बेनामी संपत्ति दो तरह की होती है चल और अचल। चल संपत्ति में नकदी‚ और कीमती धातुएं जैसे सोना‚ चांदी‚ हीरा व अन्य कीमत रत्न शामिल होते हैं जबकि अचल संपत्ति में मकान‚ दुकान‚ कार्यालय‚ बागान‚ खेत व विभिन्न तरह के भूखंड़ जैसी चीजें शामिल हैं। दोनों ही तरह की संपत्ति में नामी और बेनामी संपत्ति का खूब चलन है। हाल ही में देश की सर्वोच्च अदालत ने बेनामी संपत्ति के मामले में एक फैसला दिया है जिसपर सड़़क से लेकर सत्ता के गलियारों तक खूब चर्चा हो रही है। इस फैसले के तहत देश की सर्वोच्च अदालत ने बेनामी संपत्ति के मामले में सजा का कानून रद् कर दिया है। आइए यह जानने की कोशिश करते हैं कि बेनामी और नामी संपत्ति क्या है और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अब क्या असर होगा।
क्या है बेनामी संपत्ति
बेनामी संपत्ति को अगर आसान भाषा में समझा जाए तो यह कहा जा सकता है कि बेनामी संपत्ति उस संपत्ति को कहते हैं जिसको खरीदा किसी और व्यक्ति के नाम गया हो और कीमत चुकाने वाला व्यक्ति कोई और हो। ऐसी संपत्ति परिवार का कोई भी सदस्य किसी अन्य सदस्य के नाम खरीदता है लेकिन भुगतान वह स्वयं करता है। जिस व्यक्ति के नाम यह संपत्ति खरीदी जाती है उसे बेनामदार कहा जाता है। बेनामी संपत्ति चल‚ अचल या वित्तीय दस्तावेज के रूप में भी हो सकती है। इसको इस उदाहरण से समझ सकते हैं. मोहित हिरवानी ने चेन्नई में एक फ्लैट खरीदा‚ इस फ्लैट के कीमत का भुगतान भले ही हिरवानी ने किया हो लेकिन इस संपत्ति को उन्होंने अपने भतीजे के नाम से खरीदा। ऐसी संपत्ति के मामले में हिरवानी का भतीजा बेनामदार कहलाएगा और यह संपत्ति बेनामी संपत्ति कहलाएगी। यहां पर एक ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि बेनामी संपत्ति तब कहलाएगी जब संपत्ति की जिस कीमत का भुगतान किया गया है उसकी आमदनी का स्रोत पता ही न हो। अर्थात जब पैसे का स्रोत ही नहीं पता होगा तो जाहिर है कि वह काला धन ही कहलाएगा।
क्या कहता है कानून
बेनामी संपत्ति कानून १९८८ में बना लेकिन मौजूदा सरकार का मानना था कि उक्त कानून ज्यादा प्रभावी नहीं साबित हो रहा है। सरकार चाहती थी कि यह कानून ऐसा हो जिससे बेनामी संपत्ति की खरीद–फरोख्त के मामले में काले धन के लेनदेन पर रोक लग सके। इसके लिए सरकार सही वक्त का इंतजार कर रही थी। जब सरकार ने काले धन पर लगाम लगाने के लिए नोटबंदी करने की तैयारियां पूरी कर लीं तो आठ नवम्बर २०१६ से नोटबंदी किए जाने के ठीक एक सप्ताह पहले एक नवम्बर २०१६ से बेनामी संपत्ति कानून में संशोधन करते हुए इसमें सजा और जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान कर इसे लागू कर दिया। सरकार का मानना था कि नोटबंदी और बेनामी संपत्ति कानून में संशोधन को लगभग एक ही समय में किएजाने से संपत्ति की खरीद–फरोख्त में काले धन का इस्तेमाल रोकने में मदद मिलेगी।
बेनामी संपत्ति कानून में संशोधन किएजाने के बाद जो कानून बना उसमें यह कहा गया है कि ऐसी संपत्ति बेनामी संपत्ति कहलाएगी जिसे संपत्ति खरीदने वाला व्यक्ति या संस्था किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के नाम से खरीदे। इससे यह जाहिर होता है कि संपत्ति खरीदने वाले व्यक्ति ने अपनी पहचान छिपाने के उद्ेश्य से किसी अन्य व्यक्ति के नाम से संपत्ति खरीदी है।
किसको मिलेगी राहत
कई बार ऐसा भी होता है कि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के नाम संपत्ति खरीद लेता है लेकिन जिसके नाम यह खरीदी जाती है उसको भी इसके बारे में जानकारी नहीं होती कि उक्त संपत्ति उसके नाम पर चढ़ी कैसे। ऐसी स्थिति में यह संपत्ति बेनामी संपत्ति कहलाती है। नए कानून के तहत अगर यह साबित हो जाता है कि उक्त संपत्ति बेनामी है तो इसकी खरीद–फरोख्त करने वालों को तीन से सात साल तक की सजा हो सकती थी। साथ ही संपत्ति के कुल मूल्यांकन का लगभग २५ फीसद जुर्माना अदा करने का भी प्रावधान था। यहां पर सवाल यह उठता है कि जब किसी व्यक्ति को यह मालूम ही नहीं कि उसके नाम से संपत्ति खरीदी गई है तो उसको सजा देना कहां तक न्यायसंगत है। सजा का प्रावधान रद् होने के बाद अब ऐसे व्यक्तियों को राहत मिल जाएगी। इसके अलावा जिन पुराने मामलों को नए कानून के तहत शामिल कर लिया गया था उन मामलों में भी राहत मिलने की उम्मीद है।
संशोधित कानून और क्या है शामिल
हालांकि बेनामी लेनदेन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सजा का प्रावधान खत्म कर दिया है लेकिन संशोधित कानून में संपत्ति की जब्ती और कुर्की इत्यादि का प्रावधान अभी बरकरार है। यानी अगर जांच एजेंसियों को यह पता चलता है कि अमुक संपत्ति बेनामी संपत्ति है तो वे उस संपत्ति की जब्ती या कुर्की कर सकती हैं।
कौन सी संपत्ति बेनामी नहीं
अगर कोई व्यक्ति अपने मां‚ बाप‚ भाई–बहन‚ पत्नी–बच्चों या अन्य किसी रिश्तेदार के नाम से संपत्ति की खरीदने के बाद इसे आयकर रिटर्न में घोषित करता है तो वह संपत्ति बेनामी संपत्ति नहीं कहलाएगी। इसके अलावा अगर किसी प्रापर्टी में साझेदारी हासिल करने में घोषित आय में से कीमत का भुगतान किया गया है तो भी इसे बेनामी संपत्ति नहीं माना जाएगा। इसके बाद भी अगर सरकार को किसी संपत्ति पर यह संदेह होता है तो उसकी जांच का अधिकार इस कानून के तहत जांच एजेंसियों को है। जांच होने पर संबंधित व्यक्ति को ९० दिन के भीतर यह साबित करना होगा कि उसने भले ही यह संपत्ति किसी अन्य के नाम पर खरीदी है लेकिन इसका भुगतान आय के ज्ञात स्रोतों से किया गया है।
सरकार चाहती थी कि यह कानून ऐसा हो जिससे बेनामी संपत्ति की खरीद–फरोख्त के मामले में काले धन के लेनदेन पर रोक लग सके। इसके लिए सरकार सही वक्त का इंतजार कर रही थी। जब सरकार ने काले धन पर लगाम लगाने के लिए नोटबंदी करने की तैयारियां पूरी कर लीं तो आठ नवम्बर २०१६ से नोटबंदी किए जाने के ठीक एक सप्ताह पहले एक नवम्बर २०१६ से बेनामी संपत्ति कानून में संशोधन करते हुए इसमें सजा और जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान कर इसे लागू कर दिया
बेनामी संपत्ति मामले में सजा के प्रावधान को लेकर पैदा हुए कुछ विवादों के बाद आखिरकार देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में इस कानून से सजा के प्रावधान को खत्म कर दिया। इस फैसले से जहां आम आदमी को राहत मिली है वहीं इस फैसले की चर्चा सड़़क से लेकर सत्ता के गलियारों तक खूब जोर शोर से हो रही है।