राजनयिक संबंधों में उपहार का प्रकार देशों के रिश्तों की प्रगाढ़ता पर निर्भर करता है क्योंकि वैश्विक राजनीति में उपहार उस विचार का भी माध्यम होता है‚ जिसे एक देश दूसरे देश तक पहुंचाना चाहता है। उपहार का महत्व इसीलिए भी अधिक होता है क्योंकि यह राष्ट्र के उद्देश्य और उसके वैश्विक परिचय का भी सारांश होता है। कुल मिलाकर उपहार किसी भी देश की वैश्विक स्थिति और उसके राजनयिकों के मनोभाव को समझने का सटीक जरिया है। ऐसे में भारत द्वारा वैश्विक मंचों पर गीता के माध्यम से हो रही ‘उपहार कूटनीति’ के प्रभाव को समझने का प्रयास इस लेख में किया गया है।
विश्व की राजनीतिक व्यवस्था में यह परिवर्तनकारी दौर है। नई महाशक्तियों का उदय हो रहा है‚ तो कई पतन की ओर अग्रसर हैं। कारण है शक्ति की परिभाषा में हो रहा परिवर्तन। वैश्विक राजनीति में शक्ति के केंद्र सामरिक से आर्थिक और सांस्कृतिक पक्ष बन चुके हैं। महाशक्तियां इन्हीं माध्यमों से हेजमनी अर्थात वर्चस्व स्थापित कर रही हैं। यूरोप‚ अमेरिका और चीन इस कड़ी में अपनी सामरिक और आर्थिक शक्तियों के माध्यम से प्रभुत्व स्थापित किए हुए हैं‚ जबकि भारत अपनी सांस्कृतिक कूटनीति का प्रयोग कर रहा है। वैश्विक राजनीति में सॉफ्ट पावर के माध्यम से अपनी स्वीकार्यता स्थापित करने के लिए सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी सांस्कृतिक धरोहरों का प्रयोग कर रहा है। भारत का यह प्रयास स्वतंत्रता के बाद से चल रहा है किंतु विदेश नीति में सांस्कृतिक मूल्यों की क्षीणता के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया। वर्तमान सरकार ने अपनी विदेश नीति में सांस्कृतिक पक्ष की सामंजस्यता बिठाने का प्रयास किया है। इसका उदाहरण है ‘उपहार कूटनीति’ में भगवत गीता का समावेश।
भारत की वैश्विक पहचान इसकी संस्कृति के कारण रही है‚ और इस संस्कृति की पहचान रही है गीता। महाभारत में कृष्ण और अर्जुन के संवाद पर आधारित इस ग्रंथ ने गांधी‚ टैगोर‚आइंस्टीन से लेकर परमाणु बम के जनक रॉबर्ट तक को आकर्षित किया है। यही कारण है कि भारत की वर्तमान सत्ता ने इस श्रेष्ठ सांस्कृतिक ग्रंथ का प्रयोग हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर कूटनीतिक उपहारों के तौर पर किया है। २०१४ में प्रधानमंत्री मोदी अपने पहले अमेरिका दौरे पर गए तो जिस बात ने दुनिया का ध्यान खींचा‚ वो थी पुस्तक–‘भगवत गीता अकोडंग टू गांधी’–ओबामा को भेंट में देना। इसी दौरे पर प्रधानमंत्री अमेरिकी कांग्रेस की पहली हिंदू सदस्य तुलसी गबार्ड से मिले तो उन्हें भी भेंट में गीता मिली। उसी वर्ष अगस्त में प्रधानमंत्री का जापान दौरा हुआ‚ जहां जापान के राजा को भेंट में मोदी ने गीता दी। एक बात यहां जानने योग्य है कि गीता से जापान पहले से परिचित है। जापान का प्रसिद्ध कबूकी ड्रामा ‘नारूकमी’ महाभारत और विशेषकर गीता से प्रभावित है।
इसके बाद प्रधानमंत्री द्वारा पुस्तक के रूप में गीता भेंट करने की परंपरा शुरू हो गई जिसे भारत की विदेश नीति में भी स्वीकार्यता मिल गई। मोदी गीता और इसके वैश्विक महत्व को कितने गंभीर रूप से समझते हैं‚ इसे १ सितम्बर‚ २०२१ को दिल्ली में इस्कॉन के कार्यक्रम में दिए गए उनके वक्तव्य से समझा जा सकता है। साठ से अधिक देशों से आए इस्कॉन के प्रतिनिधियों के सामने प्रधानमंत्री मोदी ने गीता का महत्व समझाते हुए कहा‚ ‘मानवता के हित में गीता भारत द्वारा दुनिया को दिया गया श्रेष्ठ उपहार है‚ इसी के ज्ञान से निकला हुआ योग आज पूरी दुनिया को लाभान्वित कर रहा है।’ मोदी सरकार की उपहार डिप्लोमेसी का भारतीय विदेश नीति पर स्पष्ट प्रभाव यूनेस्को में भारतीय कूटनीति में आए बदलाव से समझा जा सकता है। यूनेस्को सांस्कृतिक जगत का महत्वपूर्ण वैश्विक मंच है। चीन लगभग दो दशक से इसका इस्तेमाल अपनी संस्कृति को दुनिया तक पहंुचाने में कर रहा है। ऐसे में भारत द्वारा भी इस मंच का प्रयोग अपने सांस्कृतिक भाव से विश्व को जोड़ने का व्यापक स्तर पर हाल के वर्षों में किया जा रहा है। यूनेस्को में भारत के प्रतिनिधि एंबेसेडर विशाल शर्मा भारत की चेतना को दुनिया तक पहुंचाने में गीता का व्यापक उपयोग कर रहे हैं। भारत के इस सार ग्रंथ को लगभग पचास से अधिक देशों के प्रतिनिधियों तक उन्हीं की भाषा में पहुंचा कर भारत अपने प्रयास को नये तरीके से दुनिया के सामने पेश कर रहा है। रवांडा के प्रतिनिधि को स्वाहीली में‚ वियतनाम के प्रतिनिधि को वियतनामी में सहित लगभग पचास से अधिक देशों के प्रतिनिधियों को उनकी भाषा में गीता गिफ्ट कर विशाल शर्मा ने सांस्कृतिक–कूटनीतिक हलकों में नये विमर्श को जन्म जरूर दे दिया है।
गीता के बढ़ते कूटनीतिक प्रयोग को दो अर्थों में समझा जा सकता है। पहला‚ यह मोदी सरकार की सांस्कृतिक कूटनीति का अस्त्र बन चुका है‚ और दूसरा‚ यह भारत राष्ट्र की ज्ञान परंपरा को वैश्विक स्वीकार्यता प्रदान कराने वाला ग्रंथ है। वॉरेन हेस्टिंग के आदेश पर १७८५ में ईस्ट इंडिया कंपनी के चार्ल्स विल्किंस ने गीता का पहला अंग्रेजी अनुवाद किया था। इसके बाद यह ग्रंथ यूरोप पहुंचा। १७८७ में अब्बे जेपी प्राउड ने इसका फ्रेंच में अनुवाद किया। फलतः गीता ने पश्चिम में भारत के प्रति दृष्टि को बदल क र रख दिया। ऐसा माना जाता है। मैक्स मूलर ने जब भारतीय धर्मशास्त्रों का इतिहास लिखना शुरू किया तो १८८२ में गीता का अंग्रेजी अनुवाद किया गया। इसके अनुवादक थे केटी तेलंग। इस अनुवाद के बाद पश्चिम के पूरब को समझने और विशेषकर भारत को समझने के बौद्धिक विमर्श में व्यापक बदलाव आया। गीता के ज्ञान ने भी पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। १९२७ में लंदन स्थित संस्था ‘श्राइन ऑफ विजडम’ ने गीता पर एक टिप्पणी छापी। इसकी भूमिका में लिखा गया‚ ‘अन्य सभी धर्म ग्रंथों के इतर गीता किसी धर्म या नस्ल का ग्रंथ नहीं है‚ बल्कि संपूर्ण मानवता का ग्रंथ है क्योंकि इसमें सभी धर्मों की सार्वभौमिक अभिव्यक्ति निहित है।’ यह टिप्पणी गीता को न सिर्फ सबसे अलग बनाती है‚ बल्कि इसकी वैश्विक स्वीकार्यता को भी अभिव्यक्त करती है। एल्डुअस हक्सले ने १९४५ में स्वामी प्रणवानंद और क्रिस्टोफर इशवुड के संदर्भ से लिखा‚ ‘गीता शाश्वत दर्शन के कभी भी रचे गए सबसे स्पष्ट और सर्वांग संपूर्ण सारांशों में से एक है। इसलिए न केवल भारतीयों के लिए अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए इसका स्थायी मूल्य है।’ पश्चिम में गीता के प्रति जहां एक तरफ इतना विमर्श चल रहा था‚ तो दूसरी तरफ भारतीय विदेश नीति में आजादी के बाद भारत के सांस्कृतिक पक्षों को व्यापक स्तर पर अनदेखा कर देश को पश्चिम के ज्ञान का पिछलग्गू बना दिया गया। भारत ने आज गीता को अपनी विदेश नीति में शामिल किया तो दुनिया खुले मन से आज इसे स्वीकार कर रही है।
गीता वैश्विक राजनीति में भारत की बदलती विदेश नीति की पहचान बन चुकी है। विश्व को भारत की चेतना से जोड़ने वाले गेटवे ग्रंथ के रूप में स्थापित हो चुकी है। गीता का प्रसार जहां भारत के ज्ञान‚ विज्ञान और योग के सम्मिश्रण को दुनिया तक पहुंचा रहा है‚ तो दूसरी तरफ भारत के राजनयिकों में भारतीयता के भाव को शक्ति के रूप में बदल रहा है। भारत की सांस्कृतिक शक्ति को वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करने में गीता गिफ्ट डिप्लोमेसी का प्रमुख साधन बनी है। सत्तर से अधिक भाषा में अनूदित और सत्ता द्वारा प्रसार से विश्व कूटनीति में गीता के ज्ञान की वर्चस्वता को स्थापित कर भारत अपनी नई पहचान देने में सक्षम हो गया है। गीता की भेंट का सांस्कृतिक और कूटनीतिक महत्व‚ दोनों है। एक तरफ गीता वैश्विक अशांति में शांति के मार्ग के लिए प्रेरित करती है‚ तो दूसरी तरफ भारत की अमूल्य धरोहरों को ज्ञान के रूप में पूरे विश्व में पहंुचा रही है।
वैश्विक राजनीति में भारत की बदलती विदेश नीति की पहचान बन चुकी है गीता। यह विश्व को भारत की चेतना से जोड़ने वाले गेटवे ग्रंथ के रूप में स्थापित हो चुकी है। गीता का प्रसार एक तरफ भारत के ज्ञान‚ विज्ञान और योग के सम्मिश्रण को दुनिया तक पहुंचा रहा है‚ तो दूसरी तरफ भारत के राजनयिकों में भारतीयता के भाव को शक्ति के रूप में बदल रहा है। भारत की सांस्कृतिक शक्ति को वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करने में गीता……