नियमित दिनचर्या‚ तनाव‚ खानपान में लापरवाही‚ पर्यावरण प्रदूषण और कई अन्य कारणों से वर्तमान समय में हृदय संबंधी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। न केवल बड़ी उम्र या बुजुर्गों में‚ बल्कि छोटी उम्र के बच्चों और किशोरों में भी दिल की समस्याएं बढ़ी हैं। यही वजह है कि मौजूदा समय में दिल की बीमारी पूरी दुनिया में गंभीर समस्या बनकर उभरी है। दुनिया भर के लोगों को दिल के रोगों को बताने और उन्हें उनसे बचाने के लिए हल साल २९ सितम्बर का दिन ‘विश्व हृदय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को हृदय से संबंधित रोगों से जागरूक करना है क्योंकि आज हार्ट पेशेंट उम्रदराज लोग ही नहीं‚ बल्कि कम उम्र के बच्चे भी हो जाते हैं।
विश्व हृदय दिवस मनाने की शुरुआत सन २००० में की गई थी। इस दिवस की शुरुआत विश्व हृदय संघ के निदेशक एंटोनी बेस दे लुना ने डब्ल्यूएचओ के साथ मिलकर की थी जिससे मानव हृदय संबंधी रोगों की जानकारी पाकर स्वस्थ जीवन शैली को अपना कर हृदय संबंधी रोगों से दूर रह सके। दुनिया में लाखों लोग ऐसे हैं‚ जो हार्ट की बीमारियों से जूझ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार‚ दिल की बीमारी की वजह से हर साल लगभग १७.९ मिलियन लोगों की मौत हो जाती है। यह वैश्विक मृत्यु दर का ३१ फीसदी हिस्सा है। भारत में हर पांचवा व्यक्ति दिल का मरीज है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार‚ भारत में हर साल करीब २० लाख लोग दिल के दौरे से पीडि़त होते हैं‚ जिनमें ज्यादातर युवा हैं। शहर में रहने वाले पुरु षों को‚ गांव में रहने वाले पुरु षों से दिल के दौरे की संभावना तीन गुना अधिक होती है। दरअसल‚ भारत में गलत लाइफस्टाइल‚ तनाव‚ एक्सरसाइज न करने और खाने–पीने में लापरवाही की वजह से लोगों को दिल से संबंधित गंभीर रोग होने लगे हैं। दिल की बीमारी का संबसे गंभीर खतरा हाल के साल में रहा है। यह बीमारी आज कम उम्र के लोगों में अधिक देखने को मिल रही है।
बहरहाल‚ भारत में दिल के रोगियों की संख्या विश्व भर में सबसे अधिक है। यू कहें दिल का रोग आज दुनिया का नम्बर वन किलर बन गया है। पहले विश्व भर में सबसे अधिक मौत का कारण संक्रामक रोग या भुखमरी मानी जाती थी और दिल के रोगी औद्योगिक देशों और अमीरों में ही ज्यादा मिलते थे। लेकिन आज यह आम आदमी का रोग बन गया है। आंकड़े बताते हैं कि एशियाई देशों में कुल मौतों में से ५० प्रतिशत का कारण दिल के रोग हैं। विकासशील देशों में तो दिल की बीमारी के कारण ही निम्न व मध्यम आय वर्ग के ८० प्रतिशत लोग जान गंवा बैठते हैं परंतु आज कोई भी देश इस बीमारी से अछूता नहीं है। यही कारण है कि आज विशाल दुनिया को इस छोटे से दिल की चिंता सता रही है। विश्व के ६० प्रतिशत हृदय रोगी भारत में हैं। हमारे देश के लिए तो ये आंकड़े और भी दिल दहलाने वाले हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि दिल के रोगों और आघातों का सबसे ज्यादा खतरा भारत में ही है लेकिन ज्यादा चिंता की बात यह है कि यह रोग ३० से ४० की उम्र के युवाओं में ज्यादा बढ़ रहा है। इंडियन हार्ट एसोसिएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार‚ भारत में करीब २५ प्रतिशत दिल के मरीजों की उम्र ४० वर्ष से कम है। यह आंकड़ा पश्चिम के देशों से दोगुना है। गंभीर बात यह भी है कि पहले दिल के रोग पुरु षों में ज्यादा होते थे पर अब महिलाओं को तीव्रता से अपनी गिरफ्त में ले रहे हैं। कुछ शोधों से पता चला है कि विश्व की कुल महिलाओं‚ जिन्हें हृदय संबंधी रोग है‚ का १५ प्रतिशत भारतीय महिलाओं का आकड़ा है।
हृदय रोग से संबंधित बीमारी किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकती है‚ इसके लिए कोई निर्धारित उम्र नहीं होती लेकिन भारत में दिल के रोगों के मंडराते बादल ज्यादा काले और डरावने हैं। हृदय के साथ होने वाली छेड़छाड़ का ही नतीजा है कि विश्व भर में हृदय के रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। एक अनुमान के अनुसार‚ भारत में १०.२ करोड़ लोग इस बीमारी की चपेट में हैं जबकि भारत तो योग‚ संस्कृति और संस्कार वाला देश है जो अपनी प्राचीन परंपराओं पर चले तो यहां ये खतरे सबसे कम हों। लेकिन हमारी इन मान्यताओं को यूरोपीय‚ पश्चिमी देश अपना कर दिल के रोगों के खतरों को कम करने में लगे हैं‚ और हम वे सब भूलकर ‘आ बैल मुझे मार’ की कहावत चरितार्थ कर रहे हैं। गलत खानपान‚ व्यायाम की कमी‚ धूम्रपान या मादक द्रव्यों का सेवन‚ अत्यधिक वजन‚ उच्च रक्त चाप‚ तथा मधुमेह इत्यादि इसके खतरे बन सकते हैं। हृदय रोगों का तेजी से बढ़ना और उससे होने वाली मौतों के आंकड़ों को देखते हुए हृदय के प्रति गंभीर रवैया अपनाने की आवश्यकता है। समय रहते हृदय से जुड़ी समस्याओं पर काबू नहीं पाया गया‚ तो यह बीमारी भारत सहित दुनिया के लिए बड़ी चुनौती बन जाएगी। लिए जरूरी है कि हृदय के प्रति कुछ सावधानियां अपनाई जाएं। उनका सख्ती से पालन किया जाए ताकि इस गंभीर बीमारी से बचे रहा जा सके।