गृह मंत्री अमित शाह का पाकिस्तान से किसी भी तरह की बातचीत नहीं करने का फैसला सराहनीय भी है और साहसिक भी। अनुच्छेद ३७० निरस्त करने के (अगस्त २०१९) बाद पहली बार घाटी पहुंचे शाह ने बारामूला में आयोजित सभा में साफ तौर पर कहा कि पाकिस्तान से कोई भी बात नहीं होगी। शाह की रैली इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि तीन दशक बाद बारामुला में किसी गृहमंत्री ने पहली जनसभा को संबोधित किया। शाह का यह कहना महत्वपूर्ण है कि अगर बात ही करनी होगी तो कश्मीर की जनता से करना पसंद करूंगा। दरअसल‚ गृह मंत्री का इशारा घाटी के उन लोगों और राजनीतिक पार्टियों की तरफ था‚ जो बात–बात में पाकिस्तान से वार्ता की दलील देते हैं। गृह मंत्री का बयान यहां की सियासी पार्टियों के लिए भारी झटका है। कश्मीर में अमन की बहाली के लिए भाजपा और एकाध राजनीतिक दलों को छोड़़कर ज्यादातर पार्टियां पाकिस्तान को वार्ता की मेज पर देखना चाहती है और इसके लिए पैरवी करती है‚ जबकि भारत का रुख शुरू से ही साफ रहा है कि कश्मीर के मामले में उसे दूसरे किसी भी देश का दखल मंजूर नहीं है। बहरहाल‚ गृह मंत्री का यह कथन कि कश्मीर की बेहतरी के बारे में यहां की अवाम और केंद्र की सरकार ही सकारात्मक तरीके से सोच सकती है और उसे अंजाम दे सकती है। इसलिए ख्वामखा पाकिस्तान का नाम लेना कश्मीरियत और देश के साथ गद्दारी है। साफ है कि शाह यहां की जनता को यह संदेश दे गए कि यहां वर्षों तक शासन करने वाली पार्टियों ने सिर्फ अपना भला किया। अगर आपका भला कोई कर सकता है तो वह केंद्र में बैठी भाजपा की सरकार है। ज्ञातव्य है कि राज्य में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं। उससे पहले हालात का जायजा और कश्मीरियों के मन की थाह लेने का इससे अच्छा मौका नहीं हो सकता था। गृहमंत्री ने युवा मन को यह कहकर झकझोरने की कोशिश की कि भारत की सरकार पाकिस्तान के बजाय यहां के युवाओं से संवाद करना पसंद करेगी। उन्हें रोजगार और अमन चाहिए न कि पाकिस्तान के भेजे और पोसे गए आतंकवादी। उम्मीद की जानी चाहिए कि गृहमंत्री का दौरा यहां के सुनहरे भविष्य को एक बार फिर उसी रूप में वापस लाने में सफल होगी।
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