पाकिस्तान व बांग्लादेश के बाद अब भारत और नेपाल के बीच भी ट्रेन सेवा शुरू होने जा रही है। बिहार के मधुबनी जिला स्थित जयनगर से नेपाल के जनकपुरधाम होते हुए कुर्था तक ट्रेन सेवा की शुरुआत आज से हो जाएगी। शनिवार को दिल्ली में भारत व नेपाल के प्रधानमंत्री संयुक्त रूप से इसका वर्चुअल उद्घाटन करेंगे। इसे लेकर नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा दिल्ली पहुंच चुके हैं। मुख्य उद्घाटन समारोह जयनगर में होगा। इस ट्रेन सेवा से दोनों देशों के यात्रियों को लाभ होगा। ट्रेन पर नेपाल रेलवे का नियंत्रण होगा। खास बात यह है कि ट्रेन में भारत व नेपाल को छोड़ किसी अन्य देश के नागरिक सफर नहीं कर सकेंगे। ट्रेन अभी जयनगर से कुर्था के बीच चलेगी। हालांकि, आने वाले दिनों में इसे वर्दीवास तक बढ़ाया जाना है।
दोनों देशों के लोगों को इस दिन का बेसब्री से इंतजार है. एक-एक दिन लोगों ने इस उम्मीद मेंं बिताया है कि आज नहीं तो कल नये तरीके से रेल सेवा बहाल होगी. इस बीच कई प्रकार की परेशानियों से लोगों को दो चार होना पड़ा है. खासकर आर्थिक रूप से व्यवसाय को भारी नुकसान उठाना पड़ा. सीमावर्ती इलाका होने के कारण जयनगर बाजार पर इसका सीधा असर देखा गया.
दोनों देशों के बीच खास है जयनगर स्टेशन
बिहार में जयनगर भारत का आखिरी रेलवे स्टेशन है। इसके बाद से पड़ोसी देश नेपाल की सीमा शुरू हो जाती है। यह स्टेशन इसलिए भी खास है क्योंकि ये दो देशों को जोड़ने वाला स्टेशन है। यहीं से जनकपुर तक जाने के लिए 8 साल पहले नैरो गेज की ट्रेन चलती थी। तब दिनभर में 3 ट्रेनें, सुबह-दोपहर और शाम के समय थी। त्योहार के समय 24 घंटे चलती थी। जनकपुर-परिक्रमा और विवाह पंचमी के मेले पर ट्रेन की रौनक देखते बनती थी। असंख्य लोगों या कह लें तीर्थयात्रियों के हुजूम से लदी यह छोटी-सी ट्रेन उस समय बड़ी दिखने लगती थी।
2 घंटे में जयनगर से जनकपुर
जयनगर से जनकपुर की दूरी महज 29 किलोमीटर है, जिसे ट्रेनें 2 घंटे में तय करती थीं। इसका गजब का आकर्षण होता था। 70-80 के दशक तक इस ट्रेन के डिब्बे सलामत होते थे। इनमें पहले दर्जे और दूसरे दर्जे की व्यवस्था होती थी। इस रूट पर उस समय गुड्स ट्रेन भी चलती थी। बाद के दिनों में जब ट्रेनों के डिब्बे टूट-फूट गए तो पैसेंजर ट्रेनों में इन्हीं गुड्स-ट्रेनों के खाली रैक लगा दिए जाते थे। मगर पब्लिक, इससे भी खुशी-खुशी सफर कर लेती थी।
खुजरी स्टेशन के पकौड़े होते थे सबकी पसंद
बरसात में रेलवे ट्रैक के ऊपर पानी आ जाता था। ड्राइवर ट्रेन को आहिस्ते-आहिस्ते ट्रैक पर से गुजारते थे, ताकि इंजन या पूरी की पूरी ट्रेन बेपटरी न हो जाए। पानी का स्तर बढ़ जाने के बाद ट्रेन का आवागमन रुक जाता था। बीच के स्टेशनों में सबसे बड़ा स्टेशन है खजुरी। दो घंटे के सफर में खजुरी स्टेशन पर नेपाल पुलिस के जवान चेकिंग के लिए चढ़ते थे। ट्रेन यहां पर आधे घंटे रुकती थी। इतनी देर यात्रियों के मनोरंजन के लिए काफी होती थी। खुजरी में मिलने वाले खाने-पीने की चीजों में सबसे उम्दा पकौड़े होते थे।
2014 में बंद हो गया था परिचालन
2014 तक दोनों देशों के बीच नेपाली नैरो गेज ट्रेन चली, लेकिन ट्रेनों का सफर काफी लंबा होने के कारण कोयले की खपत भी बहुत ज्यादा होती थी। कोयले से चलने वाली ट्रेन काफी छोटी होती थी। लोग दरवाजों और खिड़कियों पर लटकते हुए सफर करते थे। ऐसे ही कई कारणों की वजह से 2014 में ट्रेन का परिचालन बंद कर दिया गया। हालांकि, इससे पहले 2010 में मैत्री योजना के तहत जयनगर से नेपाल के वर्दीवास तक नई रेल लाइन बिछाने के लिए 550 करोड़ रुपए स्वीकृत हुए थे। इस पर 2012 से काम शुरू हुआ। अब इतने सालों बाद दोनों देशों के लोग एक बार फिर इस यात्रा का आनंद ले पाएंगे।
क्या है जनकपुर का धार्मिक महत्व
बिहार के सीतामढ़ी-मधुबनी की भारत-नेपाल सीमा से करीब 25 किमी दूर स्थित जनकपुर हिंदुओं के लिए बड़े महत्व का धार्मिक स्थल है। मान्यता है कि यहीं माता सीता का जन्म हुआ था। जनकपुर में संगमरमर का बना एक बेहद भव्य मंदिर है, जिसे ‘नौलखा मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। यहीं विवाह मंडप है, जहां राम और सीता का विवाह होने की मान्यता है। रामनवमी और विवाह पंचमी के मौके पर यहां दोनों देशों के हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। साल 2018 में अपनी नेपाल यात्रा के क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जनकपुर गए थे और ‘नौलखा मंदिर’ में दर्शन-पूजन किया था।