224 सीटों में से प्रत्येक पर उम्मीदवारों की अंतिम सूची के साथ तस्वीर स्पष्ट होने से कर्नाटक अब दो सप्ताह के विधानसभा चुनावी (Karnataka Assembly Elections 2023) अभियान के लिए पूरी तरह से तैयार है. पिछले एक महीने से भारतीय जनता पार्टी (BJP), कांग्रेस और जद(एस) के कई नेता अपनी पार्टियों और उम्मीदवारों (Candidates) के समर्थन के लिए राज्य का दौरा कर रहे हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने भी कोलार में अपना चुनाव अभियान शुरू किया और फिर उत्तरी कर्नाटक के कुछ हिस्सों का दौरा किया. ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें स्थानीय मुद्दों (Local Issues) और राज्य सरकार पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी गई है. राज्य में कांग्रेस पार्टी अपनी चुनावी रणनीति (Election Strategy) में लगातार यही रुख अपनाती रही है.
राहुल गांधी की रणनीति के दो पहलू
राहुल गांधी की इस राजनीतिक रणनीति के दो पहलू हैं. सबसे पहले तो यही कि भाजपा अपने केंद्रीय नेतृत्व और केंद्र सरकार के कामों पर केंद्रित चुनावी अभियान चला रही है. ऐसे कांग्रेस ने स्थानीय मसलों के रूप में एम्बेडेड एक काउंटर नैरेटिव के साथ अपना चुनावी अभियान चलाने की रणनीति बनाई है. दूसरे चूंकि कांग्रेस विपक्ष में है, इसलिए भाजपा की राज्य सरकार पर अपना हमला करना उसके लिए कहीं उपयुक्त और बेहतर विकल्प है. पिछले महीने राजनीतिक घटनाक्रमों और विवादों की एक श्रृंखला के परिणामस्वरूप राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा स्पष्ट रूप से बैकफुट पर आ रही है. यही नहीं, इस प्रक्रिया में वह अधिक से अधिक रक्षात्मक और प्रतिक्रियाशील हो गई है.
अब कांग्रेस तय कर रही है एजेंडा
राज्य में सत्ता में रहने के पहले तीन वर्षों यानी 2019-22 में भाजपा एजेंडा सेट करती रही थी और कांग्रेस को बड़े पैमाने पर इसका जवाब देना पड़ रहा था. पिछले वर्षों में दोनों की भूमिकाएं काफी हद तक उलट गई हैं. अब कांग्रेस ने एजेंडा तय कर लिया है, जिस पर भाजपा को उन मुद्दों पर प्रतिक्रिया देनी पड़ रही है. अपने अभियान के नवीनतम दौर में राहुल गांधी इसी कारण राज्य सरकार पर सीधा हमला कर रहे हैं. यही नहीं, केंद्रीय नेतृत्व पर अपने हमले को राज्य की राजनीति के चश्मे से देख रहे हैं. 40 प्रतिशत कमीशन वाली सरकार के कांग्रेस के आरोप को और विस्तार करते हुए राहुल गांधी ने यहां तक दावा कर दिया कि भाजपा 40 सीटों तक सीमित रह जाएगी. समाज सुधारक और दार्शनिक बसवेश्वर, जिनके विचार लिंगायत दर्शन के मूल में हैं, का जिक्र करते हुए, राहुल गांधी ने सत्य और सद्भाव पर संत के ध्यान पर प्रकाश डाला. उन्होंने आगे कहा कि कर्नाटक ने हालिया दौर में राज्य में नफरत और हिंसा में वृद्धि ही देखी है.
राष्ट्रीय मुद्दों की गूंज तो है ही
इससे पहले जब अमूल-नंदिनी विवाद अपने चरम पर था, वह आइसक्रीम खाने के लिए राज्य के कांग्रेस नेताओं के साथ नंदिनी की एक दुकान पर गए थे. बाद में उन्होंने ट्वीट किया, ‘कर्नाटक का गौरव-नंदिनी इज द बेस्ट’. वह जो फोकस बनाए रखना चाहते थे, वह स्पष्ट और अनिवार्य रूप से स्थानीय था. उनका नंदिनी की आइसक्रीम खाना अंततः राजनीतिक विवाद में बदल गया. राहुल गांधी के आलोचकों ने पड़ोसी राज्य केरल में नंदिनी को प्रोत्साहित नहीं करने के लिए उन पर हमला किया, जहां से वह हाल तक सांसद रहे थे. कई लोगों ने सोचा होगा कि अपने प्रचार भाषणों के हिस्से के रूप में राहुल गांधी लोकसभा से अपनी अयोग्यता, अडानी विवाद और इस तरह की चीजों पर ध्यान केंद्रित करेंगे. यह कर्नाटक के बाहर और देश भर में उनके भाषणों का मुख्य आधार रहा है. अब उनके कर्नाटक चुनावी अभियान में उनके संदर्भ राज्य के भीतर विकास के संदर्भों से जुड़े प्रतीत होते हैं.
क्या राहुल आगे भी जारी रखेंगे यही रणनीति है बड़ा सवाल
स्पष्ट रूप से कांग्रेस पार्टी की राज्य इकाई के फोकस्ड अभियान के अनुरूप राहुल गांधी ने भाजपा पर हमला करने के लिए अपने पसंदीदा राष्ट्रीय मुद्दों को उठाने से परहेज किया और राज्य स्तर के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया. एक राज्य-स्तरीय चुनाव होने के कारण मतदाताओं का ध्यान अक्सर राज्य से जुड़े मुद्दों पर होता है. विशेष रूप से विपक्ष में होने के कारण कांग्रेस और उसके नेताओं के लिए राज्य सरकार पर अपना हमला केंद्रित करना आसान हो जाता है. चुनाव प्रचार के अपने अगले चरण के लिए राज्य में लौटने के बाद देखना होगा कि क्या राहुल गांधी कर्नाटक-विशिष्ट फोकस जारी रखते हैं या नहीं. भाजपा के चुनावी अभियान में एक मामूली स्थानीय स्वाद के साथ एक अखिल भारतीय कथा है. क्या कांग्रेस और उसके नेतृत्व को भाजपा के लगातार फोकस का जवाब देने के प्रलोभन में फंसाया जाएगा या वे अपने ‘केवल स्थानीय’ संदेश पर टिके रहेंगे? शेष दो सप्ताहों में प्रत्येक दिन दो उभरते हुए नैरेटिव्स के जरिये मतदाताओं का ध्यान आकर्षित करने की लड़ाई तय है.