यह उम्मीद करें कि वर्तमान वैश्विक हालात में भारत द्वारा विदेश व्यापार के लिए ऐसे सही कदम उठाए जाएंगे जिनसे वह विदेश व्यापार के टिकाऊ उच्च विकास के अवसरों को मुट्ठी में ले सकेगा। देश में आर्थिक सुधारों को तेजी से क्रियान्वयन की डगर पर आगे बढ़ाया जाएगा। डिजिटल अर्थव्यवस्था की विभिन्न बाधाओं को दूर किया जाएगा। उपयुक्त पोर्टफोलियो बनाने तथा बेहतरीन कारोबारों और कारोबारी विचारों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा॥ द्यपि इस समय वैश्विक मंदी की लहर का भारत की अर्थव्यवस्था पर भी असर हो रहा है‚ सेंसेक्स और डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में बड़ी गिरावट और ब्याज की बढ़ती दरों व पेट्रोल–डीजल की बढ़ती कीमतों के कारण महंगाई का ग्राफ बढ़ता दिखाई दे रहा है‚ किंतु इन आर्थिक और वित्तीय चुनौतियों के बीच भी भारत के लिए विदेश व्यापार का अनुकूल परिदृश्य उभरता दिख रहा है। विकसित‚ विकासशील और पड़ोसी देशों के साथ भारत के विदेश व्यापार समझौतों और व्यापार वार्ताओं का नया अध्याय लिखा जा रहा है। हाल में १७ जून को दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन आसियान के विदेश मंत्रियों ने नई दिल्ली में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ विशेष बैठक में विदेश व्यापार में वृद्धि का बड़ा एजेंडा तैयार किया है।
गौरतलब है कि अमेरिका की अगुवाई में २४ मई को बनाए गए भारत सहित १४ देशों के संगठन हिंद–प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) की ११ जून को पेरिस में अनौपचारिक बैठक के बाद सदस्य देशों के साथ भारत से निर्यात बढ़ने की संभावनाएं उभरतीं दिखीं। वस्तुतः आईपीईएफ पहला बहुपक्षीय करार है जिसमें भारत शामिल हुआ है। इसमें अमेरिका‚ भारत‚ जापान‚ ऑस्ट्रेलिया‚ ब्रुनेई‚ इंडोनेशिया‚ दक्षिण कोरिया‚ मलयेशिया‚ न्यूजीलैंड़‚ फिलिपींस‚ सिंगापुर‚ थाईलैंड़‚ वियतनाम और फिजी शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि १० जून को अमेरिका में भारत के राजदूत तरनजीत सिंह संधू ने कहा कि अब भारत–अमेरिका व्यापार और आर्थिक संबंधों का नया दौर शुरू हुआ है। अमेरिका में २०० भारतीय कंपनियां मौजूद हैं‚ और भारत में २‚००० से ज्यादा अमेरिकी कंपनियां सक्रिय हैं। विगत २९ मई को वाणिज्य मंत्रालय द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष २०२१–२२ में अमेरिका और भारत के बीच ११९.४२ अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ। यह २०२०–२१ में ८०.५१ अरब डॉलर था। भारत से अमेरिका को निर्यात २०२१–२२ में बढ़कर ७६.११ अरब डॉलर हो गया। यह २०२०–२१ में ५१.६२ अरब डॉलर था। २०२१–२२ में अमेरिका से भारत का आयात बढ़कर ४३.३१ अरब डॉलर हो गया जो इसके पूर्ववर्ती वर्ष में २९ अरब डॉलर था। खास बात यह कि अमेरिका गिने–चुने देशों में है‚ जिनके साथ भारत व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) की स्थिति में है‚ और अब अमेरिका चीन को पीछे करते हुए भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर बन गया है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि कोविड–१९ और यूक्रेन संकट के बीच भी दुनिया के प्रमुख देशों के साथ भारत का विदेश व्यापार बढ़ रहा है। हाल में २४ मई को अमेरिका‚ भारत‚ जापान और ऑस्ट्रेलिया के रणनीतिक मंच क्वाड के दूसरे शिखर सम्मेलन में चारों देशों ने जिस समन्वित शक्ति का शंखनाद किया है‚ और बुनियादी ढांचे पर ५० अरब डॉलर से अधिक रकम लगाने का वादा किया है‚ उससे क्वाड भारत के उद्योग और कारोबार के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है। इसके अलावा हाल के वषाç में जी–७ और जी–२० देशों के साथ तेजी से आगे बढ़े भारत के द्विपक्षीय व्यापार संबंधों और इसी वर्ष २०२२ में यूरोपीय देशों के साथ किए गए नये आर्थिक समझौतों के क्रियान्वयन से भारत का विदेश व्यापार बढ़ेगा।
यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत ने बहुत कम समय में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को मूर्तरूप दिया है। यूरोपीय संघ‚ ब्रिटेन‚ कनाडा‚ खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के छह देशों‚ दक्षिण अमेरिका‚ अमेरिका और इजराइल के साथ एफटीए के लिए प्रगतिपूर्ण वार्ताएं पुरसुकून हैं। भारत नेबर फर्स्ट और एक्ट ईस्ट नीति के तहत भी आर्थिक और कारोबारी संबंधों का नया अध्याय लिख रहा है। पिछले माह १६ मई को प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी में नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के साथ बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं पर चर्चा की और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत बनाने‚ शिक्षा क्षेत्र में सहयोग एवं पनबिजली परियोजनाओं को लेकर छह समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। पिछले माह १२ मई को रानिल विक्रमसिंघे ने श्रीलंका के नये प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत के साथ तेजी से आर्थिक सहयोग बढ़ाने के संकेत दिए हैं। भारत ने मार्च–अप्रैल २०२२ में श्रीलंका को कर्ज डिफॉल्ट से बचने के लिए २.४ अरब डॉलर की मदद‚ दवाओं‚ डीजल की आपूर्ति तथा अन्य जरूरी आयात के लिए एक अरब डॉलर की क्रेडि़टलाइन जैसी मदद भी की है। इन सबके ही १९ मई को भारतीय रिजर्व बैंक ने श्रीलंका के साथ रुपये में व्यापार लेन–देन की अनुमति भी दी है। पाकिस्तान के भारत विरोधी रवैये के कारण भारत दक्षेस के भीतर क्षेत्रीय उपसमूह बीबीआईएन (बांग्लादेश‚ भूटान‚ भारत और नेपाल) की एकसूत्रता पर जोर देते हुए इन देशों के साथ क्षेत्रीय व्यापार बढ़ाने की रणनीति पर तेजी से कदम आगे बढ़ा रहा है। बिम्सटेक (बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टरल टेक्नोलॉजिकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन) देशों के साथ भी व्यापार की नई संभावनाएं उभर कर दिखाई दे रही हैं।