बिहार विधानपरिषद चुनाव 2022 की सभी प्रक्रियाएं संपन्न हो चुकी हैं. चुनाव के बाद उसका परिणाम भी सामने आ चुका है. इस बार का विधानपरिषद का चुनाव राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा है. तेजस्वी यादव की अगुआई में आरजेडी ने परंपरागत MY फॉर्मूला (मुस्लिम-यादव फॉर्मूला) से अलग हटते हुए चुनाव लड़ा था. नई रणनीति के तहत लड़े गए चुनाव में राजद को सफलता भी मिली है. इसके साथ ही विधानपरिषद में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की विपक्ष के नेता की कुर्सी भी बरकरार रही. विधानपरिषद चुनाव के लिए नई रणनीति के तहत टिकट बांटने के तेजस्वी यादव के फैसले के खिलाफ विरोध के सुर भी सुनाई पड़े थे, लेकिन चुनाव परिणाम ने विरोधी स्वर को काफी हद तक बंद कर दिया है.
बिहार विधानपरिषद चुनाव में NDA की बढ़त कायम रही, लेकिन आरजेडी उम्मीदवारों की जीत ने यह साफ कर दिया है कि उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी राबड़ी देवी के पास ही रहेगी. बिहार विधानपरिषद में सदस्यों की कुल संख्या 75 है और विरोधी दल का नेता की कुर्सी के लिए कम से कम 8 MLC होना जरूरी है. चुनाव परिणाम से पहले विधानपरिषद में RJD सदस्यों की संख्या 5 थी. विधानपरिषद चुनाव में राजद ने 6 सीटों पर जीत हासिल की है और विपक्ष के नेता के लिए जरूरी 8 सीटों के आंकड़े को पार कर लिया है. इससे साफ हो गया है कि राबड़ी देवी ही विधानपरिषद में विपक्ष की नेता के तौर पर काबिज रहेंगी.
टिकट बंटवारे पर उठे थे सवाल
तेजस्वी यादव जब विधानपरिषद चुनाव के लिए टिकटों का बंटवारा कर रहे थे तब पार्टी के अंदर से ही उस पर सवाल उठाए गए थे. कई सवर्णों को टिकट देने की रणनीति को संदेह की नजरों से देखा गया था. विधानपरिषद चुनाव में कई सवर्ण प्रत्याशी विजयी रहे हैं. इस तरह तेजस्वी यादव का फैसला सही साबित हुआ. चुनाव परिणाम ने यह साबित कर दिया कि आरजेडी की नई रणनीति ने न सिर्फ सीट जीतने में मदद पहुंचाई, बल्कि विधानपरिषद में नेता विपक्ष की कुर्सी को भी बचा लिया.
NDA को बढ़त
बिहार विधानपरिषद की 24 सीटों के लिए चुनाव हुआ था. इसमें NDA का पलड़ा भारी रहा. NDA के खाते में कुल 13 सीटें गईं. वहीं, मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी के प्रत्याशी 6 सीटों पर विजयी रहे. इस चुनाव परिणाम का सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन राजनीतिक पैठ के लिहाज से विधानपरिषद के चुनाव को महत्वपूर्ण माना जा रहा था. तेजस्वी यादव की पार्टी ने इस बार कई सवर्णों को टिकट दिया था.