सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में खेले जाने वाले खेल ‘जल्लीकट्टू‘ की अनुमति देने वाले तमिलनाडु के कानून को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017, जानवरों के दर्द और पीड़ा को काफी हद तक कम करता है। कोर्ट ने कहा है कि तमिलनाडु का जानवरों के साथ क्रूरता कानून (संशोधन), 2017 जानवरों को होने वाले दर्द और पीड़ा को काफी हद तक कम कर देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में होने वाली परंपरागत बैलों की दौड़ यानी जल्लीकट्टू पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब सरकार ने जल्लीकट्टू को संस्कृति का हिस्सा घोषित कर दिया है तो हम इस पर अलग नजरिया नहीं दे सकते हैं। इस पर फैसला करने के लिए विधानसभा ही सबसे सही जगह है।
अदालत में जल्लीकट्टू के खिलाफ पशु क्रूरता का हवाला देते हुए कई याचिकाएं लगाई गई थीं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू की इजाजत देने वाले कानून को बरकरार रखा है। कहा कि 2017 में प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल एक्ट में संशोधन किया गया। इससे पशुओं को होने वाले कष्ट में वास्तव में कमी आई है।
जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की 5 जजों की बेंच ने 8 दिसंबर 2022 को मामले में सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। सवा पांच महीने बाद आज बेंच ने फैसला सुनाया है।
तमिलनाडु सरकार बोली- जल्लीकट्टू में सांडों से कोई क्रूरता नहीं होती
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से पूछा था कि क्या जल्लीकट्टू जैसे सांडों को वश में करने वाले खेल में किसी जानवर का इस्तेमाल किया जा सकता है? इस पर सरकार ने हलफनामे में कहा था कि जल्लीकट्टू केवल मनोरंजन का काम नहीं है. बल्कि महान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व वाला कार्यक्रम है। इस खेल में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं होती है। पेरू, कोलंबिया और स्पेन जैसे देश भी बुल फाइटिंग को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं। इसके अलावा सरकार ने तर्क दिया कि जल्लीकट्टू’ में शामिल सांडों को साल भर किसानों द्वारा ट्रेनिंग दी जाती है ताकि कोई खतरा न हो।
जल्लीकट्टू खेल का मामला सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा…
1. भीड़ के बीच सांड को कंट्रोल करने का खेल है जल्लीकट्टू
जल्लीकट्टू के खेल में खिलाड़ियों को खुले सांड को कंट्रोल करना होता है। जल्लीकट्टू को एरु थझुवुथल और मनकुविरत्तु के नाम से भी जाना जाता है। यह खेल पोंगल त्योहार का एक हिस्सा है। यह एक ऐसा खेल है जिसमें भीड़ के बीच एक सांड को छोड़ दिया जाता है और खिलाडी उसे कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं।
2. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में खेल पर रोक लगा दी
साल 2011 में केंद्र सरकार ने बैलों को उन जानवरों की सूची में शामिल किया, जिनका प्रशिक्षण और प्रदर्शनी बैन है। इसके बाद जानवरों की सुरक्षा करने वाली संस्था पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) ने जल्लीकट्टू खेल को बैन की मांग की। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इस खेल पर रोक लगा दी। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने केंद्र से इस खेल को जारी रखने के लिए अध्यादेश लाने की मांग की। 2016 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी की और कुछ शर्तों के साथ जल्लीकट्टू के आयोजन को हरी झंडी मिल गई। मसलन पूरी प्रतियोगिता की वीडियोग्राफी होगी। बैलों का मेडिकल टेस्ट होगा। मौके पर डॉक्टर्स की टीम, DC और SSP मौजूद रहेंगे। महाराष्ट्र में भी केंद्रीय कानून पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 में संशोधन किया गया और जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति दे दी गई।

3. जल्लीकट्टू को परमिशन देने वाले कानून के खिलाफ मामला फिर कोर्ट पहुंचा
खेल के आयोजन को लेकर तमिलनाडु सरकार की तरफ से बनाए गए कानून के खिलाफ पेटा फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। पेटा ने इस कानून को रद्द करने की मांग की। उसने कहा कि जानवरों के साथ इस तरह से क्रूरता गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले तो याचिका खारिज कर दी, लेकिन पुनर्विचार याचिका दायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया।