लोकसभा चुनाव को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम में जुटे हुए हैं। इसे लेकर वे, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली CM अरविंद केजरीवाल सहित कई नेताओं से मिल चुके है।
अब उनका अगला पड़ाव ओडिशा है। पहले चर्चा थी कि वे 5 मई को ओडिशा में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात करेंगे, लेकिन अब माना जा रहा है CM नीतीश अपनी विपक्षी एकता की इस यात्रा को अब 13 मई के बाद शुरू करेंगे।
बता दें कि कर्नाटक में 10 मई को चुनाव होना है, नतीजे 13 मई को आएंगे। ऐसे में कर्नाटक का परिणाम नीतीश कुमार के विपक्षी एकता की मुहिम को नया मोड़ दे सकता है।
एक दिन पहले ही नीतीश कुमार ने कहा था कि नवीन पटनायक से मिलना तो है, लेकिन अभी नहीं…। वहीं, ओडिशा के मुख्यमंत्री को भी कर्नाटक चुनाव के नतीजे का इंतजार है।
3 मई को कर्नाटक चुनाव के नतीजे आएंगे, इसलिए नीतीश रुके
सीनियर जर्नलिस्ट रवि उपाध्याय का मानना है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे ही विपक्षी एकता की मुहिम का रुख तय करेगा। इसकी वजह साफ है, क्योंकि ज्यादातर सर्वे में वहां कांग्रेस की स्थिति मजबूत देखी जा रही है। हालांकि, यह नतीजों के बाद पता चलेगा की वहां किसकी सरकार बनती है।
रवि उपाध्याय के मुताबिक, अगर कर्नाटक में कांग्रेस सत्ता में वापसी करती है तो 2024 के लिए कांग्रेस की स्थिति मजबूत होती दिख रही है। अगर बीजेपी फिर से कर्नाटक में सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है, तो नीतीश कुमार की मुहिम और तेज हो जाएगी।
रवि उपाध्याय बताते हैं कि यदि कांग्रेस, कर्नाटक में वापस आती है तो नीतीश कुमार को विपक्षी एकता के लिए फ्री हैंड नहीं दे सकती। यदि बीजेपी की वापसी कर्नाटक में होती है तो नीतीश कुमार के सहारे कांग्रेस 2024 का चुनाव लड़ सकती है। इस मुहिम में कांग्रेस नीतीश कुमार का साथ देगी और एक बड़ा गठबंधन बनाकर 2024 के चुनाव में उतरेगी।
सिर्फ नीतीश ही नहीं…कर्नाटक चुनाव पर ओडिशा CM की भी नजर
कर्नाटक चुनाव के नतीजे का इंतजार सिर्फ नीतीश ही नहीं, बल्कि उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी कर रहे हैं। दोनों को 13 मई का इंतजार है। ओडिशा में लगातार 5 बार मुख्यमंत्री रहे नवीन पटनायक को कर्नाटक चुनाव परिणाम का इसलिए इंतजार रहेगा, क्योंकि वहां बीजू जनता दल (BJD) को लेकर एंटी इनकम्बेंसी है
आने वाले समय में ओडिशा में सरकार बनाने में BJD को यदि किसी का साथ लेना हो तो क्या रुख रहेगा… वह 13 मई के बाद नवीन पटनायक तय करेंगे। इसलिए इन दोनों बड़े नेताओं की मुलाकात 13 मई के परिणाम के बाद ही संभव है।
पटनायक पर कई विवाद, फिर भी 5 बार से जीते
नवीन पटनायक पूरे देश में अकेले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो अपने राज्य की भाषा उड़िया न तो बोल पाते हैं और न ही पढ़-लिख सकते हैं। इसके बावजूद लोग उन्हें लगातार पांच बार जीता चुके हैं। हर बार पहले के मुकाबले अधिक मतों से जीताते हैं।
रवि उपाध्याय बताते हैं कि नवीन पटनायक पिछले कुछ समय में बीजेपी और कांग्रेस दोनों मुख्य राष्ट्रीय पार्टियों से बराबर की दूरी रखकर अपनी राजनीति कर रहे हैं। नवीन पटनायक का नाम चिटफंड घोटाले से लेकर खनन घोटाले समेत कई विवादों में आ चुका है, लेकिन उसके बावजूद ओडिशा की जनता के बीच आज भी उनकी छवि साफ मानी जाती है।
यही वजह है कि जब देश के कई हिस्सों में जनता ने नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दिया था, उस वक्त भी ओडिशा की जनता ने नवीन पटनायक को ऊपर रखा।
ऐसे बढ़ा नवीन पटनायक का राजनीतिक ग्राफ
नवीन पटनायक की राजनीति भाजपा के साथ ही शुरू हुई थी। भाजपा और बीजू जनता दल ने 2000 से 2009 तक ओडिशा में गठबंधन सरकार चलाई थी, लेकिन, नवीन पटनायक को यह बात समझ में आ गई कि सत्ता के लिए भाजपा का साथ काफी घातक है। बीजेपी के साथ यह गठबंधन एक दिन BJD को सत्ता से बाहर कर देगी।
सीट शेयरिंग के मुद्दे पर दोनों का गठबंधन टूट गया, और दोनों की राहें जुदा-जुदा हो गईं, लेकिन भाजपा में मोदी युग में अब BJD खुद को मुश्किल परिस्थिति में देख रही है। क्योंकि भाजपा लगातार मुख्य प्रतिद्वंद्वी के तौर पर तेजी उभर रही है।
2014 और 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मिली सीटें और वोट प्रतिशत की बात करें तो बीजेपी धीरे धीरे BJD की मुख्य प्रतिद्वंद्वी बनकर खड़ी हो गई है। कांग्रेस यहां तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है।
2014 में 147 सीटों वाली विधानसभा चुनाव में बीजू जनता दल ने 43.40 प्रतिशत वोट पाकर 117 सीटें जीती थी। वहीं कांग्रेस पार्टी ने 25.70 प्रतिशत वोट हासिल कर 16 और 18 प्रतिशत वोट हासिल कर भाजपा ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
2019 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो BJD का वोट प्रतिशत बढ़कर 44.71 प्रतिशत जरूर हो गया, लेकिन सीटों की संख्या घटकर 112 रह गई। वहीं भाजपा 32.49 प्रतिशत वोट के साथ 23 सीटों पर जीत दर्ज की और कांग्रेस 16.12 प्रतिशत वोट के साथ 9 सीटें जीतकर तीसरे नंबर की पार्टी बन गई।
लोकसभा में 21 सीटों की बात करें तो 2014 के मोदी लहर में 20 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली BJD 2019 में 8 सीटें गंवाकर 12 सीटों पर सिमट गई।