दुनियां की आधी आबादी महिलाओं की है‚ लेकिन उद्यम की दुनियां में अब भी मर्दों का दबदबा है। हालांकि कॉरपोरेट या बिजनेस वर्ल्ड में महिलाओं की संख्या थोड़ी बढ़ी जरूर है मगर अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है। स्टार्टअप के क्षेत्र में भी महिलाओं की स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं। देश में पंद्रह प्रतिशत से भी कम महिलाए टेक सिटी में ऊंचे पदों पर पहुंच पाइ हैं। कॉरपोरेट क्षेत्र में महिला लीडरों की कमी इस बात की द्योतक है कि प्रगतिवादी विकास मॉडल में वे अब भी अक्षम‚ अप्रगतिशील और निरर्थक रूप में अवगुण्ठित है। उंगलियों पर गिनी जा सकने वाली चंद महिला उद्यमियों को देख संतुलन साधने का सारा उन्माद‚ सारी आक्रामकता अंधकार में प्रतीत होती है।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक दुनियाभर में सबसे ऊंचे पदों (सीईओ) पर केवल ५ फीसद महिलाएं ही हैं। हालांकि आयरलैंड में इसका सबसे ज्यादा प्रतिशत (१५) है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार दुनिया के कुल बिजनेस का सिर्फ ३३ फीसद मालिकाना हक महिलाओं के पास है। इस मामले में इस्राइल‚ कनाडा‚ न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की बेहतर स्थिति है। ये देश महिला उद्योगपतियों के लिए बेहतर माने जाते हैं। क्योंकि वहां उनके लिए बेहतर माहौल है। भारत की बात करें तो साल २०१० से २०२० के बीच वर्कफोर्स में महिला कर्मियों का प्रतिशत लुढ़ककर २६ से १९ पर आ गया था। २०१८ में स्टार्टअप के सह–संस्थापकों में महिलाओं की संख्या १७ फीसद थी‚ जो २०१९ में घटकर १२ फीसद रह गई है। वेंचर डेट एवं लैंडिंग प्लेटफॉर्म इनोवेन कैपिटल की रिपोर्ट के मुताबिक‚ देश के स्टार्टअप क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति लगातार कम होती जा रही है।
इसके पीछे कई वजहें है। हमारे यहां महिलाओं को अभी भी कंपनियों के पुरातन और संकीर्ण सोच के विरुद्ध लड़ाई लड़नी पड़ रही है। समाज की धारणा कि परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी केवल महिलाओ की ही है‚ उन्हें प्रगतिशीलता की सूची से बाहर करती है। उन्होंने सफलता के चाहें कितने भी ऊंचे मानक क्यों न कायम किए हों‚ प्रायः उनका गलत मूल्यांकन कर उन्हें प्रतिनिधित्व में पीछे रखा जाता है। सामाजिक मूल्यांकन के यही गलत प्रतिमान महिलाओं के कॅरियर में रोड़े अटकाते हैं। सिर्फ समाज की क्यों बड़ी कंपनियां भी कुछ इसी तरह की संकीर्णता के दायरे में महिलाओं को तोलती है। वे भी एक सीमित दायरे में ही महिलाओं को नेतृत्व की बागडोर थमाती है। क्योंकि उन्हें कंपनी की कमान अकुशल हाथों में जाने का खतरा सताता है। ये सीधे–सीधे प्रतिभाहीनता का प्रदर्शन है। कंपनियों को इस सोच से उबरना होगा। साथ ही महिला कर्मियों को केवल संख्या बल के आधार पर नहीं बल्कि उनकी प्रतिभा और सर्जकता के निष्पक्ष आलोक में देखना होगा। कंपनियों को बदलती हवा पानी धूप के अनुकूल महिलाओं की क्षमता में भरोसा दिखाकर उन्हें संचालन‚ स्वायत्तता और प्रतिनिधित्व की कमान सौंपनी होगी।
भारत में‚ महिलाओं में उद्यमशीलता कौशल विकसित करने के लिए हमें अभी बहुत से मोर्चों पर लड़ने की आवश्यकता है। अब समय आ गया है कि सघनता और संश्लिष्टता से न केवल उनकी बात सुनी जाए बल्कि उनकी उपादेयता को भी स्वीकारा जाए।उनके प्रति बेचारगी‚ अप्रगतिशील और असमर्थ होने का भाव तिरोहित करने का दम दिखाए पुरुष समाज।