क्रिकेट दुनिया के रियल हीरो सलीम दुर्रानी ने दुनिया को अलविदा कह दिया। वह कैंसर से पीडि़़त थे और उन्होंने गुजरात के जामनगर में दो अप्रैल को अंतिम सांस ली। वह ८८ साल के थे। सलीम दुर्रानी साहब ने करीब एक दशक के क्रिकेट कॅरियर में खेले तो सिर्फ २९ टेस्ट थे पर उनके बारे में टेस्ट मैचों से कहीं ज्यादा किस्से मशहूर हैं। उनके बारे में सबसे ज्यादा कोई बात मशहूर थी‚ वह थी दर्शकों की मांग पर छक्का लगा देना। वह क्रिकेटप्रेमियों के दिलों में राज किया करते थे। उनका काबुल में ११ दिसम्बर‚ १९३४ को जन्म हुआ था। वह जब आठ महीने के थे‚ तब पिता कराची रहने चले गए। १९४७ में भारत का बंटवारा होने पर उनका परिवार भारत आ गया।
सलीम दुर्रानी के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह यारों के यार थे। उन्होंने अपने जीवन में हर क्षेत्र में यार बनाए। इस कारण ही बॉलीवुड़ में देव आनंद‚ अशोक कुमार‚ मीनाकुमारी‚ साउथ फिल्मों के जैमिनी गणेशन और सिंगर हेमंत कुमार उनके अच्छे दोस्त हुआ करते थे। सलीम दुर्रानी देखने में बहुत खूबसूरत थे और १९७३ में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद देव आनंद ने उनसे पूछा था‚ हीरो बनोगे। इसके बाद ही उनकी परवीन बॉबी के साथ चरित्र नामक फिल्म बनी। बाद में उन्होंने कुछ और फिल्मों में काम किया। वह जरूरतमंदों की मदद करने के लिए भी मशहूर थे। एक बार वह रणजी मैच खेलने गए और वहां बुजुर्ग महिला भिखारिन ठंड़ से कुड़़कुड़़ा रही थी‚ इस पर उन्होंने उसे अपना टीम वाला स्वेटर और १० रुपये दे दिए। पर जब साथी खिलाडि़़यों ने उनसे कहा कि इस पर आपके खिलाफ राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन एक्शन ले सकती है‚ तो वह उस भिखारिन को ढूंढते रहे। एक यह किस्सा भी मशहूर है कि सुनील गावस्कर जब युवा थे‚ तब वह एक बार उनके साथ ट्रेन से सफर करते समय वह अपना कंबल लाना भूल गए और रात में सोते समय ठंड़ से कांपने पर सलीम दुर्रानी ने उन्हें अपना कंबल उड़़ा दिया और खुद रात भर ठंड़ खाते रहे। सलीम दुर्रानी के बारे में कहा जाता था कि वह दर्शकों की मांग पर छक्का लगाने का माद्दा रखते थे। वह कहते थे कि १९७२–७३ में इंग्लैंड़ के साथ सीरीज के कोलकाता टेस्ट में बल्लेबाजी करते समय स्टैंड़ के एक छोर से आवाज आई कि सलीम दा वी वॉन्ट छक्का। मैंने उस दिशा में छक्का लगा दिया। वह कहते थे कि कुछ मौकों पर छक्के की मांग होने पर मैं छक्का लगाने में कामयाब हो गया और यह टैग मेरे ऊपर चस्पां हो गया। वह कहते थे कि बाद में यह मशहूर हो जाने पर मेरे बल्लेबाजी करते समय सारा स्टेडि़यम ही छक्के की मांग करता था और वह कहीं भी लगता‚ यह माना जाता कि छक्का जड़़ दिया गया।
उन्होंने इंग्लैंड़ के खिलाफ १९६१–६२ की सीरीज के साथ अपने कॅरियर की शुरुआत की और इस सीरीज के कोलकाता में आठ और चेन्नई में १० विकेट लेकर भारत को यह टेस्ट जिताकर सीरीज जिताने में अहम भूमिका निभाई। भारतीय क्रिकेट के इतिहास में १९७१ में वेस्ट इंड़ीज के खिलाफ उसके घर में सीरीज जीतने की बहुत अहमियत है। भारत ने पोर्ट ऑफ स्पेन में दूसरा टेस्ट जीतकर सीरीज पर कब्जा जमाया था। कहा जाता है कि वेस्ट इंड़ीज की दूसरी पारी में गैरी सोबर्स और क्लाइव लॉयड़ की जोड़़ी विकेट पर जम गई थी और इस जोड़़ी को तोड़़ना भारत की प्रमुख समस्या थी। तीसरे दिन की यह बात है। इस दिन रात में कप्तान वाडे़कर के कमरे में विश्वनाथ शराब पी रहे थे। सलीम दुर्रानी ने वहां पहुंचकर कहा कि यदि हमें शराब पिलाओगे तो हम अगले दिन दो ओवरों में सोबर्स और लॉयड़ दोनों के विकेट निकाल कर देंगे। उन्होंने अगले दिन ऐसा करके भी दिखाया और भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई। वह शराब के बेहद शौकीन थे और इस शौक ने कुछ दिक्कतें भी बनाइ। कहा जाता है कि सलीम दुर्रानी की अपने कप्तान टाइगर पटौदी से बनती नहीं थी और १९७३ में इंग्लैंड़ टीम के आने तक उनके खेल में गिरावट भी आने लगी थी। इस कारण उन्हें कानपुर में खेले गए टेस्ट की टीम से हटा दिया गया। लेकिन इस टेस्ट के दौरान दर्शक .दुर्रानी नहीं तो टेस्ट नहीं. की तख्तियां लेकर आए।
चयन समिति ने मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडि़यम में खेल गए टेस्ट में उन्हें फिर से टीम में शामिल कर लिया। इस टेस्ट में वह जब कप्तान टाइगर पटौदी का साथ देने मैदान में उतरे तो उस समय कप्तान साहब को रन बनाने के लिए जूझना पड़़ रहा था लेकिन उनके कुछ देर तक खेलने के बाद स्टेडि़यम के पूर्वी छोर से छक्के की मांग आने लगी और उन्होंने दो छक्के लगाकर दर्शकों को खुश कर दिया। इस टेस्ट में उन्होंने पहली पारी में ७३ रन और दूसरी पारी में ३७ रन बनाकर टीम में अपनी सार्थकता साबित कर दी। सलीम दुर्रानी की टीम के खिलाफ मुंबई की स्थानीय क्रिकेट में करीब एक दशक खेले करसन घावरी कहते हैं कि सलीम साहब के निधन से सिर्फ भारत को ही नहीं‚ दुनिया को भारी क्षति पहुंची है। वह कहते हैं कि मैं भारतीय टीम के साथ १९७७ में वेस्ट इंड़ीज के दौरे पर गया था और उस दौरान मेरी गारफील्ड़ सोबर्स से मुलाकात हुई और ज्यादा समय सलीम साहब की ही बात होती रही। उन्होंने आखिर में कहा कि एक अच्छे खिलाड़़ी की शुभकामनाएं एक महान खिलाड़़ी को पहुंचा देना।