बीजेपी के विरोध के लिए राम, रामायण, हिन्दू और ब्राह्मण के बाद अब सवर्ण भी विरोधी दलों के निशाने पर हैं। चुनाव जीतने के लिए इस तरह के विरोध में सामान्य जन की भागीदारी भी है या नहीं, यह तो चुनाव परिणामों के बाद पता चलेगा, जिसके लिए ऐसे बयान दिये जा रहे हैं। इसलिए कि अब तक के अनुभव यही बताते हैं कि राम का जितना विरोध विरोधियों ने मुखर होकर किया, राम को ध्येय मानने वाली बीजेपी को उतना ही फायदा हुआ। राम मंदिर निर्माण के लिए लालकृष्ण की आडवाणी की रथयात्रा से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव तक तो यही देखने को मिला है। अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं। विपक्ष के नेताओं ने बीजेपी के विरोध के लिए एक बार फिर राम को निशाने पर लिया है। इस बार देखना दिलचस्प होगा कि राम का विरोध कितना कारगर होता है।
राम और रामायण पर किसने क्या कहा
बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने सबसे पहले रामचरित मानस पर नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में कहा कि यह मनुस्मृति की तरह नफरती ग्रंथ है। सरकार के मुखिया नीतीश कुमार की आपत्ति पर भी वह अपने स्टैंड पर अड़े रहे। आरजेडी के शीर्षस्थ नेता, बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव और प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को भी चंद्रशेखर का स्टैंड नागवार नहीं लगा। इस खींचतान के बीच उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस को बकवास बताया और इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर दी है।
कन्नड़ लेखक ने कहा- राम शराब पीते थे
नेताओं की इस बयानबाजी में कन्नड़ के एक लेखक केएस भगवान भी कूद पड़े हैं। उन्होंने आपत्तिजनक बयान दिया है और कहा है कि ‘सीता के साथ राम दोपहर से लेकर पूरे दिन शराब पीते रहते थे। कोई रामायण का उत्तराखंड पढ़ेगा तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि भगवान राम कैसे आदर्श नहीं कहे जा सकते।’ केएस भगवान कर्नाटक के रहने वाले रिटायर्ड प्रोफेसर हैं। लेखक के रूप में उनकी अच्छी ख्याति है। उन्होंने कहा है कि ‘आज राम राज्य स्थापित करने की बात हो रही है। अगर कोई वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड को पढ़े तो यह साफ हो जाएगा कि राम आदर्श नहीं थे। राम दोपहर में सीता के साथ बैठते थे और पूरे दिन शराब पीते थे। उन्होंने सीता को जंगल में भेज दिया। शूद्र शम्बूक का सिर काट डाला। ऐसे में राम आदर्श कैसे हो सकते हैं?’
राम-रामायण के बाद अब निशाने पर सवर्ण
राम और रामायण के बाद अब सवर्ण बीजेपी विरोधी राजनीतिज्ञों के निशाने पर हैं। बिहार के ही एक मंत्री आलोक मेहता ने कहा है कि ‘सवर्ण जाति के लोग अंग्रेजों के पिट्ठू और दलाल थे। इनकी तादाद 10 फीसदी थी। अंग्रेजों के जाने के बाद सत्ता इन्हीं 10 फीसदी लोगों के हाथ रही। ये 10 फीसदी आरक्षण वाले अंग्रेजों के दलाल थे। ये मंदिरों में घंटी बजाते थे।’ उनके बयान के बाद सरकार में शामिल जेडीयू और बीजेपी ने उन पर हमला बोल दिया है। आलोक मेहता आरजेडी के पहले नेता नहीं हैं, जिन्होंने जनभावनाओं पर चोट पहुंचाने वाला बयान दिया है। उनसे पहले शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने रामचरितमानस को नफरत फैलाने वाला ग्रंथ बताया था। उसके बाद मंत्री सुरेंद्र यादव ने सेना को लेकर कहा था कि बीजेपी चुनाव के वक्त सेना पर हमले कराती है। हालांकि नफरती बोल के खिलाफ जेडीयू भी बीजेपी की तरह आक्रामक है, लेकिन उसने अपने नेता पूर्व एमएलसी गुलाम रसूल बलियावी पर अब तक कोई ऐक्शन नहीं लिया है, जिन्होंने कहा था कि अगर उनके आका (अल्लाह) पर आंच आयी तो वह पूरे हिन्दुस्तान को कर्बला बना देंगे।
नफरती बयानों के विरोध में जेडीयू भी
बिहार में सरकार चला रहे सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ऐसे बयानों का लगातार विरोध कर रही है। रामचरित मानस को लेकर शिक्षा मंत्री के बयान पर जेडीयू और आरजेडी आमने सामने हो गए थे। मंत्री आलोक मेहता के बयान पर पूर्व मंत्री और जेडीयू एमएलसी नीरज कुमार ने कहा है कि ‘मंत्री आलोक मेहता पहले इतिहास की जानकारी लें, तब इस तरह की बयानबाजी करें। कोई हमारे पूर्वजों को अपमानित करे, यह बर्दाश्त नहीं होगा। सवर्ण जाति के लोगों ने अग्रेजों से लड़ाई में अपने खेत-खलिहान तक बेच दिये थे। जेलों में कई लोगों ने जिंदगी बिता दी। आलोक मेहता को पता होना चाहिए कि आजादी की लड़ाई जाति-धर्म के आधार पर नहीं लड़ी गई थी। मेहता का बयान दुखद और अपमानजनक है।’
मंत्री के बयान को बीजेपी ने विघटनकारी बताया
आलोक मेहता के बयान पर विधान परिषद में विरोधी दल के नेता सम्राट चौधरी ने कहा है कि आरजेडी के नेता जाति और धर्म के नाम पर समाज और देश को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। आरजेडी नेताओं को पता होना चाहिए कि बिहार की सियासत में उनके नेता लालू प्रसाद यादव की उत्पत्ति के पीछे एक पंडित रघुनाथ झा की ही कृपा थी। आरजेडी नेता इन दिनों जिस तरह के बयान दे रहे हैं, उससे यह साफ है कि ये लोग जाति और धर्म के नाम पर समाज और देश को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने पर ये सजा
धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने के इरादे से जान-बूझ कर बोलने के लिए भारतीय दंड संहिता (इंडियन पैनल कोड) में 3 साल की सजा का प्रावधान है। धारा- 295 ए में दर्ज है- वह काम, जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान कर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आशय से किया गया हो, उसके लिए 3 साल की कैद या जुर्माना दोनों का प्रावधान है। अफसोस कि इसके बावजूद लगातार हिन्दू धार्मिक भावनाओं को छेस पहुंचाने वाले बयान देने से राजनीतिज्ञ और लेखक पीछे नहीं हट रहे।