दिल्ली हाई कोर्ट ने 6 वर्ष बच्चे के यौन शोषण के आरोपी के साथ दो लाख रुपये में समझौता करने वाली मां की करतूत पर गहरा दुख व्यक्त किया। अदालत ने कहा‚ जो बच्चा ठीक से बोल भी नहीं पाता उसकी शारीरिक व मानसिक पीड़़ा को मां ने महसूस भी नहीं किया। मामले की गंभीरता इससे समझी जानी चाहिए कि आरोपी की जमानत याचिकाएं पांच बार खारिज हो चुकी हैं। न्यायमूर्ति स्वर्ण कान्ता शर्मा ने इसे बहुत दुखद बताते हुए कहा कि लड़़के की पीड़Ãा की कहानी उसके डॅ़ाक्टरी परीक्षण बता रहे हैं। अक्टूबर‚ २०२१ में घर के बाहर खेल रहे इस बच्चे को दस रुपये का लालच देकर अगवा कर लिया गया था। दो आरोपियों ने उसका यौन शोषण किया था। जब बच्चा घर लौटा तो उसके गुप्तांग से बुरी तरह खून बह रहा था। उसका ऑपरेशन करना पड़़ा। मासूमों को हवस का शिकार बनाने वाले किस कदर बेफिक्र हैं‚ इसे समझना चाहिए। बृहस्पतिवार को ही दिल्ली की रोहणी कोर्ट ने २०१५ में ६ साल की बच्ची के रेप व हत्या में दोषी ठहराया। दोषी रविन्दर १८ वर्ष की उम्र से ही शराब व ड्रग्स का लती है। उसने स्वयं कबूला कि २००८ से वह ६ से १२ साल के कई बच्चों का यौन शोषण कर चुका है। चूंकि किसी ने उस पर शक नहीं किया इसलिए वह पोर्न वीडि़यो देखकर लगातार बलात्कार करता रहा। जाहिर है‚ इन बच्चों के परिवार ने जानते–बूझते अपराध को छिपाने में ही भलाई समझी। नेशनल क्राइम रिकार्ड़ ब्यूरो के अनुसार देश में सिर्फ एक साल (२०२१) के दरम्यान बलात्कार के कुल मामलों में अकेले नाबालिग बच्चियों के खिलाफ यौन अपराधों के तैंतीस हजार केस दर्ज हुए‚ जिन पर पॉस्को लगा। इन मामलों में दोषी ९५ फीसद परिचित पुरुष होते हैं। अपने बेटे के आरोपी से पैसे वसूलने वाली यह मां तो अदालत के समक्ष आ गई‚ जबकि ढेरों मामलों पर ऐसे ही लीपापोती होती है। पीडि़तों के परिवार वाले भी क्रूर और सख्त ह्रदय हो सकते हैं‚ परंतु कई बार उनकी स्थिति काफी दयनीय हो जाती है। उन्हें ड़राया–धमकाया भी जा सकता है और वे मजबूरन मुआवजा लेकर खून का घंूट पीने को मजबूर हो जाते हैं। ऐसे दरिंदों को सख्त सजा तो होनी ही चाहिए पर हमें ऐसा समाज भी निर्मित करना चाहिए‚ जहां पीडि़़तों के दर्द को जजमेंटल हुए बिना महसूसा जा सके।
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