उच्चतम न्यायालय ने २००२ के गुजरात दंगा मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और ६३ अन्य लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। यह याचिका गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने दायर की थी। ॥ न्यायमूर्ति एएम खानविलकर‚ न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की एक पीठ ने मामले को दोबारा शुरू करने के सभी रास्ते बंद करते हुए कहा कि जांच के दौरान एकत्रित की गई सामग्री से मुसलमानों के खिलाफ सामूहिक हिंसा भड़़काने के लिए सर्वोच्च स्तर पर आपराधिक षड्यंत्र रचने संबंधी कोई संदेह उत्पन्न नहीं होता है। पीठ ने कहा कि जकिया की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। अदालत ने ‘किसी गुप्त उद्देश्य के लिए मामले को जारी रखने की गलत मंशा का जिक्र करते हुए कहा कि जो प्रक्रिया का इस तरह से गलत इस्तेमाल करते हैं‚ उन्हें कटघरे में खड़़ा करके उनके खिलाफ कानून के दायरे में कार्रवाई की जानी चाहिए।’ जकिया जाफरी ने एसआईटी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी सहित ६४ लोगों को मामले में दी गई क्लीन चिट को चुनौती दी थी। शीर्ष अदालत ने जकिया की याचिका पर पिछले साल नौ दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान एसआईटी ने कहा था कि जकिया के अलावा किसी ने भी २००२ दंगे मामले में हुई जांच पर ‘सवाल नहीं उठाए’ हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद इस मामले पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि मोदी के ख़िलाफ़ फर्जी अभियान चलाया गया था, उन पर जानबूझ कर ग़लत आरोप लगाए गए थे.
उन्होंने कहा गुजरात दंगों में जो हुआ उसे राजनीतिक चश्मे से देखा गया. उन्होंने कहा, “ज़ाकिया जाफ़री को वामपंथी पार्टियों और कांग्रेस का समर्थन मिला था.”
अदालत में ज़किया जाफ़री की ओर से पैरवी वरिष्ठ वकील और राज्य सभा सांसद कपिल सिब्बल ने की.
सिब्बल ने अदालत से कहा कि क्या एक विधवा की मदद करना ग़ैर-क़ानूनी है? कपिल सिब्बल ने कहा, “क्या एक ऐसी विधवा की मदद करना ग़ैर-कानूनी है जिसे न्याय न मिल रहा हो? दरअसल सीआरपीसी की सेक्शन 39 के तहत ये एक ड्यूटी है.”
उन्होंने कहा कि क्या ये काफ़ी नहीं है कि अदालत ने इसलिए मुकदमा रोक दिया था क्योंकि सरकार कुछ नहीं कर रही थी. उन्होंने कहा, “गवाह को पट्टी पढ़ाने और उसे गाइड करने में फ़र्क होता है. घायल गवाहों की मनोस्थिति ऐसी थी कि उन्हें गाइड किए जाने की ज़रूरत थी.”
सिब्बल का कहना था कि अगर पीड़ित लोग ये सोचें कि सरकार उनके साथ ठीक व्यवहार नहीं कर रही तो उसमें ग़लत ही क्या है. इसका ये तो मतलब नहीं कि जो भी पीड़ित व्यक्ति सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाए, उसे इसी तरह से पेश किया जाए? ये कौन-सा एजेंडा है?
सिब्बल की दलील थी कि इस मामले में अलग से एफ़आईआर दर्ज किया जा सकता है. वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद सिब्बल ने कहा, ” सामने आई टेप की रिकॉर्डिंग से पता चला है कि साज़िश हुई थी. अगर जांच होती तो किसी बड़ी साज़िश से पर्दा उठता.”
एसआईटी के काम करने के तरीके पर सवाल उठाते हुए सिब्बल ने कहा कि अभियुक्तों के ख़िलाफ़, हर किस्म के साक्ष्यों और दस्तावेज़ों के बावजूद एसआईटी क्या कर रही थी?
एसआईटी का गठन एहसान जाफ़री की पत्नी, ज़किया जाफ़री की अर्जी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ही किया था. एसआईटी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि उसने ‘गुजरात दंगों से जुड़े केसों पर विस्तार से जांच की है.”
शुक्रवार को अदालत में वरिष्ठ वकील और भारत के पूर्व एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कपिल सिब्बल के तर्कों को नकारते हुए कहा, “हमने गुजरात दंगों से जुड़े सारे मामलों की विस्तारपूर्वक और पूरी पड़ताल की है.”
सिब्बल का ज़ोरदार विरोध करते हुए मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि एसआईटी पूरे मामले में जाँच के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँची थी कि अभियुक्तों के ख़िलाफ़ दाखिल आरोपपत्र के अलावा कोई ठोस सबूत नहीं थे, जिससे 2006 के मामले को आगे बढ़ाया जाए. ज़किया जाफ़री ने सु्प्रीम कोर्ट में एसआईटी की ओर से 2002 के दंगे में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीनचिट देने को चुनौती दी थी.
रोहतगी ने कहा कि तब नौ बड़े मुक़दमे थे और नौ एफ़आईआऱ. एक गुलबर्ग केस था, जो ज़ाकिया के पति के मारे जाने से जुड़ा है. यह मामला 2008-09 में एसआईटी के पास आया था. रोहतगी ने कहा, ”एसआईटी के पास सभी बड़े मामले आए और सबमें आरोपपत्र दाखिल किए गए. कई अनुपूरक आरोपपत्र भी दाखिल किए गए. हाई कोर्ट ने शिकायत दर्ज कराने के लिए कहा. ज़किया फिर हाई कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट गईं. एसआईटी ने इस मामले में सिलसिलेवार ढंग से काम किया था. कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर पता चलता हो कोई और साज़िश थी.”
उस दिन गुलबर्ग सोसायटी में क्या हुआ था?
- 2002 में गुजरात में हुए दंगों के दौरान 28 फरवरी को सवेरे दंगाइयों ने गुलबर्ग सोसायटी को घेर लिया.
- यहां कई लोगों को ज़िंदा जला दिया गया. मारे जाने वालों में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री समेत कुल 69 लोग शामिल थे.
- एहसान जाफ़री की पत्नी ज़किया जाफ़री ने आरोप लगाया था कि उनके पति ने पुलिस और उस वक्त मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की.
- 2006 में उन्होंने गुजरात पुलिस के महानिदेशक से नरेंद्र मोदी समेत कुल 63 लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने की अपील की. ये अपील ठुकरा दी गई.
- इसके बाद ज़किया ने गुजरात हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. 2007 में हाईकोर्ट ने भी उनकी अपील ख़ारिज कर दी.
- 2008 में ज़किया जाफ़री और ग़ैर-सरकारी संगठन ‘सिटिज़ेन्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस’ संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.
- 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने दंगों की जांच के लिए पहले से गठित एसआईटी को मामले की जांच के आदेश दिए.
- 2012 में एसआईटी ने अहमदाबाद की निचली अदालत में अपनी रिपोर्ट सौंप दी. एसआईटी ने नरेंद्र मोदी को ये कहते हुए क्लीन चिट दे दी कि एसआईटी के पास मोदी के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं.
‘सबूतों के अभाव में मिली थी क्लीनचिट’
विशेष जांच दल (एसआईटी) ने 8 फ़रवरी 2012 को मामला बंद करने के लिए अदालत में रिपोर्ट दाखिल की थी. एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी समेत 59 लोगों को क्लीनचिट देते हुए कहा था कि उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने योग्य कोई साक्ष्य नहीं हैं.
इसके बाद निचली अदालत ने एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर क्लीन चिट दे दी थी.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा, “हम मजिस्ट्रेट के उस फ़ैसले को सही ठहरा रहे हैं जिसमें एसआईटी की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया था. इस अपील में कोई मैरिट नहीं है और हम इसे ख़ारिज करते हैं.”