बिहार में भी अब बुलडोजर चलना शुरू हो गया है. इसकी शुरुआत राजधानी पटना से कर दी गयी है. रविवार की सुबह पटना के राजीव नगर थाना के अंतर्गत नेपाली नगर (दीघा) के इलाके में प्रशासन 70 मकानों को ध्वस्त करने में जुट गयी है. प्रशासन की इस कार्रवाई से मौके पर तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो गई है. आक्रोषित लोग सड़कों पर उतर गये हैं. कुछ लोगों द्वारा प्रशासन की टीम पर पथराव करने की भी खबर आयी है.
सिटी एसपी घायल, डीएम-एसएसपी पहुंचे राजीवनगर थाना
मौके पर भारी संख्या में पुलिस फोर्स तैनात है. लोगों को खदेड़ने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज और हवाई फायरिंग की है. इसमें दो लोगों के मरने की सूचना है, लेकिन प्रशासनिक पुष्टि नहीं हुई है. इसबीच सिटी एसपी अमरीष राहुल के सिर पर चोट लगने सूचना आ रही है. लोगों से शांति बनाए जाने की अपील की जा रही है. डीएम और एसपी राजीव नगर पहुंच गये हैं. दोनों अधिकारी राजीव नगर थाने में कैंप कर रहे हैं.
अवैध कब्जा हटाने पहुंचा प्रशासन
प्रशासन के अनुसार ये सभी घर बिहार राज्य हाउसिंग बोर्ड की जमीन पर अवैध कब्जा कर बनाये गये हैं. इन घरों को तोड़ने के लिए प्रशासन की टीम रविवार को पौ फटते ही करीब 14 बुलडोजर (जेसीबी) लेकर पहुंची. इलाके में हंगामा रोकने के लिए करीब दो हजार पुलिस फोर्स को तैनात किया गया है. इस पूरी कार्रवाई का विरोध करने के दौरान करीब सात लोग आग से झुलस गये हैं.
पहले दी जा चुकी है सूचना
प्रशासन ने करीब एक महीने पहले ही इन सभी मकानों को तोड़कर हटाने के लिए संबंधित गृह स्वामियों को नोटिस दी थी. इसके बाद प्रभावित लोगों ने आंदोलन शुरू किया था. साथ ही, प्रशासन के पास गुहार लगायी थी. उनका कहना था कि वे मकान के लिए नगर निगम को टैक्स देते हैं, इसी मकान पर बिजली कनेक्शन और अन्य सुविधाएं हासिल करते हैं. फिर उनके मकान को क्यों और कैसे तोड़ा जाएगा.
जमकर बवाल, भारी तनाव
राजीव नगर में मकान तोड़ने का विरोध कर रहे लोगों ने जमकर बवाल किया. भीड़ को संभालने के लिए पुलिस ने हवाई फायरिंग की है. नेपाली नगर में भी पुलिस ने लाठीचार्ज करके भीड़ को खदेड़ा है. मौके पर तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए कई थानों की पुलिस फोर्स मौजूद है. पुलिस लाइन से अतिरिक्त जाप्ता भी बुलाया गया है. सैकड़ों पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में प्रशासन की टीम बुलडोजर से अतिक्रमण के खिलाफ एक्शन ले रही है. डीसीएलआर ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है.
सरकारी जमीनों की बिक्री का खुला खेल अब खूनी संघर्ष की तरफ बढ़ रहा है। अतिक्रमण की बस्ती तैयार कराने वाले विभाग अब जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराने में जुटे हैं। पुलिस और पब्लिक भिड़ रही है। पर इस अतिक्रमण के पीछे सरकारी कर्मी भी कम जिम्मेवार नहीं है। यहां बिजली कनेक्शन, निगम द्वारा टैक्स लेना, यहां तक कि पक्की सड़क का तैयार हो जाना, इसका उदाहरण है। इसके पीछे पुलिस और जिला प्रशासन ही नहीं 8 विभाग ऐसे हैं जो पूरी तरह से जवाबदेह हैं।
1024 एकड़ की जमीन पर हुआ बड़ा खेल
राजीवनगर के नेपाली नगर में 1024 एकड़ की जमीन पर बड़ा विवाद है। सरकारी जमीन को बेचने के साथ इस पर अधिक संख्या में घर बना दिया गया। वर्ष 1974 में आवास बोर्ड ने किसानों से जमीन का अधिग्रहण आवासीय परिसर के लिए किया था। विवाद की नींव मुआवाजा से पड़ी और इसके बाद से ही जमीन की बिक्री होने लगी। मामला कोर्ट भी पहुंचा। यहां सूद समेत मुआवाजा का फैसला सुनाया गया। बिहार सरकार ने अवैध कॉलोनियों के विवाद को सुलझाने को लेकर 2014 में नियमावली बना दी। जिम्मेदारों की मनमानी का आलम यह है कि 7 साल बाद भी इस मामले का निस्तारण नहीं हो सका। नियमावली में आशियाना दीघा रोड के पश्चिम में 400 एकड़ जमीन को खाली कराने और मुआवजा दिलाकर बंदोबस्ती की पूरी गाइडलाइन थी। लेकिन जिम्मेदारों ने उलझा दिया।
बिहार राज्य आवास बोर्ड: भू माफियाओं को कराया कब्जा
नेपाली नगर के अतिक्रमण को तैयार कराने में बिहार राज्य आवास बोर्ड की बड़ी भूमिका है। आवास बोर्ड को सरकारी जमीन की निगरानी का जिम्मा था। लेकिन आरोप लगा कि आवास बोर्ड की मिलीभगत से ही यहां भू माफियाओं का बड़ा नेटवर्क तैयार हुआ। आवास बोर्ड के जिम्मेदार कहां थे, जब सरकारी जमीन पर पक्का निर्माण कराया जा रहा था। अतिक्रमण की नींव तैयार करने में आवास बोर्ड भी पूरी तरह से जिम्मेदार है।
जिला प्रशासन : अफसरों की मिलीभगत से बसी बस्ती
अतिक्रमण की बस्ती बसाने में जिला प्रशासन के जिम्मेदार अफसरों की भूमिका सवालों में है। सवाल यह है कि जब नेपाली नगर की सरकारी जमीन पर लोगों का पक्का निर्माण कराया जा रहा था तो प्रशासन का इंटेलिजेंस क्या कर रहा था। जिला प्रशासन के जिम्मेदार अफसरों की मिलीभगत के बिना संबंधित क्षेत्र में रहने वालों का वोटर कार्ड कैसे जारी हो गया।
राजीव नगर थाना : पुलिस की चुप्पी ने बसाई अतिक्रमण की बस्ती
नेपाली नगर में अतिक्रमण की बस्ती बसाने में राजीव नगर थाना की बड़ी भूमिका है। पुलिस की जिम्मेदारी है कि सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों पर कार्रवाई करे। थाना से महज 300 मीटर की दूरी पर अतिक्रमण की पूरी बस्ती बस गई और पुलिस ने कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की। पुलिस ने इसके लिए प्रशासन और संबंधित विभाग से लिखा पढ़ी कर कार्रवाई कराने का क्या प्रयास किया, इस पर भी सवाल है।
सर्किल ऑफिसर: जमीनों की निगरानी में आंख बंद
जमीनों की निगरानी का काम सर्किल ऑफिसर का है, लेकिन नेपाली नगर में सरकारी जमीन का अतिक्रमण जारी रहा। एक-दो दिनों में नहीं। बल्कि कई सालों में इस एरिया में 2 से लेकर 4 मंजिला इमारत तैयार की गई। अतिक्रमण को लेकर आए दिन नए निर्माण होते रहे और सर्किल ऑफिसर की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई। अगर शुरुआती दौर में ही निर्माण को रोक दिया जाता तो आज खून-खराबे की स्थिति नहीं होती।
बिजली विभाग: अवैध कॉलोनी में कैसे दे दिया कनेक्शन नेपाली नगर में सरकारी जमीन पर तैयार मकानों में बिजली का कनेक्शन भी दे दिया गया है। अब सवाल यह है कि जब क्षेत्र के लोगों को पता है कि सरकारी जमीनों पर बनाया जाने वाला मकान अवैध है तो फिर कनेक्शन कैसे दिया गया। बिजली का कनेक्शन देने से पहले विभाग पूरी तरह से जांच पड़ताल करता है। किराए पर मकान है तो किरायानामा तक ले लेता है, लेकिन सरकारी जमीन पर बनाए गए मकान में कनेक्शन देकर अतिक्रमण बढ़ाने का अवसर दिया गया।
अतिक्रमण की बस्ती में क्यों बनाई गई सड़क : जनप्रतिनिधि भी जिम्मेदार
नेपाली नगर में अतिक्रमण की बस्ती में जाने के लिए पूरी चौड़ी पक्की सड़क बनाई गई है। सड़क के दोनों किनारों पर लोगों ने पक्का निर्माण कर दुकान और कामर्शियल भवन बना लिया है। सड़क के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि से लेकर रोड बनाने वाला विभाग भी अतिक्रमण बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।
नगर निगम भी वसूल रहा था टैक्स: कचरा कूड़ा के लिए कर
नेपाली नगर में सरकारी जमीन पर बनाए गए भवन पर नगर निगम भी कर वसूल रहा था। मोहल्ले में कचरा उठाने के लिए कर वसूलता है। अब सवाल यह है कि जिस मोहल्ले को सरकार अवैध मान रही है। उसमें नगर निगम क्यों सुविधाएं दे रहा है? अगर बिजली पानी और साफ-सफाई के साथ कचरा उठाने की व्यवस्था नहीं होती तो वहां लोग आवास नहीं बना पाते।
कमजोर सूचना तंत्र : जब आबादी बढ़ गई तब हो रही कार्रवाई
प्रशासन से लेकर पुलिस व अन्य विभागों का सूचना तंत्र पूरी तरह से फेल है। सूचना तंत्र फेल होने के कारण ही नेपाली नगर में अतिक्रमण का दायरा बढ़ता गया। दिन प्रतिदिन नेपाली नगर में नए निर्माण हुए लेकिन सूचना तंत्र इतना एक्टिव नहीं हो पाया, जिससे अतिक्रमण को नींव पर ही रोक दिया जाए। सूचना तंत्र के फेल होने के कारण ही अब चुनौती बढ़ गई है। अब इस अतिक्रमण में खून खराबा हो रहा है। थाना की गलती से अब पुलिस अफसरों को चोट खानी पड़ रही है। नेपाली नगर को अतिक्रमण मुक्त कराना आसान नहीं होगा। प्रशासन ने 14 से अधिक बुलडोजर लगाया है और पूरी फोर्स के साथ मकानों को तोड़ा जा रहा है, अगर शुरुआती दौर में जिम्मेदार गंभीर होते तो आज यह स्थिति नहीं होती।
जानिए, क्या है राजीव नगर जमीन विवाद:1024 एकड़ जमीन बिहार आवास बोर्ड की, अब घर तोड़ने बुलडोजर लेकर आया प्रशासन
दीघा-राजीव नगर की जमीन मामले में पुलिस ने रविवार को बड़ी कार्रवाई की है। राजीव नगर थाने में पड़ने वाले जमीन से जुड़े विवादित इलाके में चार थानों की पुलिस सुबह ही यहां पहुंच गई है। इलाका पुलिस छावनी में बदल दिया गया है। पूरे इलाके में तनाव बना हुआ है। यहां लगभग दो हजार पुलिस बल की भी यहां तैनाती की गई है। कई बुलडोजर भी मंगाए गए हैं।
जब भी यहां मकान तोड़ने की कार्रवाई हुई है लोगों ने काफी विरोध किया है। एक बार फिर लोगों का विरोध जारी है। यह विवाद 1024 एकड़ जमीन से जुड़ा हुआ है। अब इस पर सैकड़ों की संख्या में घर बन चुके हैं।
कुछ दिन पहले बड़ी संख्या में यहां के लोग उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद से भी मिलने गए थे। लोगों ने उनसे मिलकर अपनी बात भी रखी। लोगों का कहना है कि जब घर बनाया जा रहा था उस समय रोक क्यों नहीं लगाया गया। बिजली का मोटर तक लगाया गया। सड़कें भी सरकार ने बनवाई।
1024 एकड़ जमीन बिहार आवास बोर्ड ने अधिग्रहित किया था
जमीन से जुड़ा यह विवाद नया नहीं है बल्कि वर्ष 1974 से ही चल रहा है। आवास बोर्ड ने यहां 1024 एकड़ जमीन को आवासीय परिसर के लिए अधिग्रहित किया। लेकिन अधिग्रहण में भेदभाव हुआ और मुआवजा का विवाद हुआ तो मामला कोर्ट में चला गया। इस मामले में कोर्ट ने किसानों को सूद सहित मुआवजा देने का निर्देश दिया है।
2014 में नियमावली बनी, कैबिनेट से पास भी किया गया
बिहार सरकार ने अवैध कॉलोनियों के विवाद को खत्म करने के लिए 2014 में नियमावली बनाई। इसे कैबिनेट से पास भी किया गया। लेकिन सात वर्ष बीत गए और इस पर ठीक से काम नहीं हो पाया। यहां घर बनाकर रह रहे साढ़े 22 हजार लोगों ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। लोग न तो अपना घर छोड़ने को तैयार हैं और न ही सरकार द्वारा तैयार नियमावली के अनुसार सेटेलमेंट को तैयार हैं। नतीजा विवाद बना हुआ है। दूसरी तरफ घर बनाने पर रोक के बावजूद घर धड़ाधड़ बनाए जा रहे हैं। इस इलाके में जमीन की खरीद बिक्री भी जारी है। रो के बावजूद घर कैसे बनाए जा रहे हैं यह सवाल है।
नियमावली में क्या है
नियमावली में है कि आवास बोर्ड को आशियाना-दीघा रोड के पश्चिम में 400 एकड़ जमीन को खाली कराकर संबंधित लोगों को मुआवजा दिया जाना है। साथ ही नियमावली में यह भी है कि पूरब के इलाकों में बने मकानों से बंदोबस्ती शुल्क लेकर नियमित करना है। जानकारी है कि अब तक केवल 93 लोगों ने ही अपने घरों को नियमित कराने और 339 लोगों ने मुआवजा लेने के लिए आवेदन दिया है।
2010 के सर्किल रेट के आधार पर सेटलमेंट हो
दीघा आवास समिति के महासचिव वीरेन्द्र सिंह का कहना है कि एक्ट वर्ष 2010 में बना। उस समय यहां का सर्किल रेट 4.43 लाख रुपए था। वर्ष 2016 में इसे रिवाइज कर 27 लाख रुपए प्रति कट्ठा कर दिया गया। आवास बोर्ड सेटेलमेंट के लिए सर्किल रेट का 25 फीसदी मांग रहा है। बोर्ड को सेटेलमेंट करना है तो 2010 के सर्किल रेट के आधार पर करे।
इस कारण से मुआवजा की जांच में दिक्कत
बिहार राज्य आवास बोर्ड के एमडी धर्मेन्द्र सिंह का कहना है कि चूंकि यहां एक ही जामीन के कई दावेदार हैं। रैयती किसान की जमीन है तो उस अनुसार वंशावली के आधार पर मुआवाजा दिया जा सकता है। किसानों के द्वारा जमीनों को ट्रांसफर किया गया है और इस वजह से मुआवाजा के लिए कागजात की जांच में दिक्कत हो रही है।
पावर पर बिक रही यहां जमीन
बता दें कि राजीवनगर- दीघा की जमीन की रजिस्ट्री लोग वर्षों से कोलकाता या मुंबई से कराते रहे हैं। लेकिन आगे रजिस्ट्री भी बंद हो गई और लोग पावर पर ही जमीन की धड़ल्ले से खरीद बिक्री कर रहे हैं।