भी अलग-अलग हैं। कई जगह महिलाओं को बच्चा गोद लेने का हक नहीं है। यूनिफॉर्म सिविल कोड में ये हक महिलाओं को भी मिलेगा और सबको बराबर मिलेगा। पति की मौत के बाद अभी पत्नी को मुआवजा मिलता है लेकिन अगर बाद में वो महिला शादी कर लेती है तो मुआवजे को लेकर अलग-अलग नियम हैं, इसको लेकर भी एकरूपता लायी जाएगी। हालांकि कुछ सवाल हैं जिनके जवाब अभी नहीं हैं – जैसे गोवा में जो यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है, वहां हिदुओं में भी पहली पत्नी से बेटा न हो तो उन्हें दूसरी शादी करने का अधिकार है। क्या ऐसे नियमों को भी बदला जाएगा? इसी तरह आदिवासी समाज में कई जगह विवाह को लेकर कुछ परंपराएं सदियों से चली आ रहीं हैं, उनका क्या होगा? इसलिए अभी लॉ कमीशन बड़े पैमाने पर लोगों की राय ले रहा है। अब तक 9 लाख से ज्यादा लोगों की राय लॉ कमीशन को मिल चुकी है। 13 जुलाई के बाद लॉ कमीशन का ड्राफ्ट सामने आएगा तब और स्थिति साफ होगी लेकिन अभी तक जो जानकारी मिली है, जो मैंने आपके साथ शेयर की है, उसमें तो ऐसा कुछ नहीं है जिसको लेकर ये कहा जाए कि यूनिफॉर्म सिविल कोड मुसलमानों को निशाना के लिए लाया जा रहा है या इससे किसी के रीति-रिवाजों पर कोई असर पड़ेगा। इसीलिए मैंने कहा कि ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वो लोगों के मन में बैठाई गई शंकाओं को दूर करे। उसके बाद ही यूनिफॉर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट तैयार किया जाए।