उडिशा के भुवनेश्वर और राउरकेला में एफआईएच विश्व कप १३ जनवरी से शुरू होने जा रहा है। आयोजन की तारीख करीब आने पर मन में यह बात घुमड़़ रही है कि इस बार क्या हमारी टीम पोडि़यम पर चढ़ने में कामयाब हो पाएगी। पिछले कुछ सालों में भारतीय हॉकी के स्तर में सुधार आने के बाद हर बार लगता है कि शायद इस बार हमारी पदक से दूरी कम हो जाए और ऐसा सोचते–सोचते बिना पदक के ४८ साल बीत गए हैं। भारत ने आखिरी बार पदक के रूप में स्वर्ण १९७५ में अजितपाल सिंह की अगुआई में जीता था। १९७३ में रजत और १९७१ में कांस्य पदक जीता था। हम तीन पदकों में पिछले पांच दशकों से इजाफा करने में सफल नहीं हो सके हैं। पर इस बार कोच ग्राहम रीड़ के निर्देशन में की गइ तैयारियां पदक से दूरी खत्म होने की उम्मीद जरूर बंधा रही हैं।
भारतीय कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने भी भरोसा जताया है कि हम ४८ साल से चला आ रहा पदक का सूखा खत्म करके देशवासियों को नये साल का उपहार पदक के तौर पर देंगे। इस भरोसे की वजह करीब एक साल पहले टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने के साथ लगातार अच्छा प्रदर्शन करना है। इस सबके बावजूद भारत की राह को आसान नहीं माना जा सकता। इस विश्व कप में भाग लेने वाली १६ टीमों को चार ग्रुपों में बांटा गया है। भारत को इंग्लैंड़‚ स्पेन और वेल्स के साथ पूल ड़ी में रखा गया है। इस ग्रुप की तीन टीमों की रैंकिंग में सिर्फ चार स्थानों का ही अंतर है। इंग्लैंड़ की पांचवीं‚ भारत की छठी‚ स्पेन की आठवीं रैकिंग है। पूल की एकमात्र टीम वेल्स ही १५वीं रैंकिंग पर है। इस कारण इस ग्रुप में कुछ अप्रत्याशित परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं। इस विश्व कप का फॉर्मेट ऐसा है कि किसी भी टीम को सीधे क्वार्टर फाइनल में स्थान बनाने के लिए पूल में टॉप पर रहना होगा। पूल की दूसरे और तीसरे नंबर की टीमें क्रास ओवर मैच खेलेंगी और इनकी विजेता टीमें क्वार्टरफाइनल में स्थान बनाएंगी। भारत को सीधे क्वार्टरफाइनल में स्थान बनाने के लिए वेल्स के साथ कम से कम इंग्लैंड़ और स्पेन में किसी टीम को हर हाल में फतह करना ही होगा। हालात ऐसे भी बन सकते हैं कि सभी मैच जीतने पड़ें़। इंग्लैंड़ और स्पेन‚ दोनों ही टीमें ऐसी हैं‚ जिन्हें फतह करना आसान नहीं है। एफआईएच प्रोलीग के मौजूदा सत्र में स्पेन के साथ खेले दो मैचों में से एक में भारत को हार मिली थी और दूसरे को भारत ने जीता था। लेकिन पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भारत ने पांच टेस्ट की सीरीज में तीसरे टेस्ट में जिस तरह दुनिया की नंबर टीम ऑस्ट्रेलिया को फतह किया‚ उससे लगता है कि उसमें दुनिया की किसी भी टीम को हराने का माद्दा है। इस दौरे पर भारत ने पांच मैचों में २५ गोल खाए जरूर पर दिग्गज टीम पर १७ गोल जमाना दर्शाता है कि उसकी गोल जमाने की क्षमता में सुधार हुआ है।
मौजूदा समय में मैचों के परिणामों में पेनल्टी कॉर्नर अहम भूमिका निभाते हैं। भारत ने पिछले कुछ सालों में ड्रे़ग फ्लिकर हरमनप्रीत के शानदार प्रदर्शन की वजह से पेनल्टी कॉर्नरों को गोल में बदलने का अपना रिकॉर्ड़ सुधारा है। लेकिन आजकल हॉकी बहुत तेजी के साथ खेली जाती है‚ इसलिए खिलाडि़़यों की फिटनेस को बनाए रखने के लिए खिलाडि़़यों में तेजी से बदलाव किए जाते हैं। इस कारण हरमनप्रीत भी मैदान से अंदर–बाहर होते रहते हैं । इस कारण भारत को हरमन के साथ एक–दो और अच्छे ड्रे़ग फ्लिकरों की जरूरत रहती है‚ लेकिन अमित रोहिदास और वरुण का पेनल्टी कॉर्नरों को गोल में बदलने का रिकॉर्ड़ बहुत अच्छा नहीं है। इस कमी को सुधारने के लिए भारतीय कोच ग्राहम रीड़ ने बेंगलुरू में दिसम्बर में लगे प्रशिक्षण शिविर में विशेषज्ञ की सहायता ली। उन्होंने पेनल्टी कॉर्नरों की बारीकियां सिखाने के लिए नीदरलैंड़ के १९९० के दशक के पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ ब्राम लोमंस को बुलाया। एक अच्छी बात यह रही कि इस प्रशिक्षण शिविर में युवा पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञों को भी शामिल किया गया। लोमंस द्वारा सिखाई गइ बारीकियों का कितना फायदा हुआ है‚ इसका पता तो मैचों के दौरान ही पता चल पाएगा।
ऐसी ही स्थिति गोलकीपिंग के मामले में भी है। यह सही है कि पीआर श्रीजेश के साथ कृष्ण बहादुर पाठक को भी तीन विश्व कपों में केलने का अनुभव है पर वह श्रीजेश जैसा जज्बा नहीं रखते। सही मायनों में भारत को अभी भी श्रीजेश के अच्छे विकल्प की तलाश है। इस कारण ही गोलकीपिंग की बारीकियों को सिखाने के लिए डे़निस वान डि़ पाल की सेवाएं ली गइ। हम यदि पिछले पांच सालों की बात करें तो बेल्जियम से बेहतर प्रदर्शन किसी अन्य टीम का नहीं रहा है। उन्होंने इस दौरान टोक्यो ओलंपिक का और २०१८ की विश्व चैंपियनशिप का गोल्ड़ ही नहीं जीता‚ बल्कि २०१९ की यूरोपीय चैंपियनशिप का खिताब भी उनके नाम है। इसलिए उन्हें एक बार फिर खिताब जीतने का मजबूत दावेदार माना जा रहा है। वहीं ऑस्ट्रेलिया दूसरी ऐसी टीम है‚ जो किसी भी टीम को फतह कर गोल्ड़ जीतने का माद्दा रखती है। इसी तरह नीदरलैंड़ के दावे को भी कमजोर नहीं माना जा सकता है। इनके बीच भारतीय चुनौती भी किसी कम नहीं है।